advertisement
अफगानिस्तान में जिसका डर था, वो शुरू हो गया है. अमेरिकी सेना की वापसी के साथ ही कई अफगान इलाकों से सुरक्षा बलों के तालिबान के सामने सरेंडर करने की खबरें आने लगी हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के सलाहकारों समेत कई लोगों को इसका अंदेशा था. ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है कि अमेरिकी सेना की गैरमौजूदगी में तालिबान मजबूत हो रहा है. लेकिन इस बार स्थिति अलग है क्योंकि सेना हमेशा के लिए वापस जा रही है और इससे सबकुछ बदल सकता है.
न्यू यॉर्क टाइम्स ने रिपोर्ट किया है कि तालिबान ने पूर्वी अफगानिस्तान के लघमान प्रांत में सात ग्रामीण सैन्य आउटपोस्ट पर कब्जा कर लिया है. ये हाल की ही घटना है.
1 मई से अमेरिकी सेना की वापसी शुरू हो चुकी है. तब से अब तक लघमान, बगलान, वरदाक और गजनी प्रांत में कम से कम 26 आउटपोस्ट और बेस तालिबान को सरेंडर किए जा चुके हैं.
जो बाइडेन अफगानिस्तान में सेना की भारी मौजूदगी के पक्ष में कभी नहीं रहे हैं. डोनाल्ड ट्रंप कार्यकाल में अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौता हुआ था, जिसके मुताबिक US सैन्य बलों को 1 मई 2021 तक वापसी करनी थी. ये डेडलाइन पूरी कर पाना नामुमकिन था. इसलिए बाइडेन ने ऐलान किया कि सेना की वापसी 11 सितंबर तक पूरी होगी. 11 सितंबर अमेरिका पर हमले की बरसी का दिन होगा. इस भयानक हमले को 20 साल पूरे हो जाएंगे.
इस बात को लेकर जानकारों और एक्सपर्ट्स में सहमति नहीं है कि तालिबान फिर से अफगानिस्तान पर कब्जा कर लेगा या नहीं. 1996 में वो ऐसा कर चुका है. लेकिन वो समय दूसरा था. तब तालिबान का उदय हुआ था, देश गृह युद्ध की चपेट में था, भ्रष्टाचार से परेशान आम जनता के बीच तालिबान को समर्थन मिल रहा था.
20 साल अमेरिकी मौजूदगी ने अफगानिस्तान को बदला है. अफगान सुरक्षा बल को ट्रेनिंग दी गई है, इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार हुआ है, बच्चे स्कूल जा रहे हैं. लेकिन अशरफ गनी सरकार अकेले तालिबान का सामना कर लेगी इस पर सभी को शक है.
अमेरिकी सेना की सबसे ज्यादा मौजूदगी साल 2010-11 में थी. उस समय अफगानिस्तान में 1 लाख करीब सैनिक थे. फिर भी तालिबान खत्म नहीं हुआ था. 1 मई से पहले बमुश्किल 2500 सैनिक देश में मौजूद थे.
द इकनॉमिस्ट के डिफेंस एडिटर शशांक जोशी ने क्विंट हिंदी से कहा था कि 'बाइडेन का फैसला इस तथ्य पर आधारित लगता है कि 20 सालों बाद भी तालिबान हारा नहीं है और उसकी स्थिति पहले से बेहतर है.'
अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना की मौजूदगी कम-ज्यादा होती रही है और इस दौरान तालिबान का प्रभाव हमेशा से दक्षिणी और पूर्वी हिस्सों में ज्यादा रहा है. ये तथ्य बना रहा है कि सरकार केंद्र और शहरों में होगी और तालिबान ग्रामीण इलाकों को गढ़ बनाएगा.
तालिबान का ध्यान शांति वार्ता के साथ-साथ अमेरिकी सेना की वापसी पर भी है. जोशी का कहना था कि 'समय बीतने के साथ संगठन शहरों का नियंत्रण ले सकता है.' इससे तालिबान के पास गनी सरकार के साथ सौदेबाजी करना और आसान हो जाएगा. अमेरिका गनी सरकार पर सभी पक्षों को लेकर सरकार बनाने का दबाव डाल चुकी है. हो सकता है तालिबान का आउटपोस्ट पर कब्जा करना इसी योजना की शुरुआत हो.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)