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पेरिस पर हुए चरमपंथी संगठन आईएसआईएस के हमले के बाद गुस्साए हुए लोगों की प्रतिक्रिया में इस्लामोफोबिया या इस्लाम से डरने की प्रवृत्ति लगातार बढ़ी है. नवंवर 13 के बाद से यूरोप के मुसलमानों ने इस हमले के परिणामों को करीब से महसूस किया है.
वे उन विचारों और हमलों के लिए खुद को अलग-थलग पाते हैं जिनमें शायद उन्होंने ना तो कभी यकीन किया और ना ही कभी हिस्सा लिया. और यह सिर्फ इसलिए क्योंकि वे मुसलमान हैं.
इस्लामोफोबिया शब्द का इस्तेमाल 90 के दशक की शुरूआत में शुरू हुआ जब अमेरिका और इंग्लेंड में दुनिया भर के मुसलमानों को कट्टरता और डर का सामना कर पड़ रहा था. 9/11 के बाद से यह और बढ़ गया था. अब हाल के पेरिस हमले ने आग में घी का काम किया है.
सोशल मीडिया में लगातार इसकी बानगी देखने को मिल रही है.
इंटरनेट पर सर्च की जाए तो आसानी से ऐसे ग्रुप और मैसेज मिल जाएंगे जो मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैला रहे हैं.
पेरिस हमले के बाद, अपने देश से बाहर रहने वाले मुसलमानों को जहां स्थानीय लोगों की नफरत और गुस्से का सामना करना पड़ रहा है वहीं ईरान, ईराक और सीरिया जैसे देशों के लोग उसी आतंकवादी संगठन की वजह से अपना देश छोड़ने पर मजबूर हैं जिसने पेरिस पर हमला किया.
जून 18, 2015 को रिलीज हुई यूएनएचसीआर की ग्लोबल ट्रेंड्स रिपोर्ट: वर्ल्ड एट वॉर के मुताबिक इस समय दुनिया में जितना विस्थापन आज देखा जा रहा है उतना पहले कभी नहीं देखा गया. सिर्फ सीरिया से ही 3.88 मिलियन लोगों को अपना घर और देश छोड़ कर बाहर जाने को मजबूर होना पड़ा. और सबसे दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि इस बड़ी जनसंख्या का कम से कम 51 फीसदी बच्चे थे.
ऐसे में सत्ता में बैठे लोगों का रुख और भी अफसोसनाक है. उदाहरण के लिए अमेरिका में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने वादा किया है कि अगर उन्हें राष्ट्रपति चुना गया तो वे कुछ मस्जिदों को बंद करा देंगे और दूसरे देशों से आए सभी लोगों को वापस उनके देश भेज देंगे.
फ्रांस के नेशनल फ्रंट के नेता मरीन ला पेन ने भी फ्रांस की खुली सीमाओं, कमजोर सुरक्षा व्यवस्था व यहां रहने वाले प्रवासियों को ले कर चिंता जताई है.
अनुवाद: फ्रांस का अपनी सीमाओं पर स्थाई नियंत्रण बेहद जरूरी है.
इंडियाना, यूएसए के गवर्नर माइक पेन्स व कई अन्य लोगों ने प्रवासियों को ले कर इसी तरह की प्रतिक्रियाएं दी हैं.
नफरत भरे संदेशों के अलावा पेरिस हमले के बाद मुसलमानों के खिलाफ हिंसा की घटनाएं भी बढ़ी हैं.
नेब्रास्का के ओमाहा इस्लामिक सेंटर ने सूचना दी कि किसी ने स्प्रे पेंट से उनकी बाहरी दीवार पर एफिल टावर की तस्वीर बना दी. सेंटर के जनरल सेक्रेट्री नासिर हुसैन के मुताबिक शहर के मुसलमान डरे हुए हैं.
ऑस्टिन, टैक्सास में इस्लामिक सेंटर ऑफ फ्लुगरविल के नेताओं को एक मस्जिद के बाहर गंदगी और कुरान के फटे हुए पन्ने पड़े मिले.
लंदन में पिकेडली सर्कस ट्यूब स्टेशन पर पिछले मंगलवार शाम 4 बजे एक 81 वर्षीय व्यक्ति ने चलती हुई ट्रेन में धक्का दे दिया.
टैक्सास के ही ह्यूस्टन इलाके में सोशल मीडिया पर एक मस्जिद को उड़ा देने की धमकी देने के आरोप में गिरफ्तार किया.
रेसि़ज्म के सामाजिक और मानसिक आघात को समझते हुए इस्लामोफोबिया पर सवाल भी उठाए जा रहे हैं. लोग मुसलमान शरणार्थियों के खिलाफ फैलाई जाने वाली नफरत पर दोबारा सोचने की गुजारिश कर रहे हैं.
एक मुसलमान कैब ड्राइवर की कहानी सुनाता एक पोस्ट ट्विटर पर काफी ट्रेंडिंग रहा जिसमें बताया गया था ड्राइवर रो पड़ा क्योंकि पेरिस हमलों के बाद कोई भी यात्री उसकी कैब में नहीं जाना चाहता था.
आतवकवादी हमलों की प्रतिक्रिया में मुसलमानों की तुलना आतंकवादियों से करते पोस्ट्स की फेसबुक और ट्विटर पर बाढ़ आई हुई है. एक समुदाय के तौर पर मुसलमानों के प्रति बढ़ता असंतोष खतरनाक होता जा रहा है.
इस तरह का अतिवादी व्यवहार आतंकवाद के पंजों से बामुश्किल निकले उन लाखों मुसलमान शरणार्थी परिवारों के लिए परेशानी का सबब बन सकता है जो अपने घर से बहुत दूर गैर-मुल्कों में रह रहे है.
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