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Vladimir Putin को सत्ता के मिले 6 और साल, भारत-रूस संबंधों के लिए इसके क्या मायने?

Russian-India Relation: हाल ही में रूस में कुछ ऐसे घटनाक्रम हुए हैं जो भारत और रूस के रिश्ते में बदलाव ला सकते हैं.

मनोज जोशी
दुनिया
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<div class="paragraphs"><p>Vladimir Putin को सत्ता के मिले 6 और साल, भारत-रूस संबंधों के लिए इसके क्या मायने?</p></div>
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Vladimir Putin को सत्ता के मिले 6 और साल, भारत-रूस संबंधों के लिए इसके क्या मायने?

फोटो-PTI

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रूस (Russia) के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) को देश की सत्ता पर काबिज होने के लिए एक और कार्यकाल मिला है. आलोचक इसे व्यंग्य में 'लैंडस्लाइड इलेक्शन' कह रहे हैं. इस चुनाव में पुतिन को कथित तौर पर 87 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले हैं. ये आंकड़ा पिछले चार चुनावों की तुलना में सबसे ज्यादा है.

2012 में पुतिन को 63.6 प्रतिशत वोट मिले थे और 2018 में यह 76.7 प्रतिशत हो गया था. 90 प्रतिशत को छूने वाली ये संख्या एक हद तक असंभव होती है लेकिन अगर फिर भी पुतिन को इतने वोट मिल रहे हैं तो ये इस बात का संकेत है कि रूस की शासन व्यवस्था अब पूरी तरह से निरंकुश है. ये पुतिन का पांचवा कार्यकाल है और यह 2030 में खत्म होने वाला है. 

पश्चिमी देशों ने पहले ही चुनाव नतीजों को दिखावा बताकर खारिज कर दिया था, लेकिन रूस के चुनाव नतीजे आने के बाद चीन, भारत और उत्तर कोरिया जैसे देशों ने पुतिन को बधाई दी. 

पीएम मोदी ने एक मैसेज में कहा कि वह रूस के साथ भारत की मजबूत रणनीतिक साझेदारी को लेकर उम्मीद है.

मतदान के बाद पुतिन ने देर रात प्रेस कॉन्फ्रेंस की जिसमें उन्होंने कहा कि उनकी प्राथमिकताओं में यूक्रेन के खिलाफ "विशेष सैन्य अभियान" है. विशेष सैन्य अभियान को यूक्रेन के खिलाफ हमले के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द बताया जाता है. एक सवाल के जवाब में उन्होंने आगाह किया कि रूस और अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो गठबंधन के बीच सीधा संघर्ष दुनिया को तीसरे विश्वयुद्ध की स्थिति में एक कदम और करीब ले जाएगा और कोई भी इस तरह की स्थिति नहीं चाहता है.

पुतिन का संदेश था कि उन्हें रूस को बदलने, यूक्रेन में जंग जीतने और वैश्विक स्तर पर पश्चिम को पछाड़ कर दुनिया में रूस का नाम आगे करने के लिए बड़ी जीत की दरकार है. उनके सामने एक और बड़ा काम रूस की अर्थव्यवस्था को यूरो-अटलांटिक क्षेत्र से दूर पूर्व और दक्षिण की ओर ले जाना है.

पुतिन की जीत से भारत के लिए क्या मायने निकलते हैं?

अगर भारत और रूस के संबंधों की बात करें तो एक स्तर पर ज्यादा कुछ नहीं है, क्योंकि रूस के साथ हमारे संबंध हमेशा अच्छे रहे हैं और ऐसे ही रहेंगे. लेकिन एक दूसरे स्तर पर काफी कुछ है. रूस-भारत संबंधों की एक खूबी यह रही है कि जबकि दोनों के रिश्ते सैन्य-व्यापार के मोर्चे पर मजबूत होते हैं, तब वाणिज्यिक व्यापार का पक्ष कमजोर पड़ जाता है. यूक्रेन युद्ध का इस पहलू पर परिवर्तनकारी प्रभाव पड़ा है. 

राजनीतिक स्तर पर भले ही पश्चिमी देशों ने रूस को अलग-थलग करने की मांग की हो लेकिन भारत ने इस झगड़े को सुलझाने की कोशिश की है. दोनों पक्षों के नेता एक-दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं और जनवरी में मोदी और पुतिन ने यूक्रेन पर चर्चा करने और अपने-अपने राष्ट्रीय चुनावों के लिए एक-दूसरे को शुभकामनाएं देने के लिए टेलीफोन कॉल किया था. 

20 मार्च को भी पीएम मोदी ने रूस और यूक्रेन से टेलिफोन पर बातचीत की है.

पश्चिमी देशों के प्रतिबंध के बाद रूस ने ग्लोबल साउथ के बाजारों का रूख किया. आंकड़ो की गिनती के मुताबिक, दुनिया के 80 प्रतिशत देश पश्चिमी प्रतिबंधों का पालन नहीं करते हैं. इनमें भारत भी शामिल है. भारत ने अपने घरेलू इस्तेमाल के लिए बड़ी मात्रा में रूसी तेल का आयात किया. इसके अलावा कच्चे तेल को रिफाइन करके भारत ने इसे फिर से निर्यात भी किया. विरोधाभासी रूप से यह ऐसे वक्त हो रहा है जब रूस से हमारे हथियारों का आयात कम हो रहा है. दोनों विकल्पों के अलावा रूस के लिए यह मजबूरी भी है कि वह यूक्रेन जंग के लिए अपने रक्षा हथियारों का उत्पादन को प्राथमिकता दे रहा है.

यह बदलाव हाल ही में हुआ है यह इस तथ्य से स्पष्ट है कि 2021-22 में रूस और भारत के बीच द्विपक्षीय व्यापार 13 बिलियन डॉलर था. 2022-23 तक यह मुख्य रूप से भारतीय तेल आयात की वजह से 49.36 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया. अकेले 2023-24 की अवधि में इसके 65 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है.

हालांकि भारत का रूस को निर्यात बढ़ रहा है, लेकिन वह अभी भी केवल 4 अरब डॉलर का ही निर्यात है और यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें ग्रोथ की खूब संभावनाएं हैं. भारत के साथ रूसी आर्थिक संबंध पारंपरिक निर्यात से ऑटोमोटिव और इलेक्ट्रॉनिक पार्ट्स या अक्षय ऊर्जा तक विस्तार कर सकते हैं. इसके साथ ही भारत एक विनिर्माण केंद्र, ट्रेडिंग पावरहाउस और सेवा आपूर्तिकर्ता के रूप में उभर सकता है.

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रक्षा और व्यापार के संबंध में भारत-रूस के रिश्ते

डिफेंस सेक्टर में जबकि भारत एक आत्मनिर्भर निर्माता के तौर पर उभरने की कोशिश कर रहा है. लेकिन इसके बावजूद कुछ अहम क्षेत्र हैं जहां अब भी रूस प्रासंगिक बना हुआ है. ये मुख्य रूप से परमाणु हथियारों और उनके वितरण प्रणालियों के साथ-साथ परमाणु-चालित पनडुब्बियों से जुड़े रणनीतिक प्रोग्राम हैं.

तात्कालिक घटनाओं से परे ऐसे दीर्घकालिक घटनाक्रम हुए हैं जो भारत-रूस संबंधों को बदल सकते हैं. इसमें से एक है ईस्टर्न मैरीटाइम कॉरिडोर (EMC) जिसका इस्तेमाल कोकिंग कोयला, कच्चा तेल, एलएनजी और उर्वरकों के व्यापार के लिए किया जा सकता है. 

नोट: कोकिंग कोयला का इस्तेमाल ज्यादातर इस्पात बनाने और अन्य औद्योगिक प्रक्रियाओं के लिए किया जाता है. ये थर्मल कोयला से अलग होता है.

पश्चिम एशिया में उपजे तनाव की वजह से जहाजरानी (शिपिंग) खर्च में 40-60 प्रतिशत की तेज बढ़ोतरी हुई है. ऐसी स्थिति में ईएमसी बेहद अहम हो जाता है. ईएमसी चेन्नई को व्लादिवोस्तोक (रूस का एक शहर) से जोड़ता है. सितंबर 2019 में पीएम मोदी और पुतिन ने व्लादिवोस्तोक में अपने वार्षिक शिखर सम्मेलन के दौरान औपचारिक रूप से इस कॉरिडोर की शुरूआत की थी.

एक दूसरे अहम कनेक्टिविटी परियोजना जहां कुछ विकास हो रहे हैं, वह है अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC). यह गलियारा भारत के पश्चिमी बंदरगाहों को ईरान में बंदर अब्बास और चाबहार बंदरगाह से जोड़ता है और वहां से काकेशस के रास्ते  उत्तर की ओर रूस और यूरोप तक जाता है.

हालांकि कई बार टेस्ट किए जाने के बाद गलियारे की व्यवहार्यता को साबित कर दिया गया है. लेकिन इसके बावजूद भारत-रूस व्यापार के गिरते स्तर ने इस रास्ते की उपेक्षा को जन्म दे दिया है. इसके अलावा, गलियारे के कुछ हिस्से हैं जो अब तक पूरे नहीं हुए हैं. इसलिए भारत अमेरिका द्वारा संचालित भारत-मध्य पूर्व आर्थिक गलियारे (IMEC) जैसे विकल्पों की तलाश कर रहा है. ये कॉरिडोर भारतीय बंदरगाहों को इजरायल के हाइफा बंदरगाह और वहां से यूरोप से जोड़ता है. लेकिन इस प्रोजेक्ट के सामने चल रहे इजरायल-हमास युद्ध ने एक बड़ा सवालिया निशान खड़ा कर दिया है.

इस बीच अपनी मजबूरियों की वजह रूस अब दक्षिण की ओर बढ़ रहा है. रणनीतिक रूप से इसका मतलब ईरान के साथ एक विशेष संबंध बनाना है. इसी क्रम में रूस INSTC को बढ़ावा देने की नीयत भी रखता है.

INSTC को बढ़ावा देने के एक महत्वपूर्ण कदम के तौर पर अब ईरान के राश्त को अजरबैजान के अस्तारा से जोड़ने के लिए 162 किलोमीटर लंबी रेल परियोजना शुरू की गई है. इस तरह रूस फारस की खाड़ी में ईरानी बंदरगाहों तक अपनी पहुंच बनाएगा. ऐसा करने से भारत के पश्चिमी तट पर बंदरगाहों तक रूस अपने व्यापार तक अपनी पहुंच को बरकरार रख सकेगा. यह चीन और तुर्की के साथ रूस के व्यापार में भी मददगार साबित होगा.

रूस के लिए पूरब में एक और धुरी चीन है. साल 2023 में रूस के साथ चीन का व्यापार 240 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया था. ये व्यापार एक रिकॉर्ड है. यूक्रेन युद्ध से पहले 2021 की तुलना में यह 64 प्रतिशत की वृद्धि थी. 

पश्चिमी प्रतिबंधों की चपेट में आने के बाद से चीन रूसी तेल का एक प्रमुख गंतव्य रहा है. इसके बदले में मास्को ने कारों से लेकर स्मार्टफोन तक चीनी सामान के आयात को बढ़ा दिया है.

चीन दुनिया भर के सभी देशों में सबसे ज्यादा रूस के साथ ऊर्जा सहयोग का विस्तार करने का इरादा रखता है. वहीं दोनों देशों ने चीनी युआन में व्यापार शुरू कर दिया है. चीनी निर्यात ने रूस को अपने बाहरी व्यापार संबंधों को स्थिर करने में मदद की है.

भारत के लिए क्या है चुनौतियां?

भारत के लिए अमेरिका और रूस दोनों के साथ अपने बढ़ते रणनीतिक संबंधों को संतुलित करने की चुनौती है. भारत-अमेरिका संबंधों में एक साथ मिलकर टेक्नोलॉजी प्रोड्क्ट्स का उत्पादन करना शामिल है. इसके साथ ही चीन को संतुलित करने में एक बड़ा इंडो-पैसेफिक एकजुटता भी शामिल है.

इसमें से कुछ का संबंध चल रहे रक्षा सहयोग से है और इसका कुछ संबंध बहुध्रुवीय दुनिया को प्राथमिकता देने के इसके बड़े परिप्रेक्ष्य से है. इसकी रूस भी वकालत करता है. इस बीच भले ही भारत ने 2022 और 2023 में रूस के साथ सालाना चर्चा (Annual Consultations) को रद्द कर दिया, लेकिन भारत ने औपचारिक रूप से रूस साथ अच्छे राजनीतिक संबंध बनाए रखे हैं.

इस तथ्य को देखते हुए कि रूस यूक्रेन में युद्ध में शामिल है, पुतिन की भविष्य की बहुत सारी नीतियां इसके नतीजों पर निर्भर करती हैं. पश्चिमी प्रतिबंधों ने भले ही तय तरीके से काम नहीं किया हो, लेकिन जंग ने रूस को गहरा नुकसान पहुंचाया है.

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव की वजह से वैश्विक भविष्य पर भी बादल मंडरा रहे हैं. अगर अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप चुने जाते हैं तो वैश्विक स्थिति में अप्रत्याशित बदलाव देखने को मिल सकते हैं. जहां तक भारत का सवाल है,  इसके दृष्टिकोण को कुछ देश भले ही आलोचना की नजर से देख सकते हैं लेकिन एक ऐसी दुनिया में जहां देश अपने-अपने हितों को तरजीह दे रहे हैं वहां भारत भी उसी नीति की देखादेखी कर रहा है. 

(लेखक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली में फेलो हैं. यह एक ओपिनियन है और ऊपर जाहिर किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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