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रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) ने एक तरफ यूक्रेन के खिलाफ “विशेष सैन्य अभियान” की घोषणा करते हुए युद्ध (Russia-Ukraine War) शुरू किया, तो दूसरी तरफ ठीक उसी समय पहले से बंटे देशों के बीच दरार और साफ हो गयी. यूक्रेन पर रूस के हमलों ने उन सभी वैज्ञानिक प्रगतियों को अब संकट में डाल दिया है, जिन्हें शीत युद्ध की समाप्ति के बाद पश्चिमी देशों और रूस ने एक-दूसरे के साथ सहयोग कर प्राप्त किया था. धरती पर लड़े जा रहे इस युद्ध ने बाहरी अंतरिक्ष में शांति और सहयोग के लिए खतरा उत्पन्न कर दिया है.
हम आपको अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक दूसरे के धूर विरोधी माने जाने वाले देशों के बीच का तालमेल का एक छोटा उदाहरण देते हैं (इसपर अब खतरा मंडरा रहा है).
यूक्रेन पर रूसी हमले के शुरू होने से 5 दिन पहले 19 फरवरी, 2022 को एक Antares रॉकेट ने साइग्नस कार्गो कैप्सूल के साथ उड़ान भरी. यह कैप्सूल अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) तक सप्लाई पहुंचाता है और वर्तमान में ISS में अमेरिकी, रूसी और जर्मन अंतरिक्ष यात्री मौजूद हैं.
कई स्पेस मिशनों की तरह यह दिखाता है कि बाहरी अंतरिक्ष में खोज और इंसानों की महान प्रगति को पूरा करने के लिए एकदम विरोधी देश भी एक साथ आ सकते हैं और सहयोग कर सकते हैं. सवाल है कि जिस युद्ध ने तीसरे विश्व युद्ध के खतरे को जगाया है, क्या उसके बाद भी सहयोग का यह सिलसिला बना रहेगा?
यूक्रेन पर हमले के बाद दुनिया भर के देश, खासकर पश्चिमी देश रूस और पुतिन सरकार पर प्रतिबंध लगाने के लिए कूद पड़े. जो बाइडेन सरकार के अनुसार अमेरिका के प्रतिबंधों का उद्देश्य विशेष रूप से "रूसी के स्पेस प्रोग्राम सहित रूसी एयरोस्पेस इंडस्ट्री को कमजोर करना है."
इन कठोर प्रतिबंधों के जवाब में, रूस के स्पेस एजेंसी Roscosmos के डायरेक्टर ने दुनिया को चेतावनी दी है कि इन प्रतिबंधों से रूस का प्रोपल्शन सिस्टम (वह मशीन जो किसी राकेट को आगे की ओर धकेलने के लिए जोर पैदा करती है) प्रभावित हो सकता है जो ISS को बचाए रखता है. अगर ऐसा हुआ तो संभावित रूप से 420 टन का यह स्पेस स्टेशन दुर्घटनाग्रस्त हो सकता है और यूरोप, चीन, भारत या अमेरिका पर गिर सकता है.
इसके अलावा NASA के साथ प्लान किया गया रूस का Venera-D मिशन अब रद्द कर दिया गया है, जबकि रोस्कोमोस-यूरोपीय स्पेस एजेंसी का संयुक्त ExoMars मिशन अब अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया जाएगा.
OneWeb सेटेलाइट्स का लॉन्च, जिसके लिए रूस के सोयुज रॉकेट की आवश्यकता होती है, भी अब खटाई में पड़ गया है. रूस ने मांग की है कि UK गारंटी देता है कि सेटेलाइट्स का सैन्य उद्देश्यों के लिए उपयोग नहीं किया जाएगा और UK सरकार OneWeb कंपनी में अपनी हिस्सेदारी बेच दे. OneWeb ने इन शर्तों को अस्वीकार कर दिया है.
रूस-यूक्रेन युद्ध ने फिर से यह सिद्ध किया है कि स्पेस और स्पेस टेक्नोलॉजी किस तरह दोधारी तलवार सिद्ध हो सकती हैं.
एक तरफ जहां रिमोट सेंसिंग की मदद से मानवीय राहत में सहायता के लिए रीयल-टाइम डेटा मिल सकता है. मिली जानकारी का उपयोग फेक न्यूज को कंट्रोल करने करने या पर्यावरण पर सशस्त्र संघर्ष के प्रभाव की निगरानी करने के लिए किया जा सकता है.
सैटेलाइट पोजिशनिंग सिस्टम मोबाइल/टीवी टावरों, पावर प्लांट और यहां तक कि स्कूलों और अस्पतालों जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर को उड़ाने में सेना की सहायता कर सकते हैं. इसका उदाहरण हम यूक्रेन में देश रहे हैं.
स्पेस को जानने और समझने की कोशिश के पिछले 65 से अधिक वर्षों में रूसी अंतरिक्ष यात्रियों ने अमेरिकी स्पेसक्राफ्ट पर उड़ान भरी है और अमेरिका समेत कई अन्य देशों के अंतरिक्ष यात्रियों ने रूसी स्पेसक्राफ्ट पर भरोसा किया है.
शीत युद्ध जब अपने चरम पर था तब भी अमेरिका और सोवियत संघ स्पेस से जुड़ीं इन दो संधियों पर सहमत हुए थे:
1963 में पार्शियल टेस्ट बैन संधि- जो बाहरी अंतरिक्ष में परमाणु हथियारों के टेस्ट पर रोक लगाती है.
1967 में आउटर स्पेस संधि, जो अंतरिक्ष में खोज और उपयोग के लिए मूलभूत सिद्धांतों को तय करती है.
स्पेस टेक्नोलॉजी और खोज में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की बढ़ती आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए उम्मीद रखनी होगी कि युद्ध के बीच तनाव कम हो जाएगा और कम-से-कम यह क्षेत्र रूस और पश्चिमी देशों के बीच दुश्मनी से अछूता रहे.
(इनपुट- द कन्वर्सेशन, स्पेस डॉट कॉम)
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