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पुलिस को खुली छूट-संसद बिना भी कोई नियम बनाने का अधिकार,आपातकाल में लंका का हाल

Sri Lanka Crisis: राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने देश छोड़ा,कार्याकारी राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने सेना को छूट दी

वकार आलम
दुनिया
Updated:
<div class="paragraphs"><p>पुलिस को खुली छूट-संसद बिना भी कोई नियम बनाने का अधिकार,आपातकाल में लंका का हाल</p></div>
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पुलिस को खुली छूट-संसद बिना भी कोई नियम बनाने का अधिकार,आपातकाल में लंका का हाल

फोटो- क्विंट हिंदी

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श्रीलंका इस वक्त गहरे संकट (Sri Lanka Crisis) के दौर में है. आर्थिक हालात बद से बदतर हो गए हैं. राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे (Gotabaya Rajapaksa) ने देश छोड़ दिया है और सरकार के नाम पर बदलते नेताओं के बदलते चेहरे सामने आ रहे हैं. इस सबसे त्रस्त जनता पहले सड़कों पर थी जो अब नेताओं के घरों में जा घुसी है. सरकारी टीवी चैनल पर एक तरीके से कब्जा कर लिया है. राष्ट्रपति के देश छोड़ने के बाद प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे (Ranil Wickremesinghe) को राष्ट्रपति का कार्यभार मिला है और उन्होंने एक बार फिर श्रीलंका में इमरजेंसी लगाने की घोषणा की है. और सेना को आदेश दिया है कि व्यवस्था बहाल करने के लिए जो करना पड़े कीजिए. उधर राष्ट्रपति भवन और पीएम ऑफिस पर कब्जे के बाद प्रदर्शनकारी संसद की तरफ निकल गए हैं.

ये पहली बार नहीं है जब श्रीलंका में इमरजेंसी लागू की गई है. श्रीलंका में इमरजेंसी का लंबा इतिहास है. दशकों तक लोगों ने वहां इमरजेंसी को फेस किया है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर श्रीलंका में इमरजेंसी के क्या नियम हैं और लागू होने के बाद किसके पास क्या अधिकार बचते हैं.

श्रीलंका में आपातकाल (Emergency) क्या होता है?

श्रीलंका के संविधान का अनुच्छेद 155 राष्ट्रपति को देश में आपातकाल लगाने का अधिकार देता है. लेकिन उसके लिए देश में बड़े संकट की स्थिति का होना जरूरी है. मतलब अगर राष्ट्रपति को लगे कि देश में बाहरी या आंतरिक संकट है या संकट की आशंको है. तो वो इमरजेंसी लगा सकता है. इसके अलावा आर्थिक संकट आने पर भी वो ऐसा कर सकते हैं.

तो आइए बिंदुवार समझते हैं कि आपातकाल की स्थिति में श्रीलंका में किसके पास क्या अधिकार बच जाते हैं और नियम क्या हैं.

  • आपातकाल के दौरान प्रशासनिक व्यवस्था पूरी तरह केंद्रीय कमान में आ जाती है. इस दौरान पुलिस और सुरक्षा बलों को मनमाने तरीके से किसी को भी गिरफ्तार करने और हिरासत में रखने का अधिकार मिल जाता है.

  • इस दौरान श्रीलंका के राष्ट्रपति को आपातकाल के नियम बनाने का भी अधिकार होता है. जैसे किसी संपत्ति या उपक्रम के अधिग्रहण के लिए, किसी को हिरासत में लेने के लिए, किसी भी परिसर में प्रवेश करने और तलाशी के लिए, किसी भी कानून में संशोधन करने के लिए, किसी भी कानून को निलंबित करने के लिए और संसद में पास कराए बिना किसी कानून को लागू करने के लिए भी राष्ट्रपति को पावर मिल जाती है.

संसद का क्या रोल?

श्रीलंका के संविधान के मुताबिक आपातकाल के नियम एक महीने के लिए वैध होते हैं, लेकिन राष्ट्रपति को एक महीने या इससे अधिक आपातकाल बढ़ाए जाने के लिए हर 14 दिनों में संसद से समर्थन लेना जरूरी होता है. अगर इसे संसद के पटल पर नहीं लाया जाए तो यह आपातकाल खत्म हो जाता है.

प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैस का इस्तेमाल

फोटो- PTI

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श्रीलंका में आपातकाल का लंबा इतिहास

श्रीलंका 1948 में आजाद हुआ और उसके बाद से इस देश में इमरजेंसी का लंबा इतिहास रहा है. सबसे पहले यहां 1958 में आपातकाल लगाया गया था. तब वहां सिंहली को ओनली लैंग्वेज के तौर पर अपनाया गया था. इसी की वजह से इमरजेंसी लगाई गई थी.

इसके बाद 1971 में लेफ्ट विंग जनता विमुक्ति पेरामुना के विद्रोह की वजह से श्रीलंका में इमरजेंसी लगाई गई थी.

27 साल तक लगातार रही इमरजेंसी

श्रीलंका में एक वक्त ऐसा भी आया जब लगातार 27 साल तक आपातकाल रहा. साल 1983 में श्रीलंका सरकार ने इस इमरजेंसी की घोषणा की थी जो 2011 में समाप्त हुई. दरअसल ये LTTE यानी तमिल समूह लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम, जिन्हें तमिल टाइगर्स के नाम से भी जाना जाता है का दौर था. वो अलग राज्य की मांग कर रहे थे और इस आंदोलन की वजह से देश में गृहयुद्ध जैसे हालात थे. इसी वजह से इतने लंबे वक्त तक श्रीलंका में इमरजेंसी लागू रही.

2018 में भी लगी इमरजेंसी

2018 में भी तत्कालीन राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने मार्च में देश के कुछ हिस्सों में मुस्लिम विरोधी हिंसा को रोकने के लिए आपातकाल की घोषणा की थी. हिंसा में दो लोगों की मौत हो गई थी, जबकि आगजनी के कारण संपत्ति का भी नुकसान हुआ था. मोटा-मोटी देखा जाए तो श्रीलंका ने करीब चार दशक की अवधि तक आपातकाल झेला है.

श्रीलंका की सड़कों पर प्रदर्शनकारी

फोटो- PTI

श्रीलंका में राष्ट्रपति का पद दूसरी बार खाली

श्रीलंका में आजादी के बाद ये दूसरी बार है जब राष्ट्रपति की कुर्सी पर कार्यकाल खत्म हुए बिना ही कार्यकारी राष्ट्रपति को बिठाया गया है. 1993 में पहली बार श्रीलंका में राष्ट्रपति कार्यालय खाली हुआ था. तब उस वक्त प्रधानमंत्री रहे डिंगिरी बंडारा विजेतुंगा (Dingiri Bandara Wijetunga) कार्यवाहक राष्ट्रपति (Acting President) बनाए गए थे और वह तब-तक इस पद पर रहे थे जब-तक संसद ने प्रेमदासा के उत्तराधिकारी का चुनाव नहीं किया. इसके बाद 7 मई, 1993 में प्रेमदासा के शेष कार्यकाल को पूरा करने के लिए संसद द्वारा सर्वसम्मति से चुने जाने के बाद विजेतुंगा को तीसरे कार्यकारी राष्ट्रपति के रूप में शपथ दिलाई गई.

उन्होंने 1994 में जल्द ही एक संसदीय चुनाव का एलान कर डाला, हालांकि इसमें विपक्षी एसएलएफपी (SLFP) ने जीत हासिल की. उसके बाद अब फिर से राष्ट्रपति का पद खाली हुआ है क्योंकि मौजूदा राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे देश छोड़कर भाग गए हैं. और प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे कार्यकारी राष्ट्रपति बने हैं.

राष्ट्रपति पर क्या कहता है श्रीलंका का संविधान?

राष्ट्रपति कार्यालय खाली होते ही प्रधानमंत्री कार्यकारी राष्ट्रपति बन जाते हैं. और वह तब तक इस पद पर रहते हैं जब तक संसद किसी को राष्ट्रपति नहीं चुन लेती. राष्ट्रपति का चुनाव कार्यालय खाली होने के 30 दिनों के अंदर होना जरूरी होता है. इस पद पर जो भी बैठता है उसे संसद में बहुमत साबित करना होता है.

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Published: 13 Jul 2022,05:54 PM IST

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