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भारत अपने पावर ट्रांसमिशन सेक्टर के बिजनेस में दूसरे देशों की एंट्री के नियमों को कस रहा है. साथ ही टेलीकाॅम इक्वीपमेंट सेक्टर पर भी कड़ी निगरानी रख रहा है. सरकार और इंडस्ट्री से जुड़े अधिकारियों का मानना है कि ये कदम इन सेक्टरों में चीन की घुसपैठ पर लगाम लगाने के लिए उठाए जा रहे हैं.
न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने इस बारे में रिपोर्ट छापी है. चीनी फर्म जैसे हार्बिन इलेक्ट्रिक, डोंगफैंग इलेक्ट्रॉनिक्स, शंघाई इलेक्ट्रिक और सिफांग आॅटोमेशन भारत में इक्वीपमेंट की सप्लाई करते हैं. साथ ही इनमें से कुछ कंपनियां 18 शहरों में पावर डिस्ट्रीब्यूशन को मैनेज करती हैं.
वहीं अगर बात करें भारत की कंपनियों की, तो वो पावर सेक्टर में चीन की भागीदारी के खिलाफ लंबे समय से लाॅबिंग में जुटी हैं. वो सुरक्षा संबंधी सवाल उठाती रही हैं. उनका ये भी कहना है कि चीनी बाजारों में उन्हें कोई पहुंच नहीं मिलती.
चीनी व्यापार पर इस तरह अंकुश लगाने के प्रयास को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रशासन में और बल मिला है. इसके पीछे वजह बताई जा रही है कि सरकार साइबर हमले की आशंका से चिंतित है.
भारत सरकार केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) की ओर से तैयार की गई एक रिपोर्ट पर भी विचार कर रही है, जो पावर ट्रांसमिशन कॉन्ट्रैक्ट की बोली लगाने वाली कंपनियों के लिए नए नियम बना रही है, ताकि लोकल कंपनियों को अधिक फायदा मिल सके.
साथ ही उन कंपनियों को विस्तार से बताना होगा कि वो ट्रांसमिशन सिस्टम के लिए कच्चे माल की खरीद कहां से करते हैं. अगर उनकी सामग्री में मैलवेयर पाया गया, तो भारत में उनकी बाकी की योजनाओं को रोक दिया जाएगा.
हालांकि इस रिपोर्ट का चीन से कोई सीधा जुड़ाव नहीं है, लेकिन अधिकारी का कहना है कि इन सिफारिशों का उद्देश्य चीन से भारत को होने वाले सुरक्षा खतरों को बढ़ने से रोकना है.
भारत में बिजली के उपकरणों के निर्यात में लगे एक चीनी इंडस्ट्री के प्रतिनिधि ने चीनी अखबार ग्लोबल टाइम्स को बताया कि भारतीय इंडस्ट्री सुरक्षा मुद्दों के आड़ में विदेशी प्रतिस्पर्धा को रोकने के लिए लंबे समय से कोशिश कर रही है.
अधिकारी का कहना है कि शंघाई इलेक्ट्रिक, हार्बिन इलेक्ट्रिक, डोंगफैंग इलेक्ट्रॉनिक्स और भारत में चलने वाली चीन साउथर्न पावर ग्रिड कंपनी लिमिटेड, ये सभी भारत में अपना बाजार ला चुके हैं या एंट्री की कोशिश में जुटे हैं. इन कंपनियों ने अब तक प्रस्तावित भारतीय निवेश नियमों को लेकर भेजे गए ईमेल का जवाब नहीं दिया है.
वहीं टेलीकाॅम सेक्टर को लेकर भी नियम में सख्ती लाई गई है. सरकारी आदेश में लगभग 21 कंपनियों से कहा गया है कि वे ग्राहकों की डेटा की सुरक्षा-गोपनीयता तय करने के लिए अपनाई जा रही प्रक्रिया और प्रणाली का ब्योरा लिखित में दें. जिन कंपनियों को नोटिस दिया गया है, उनमें चीन के नामी गिरामी ब्रांड वीवो, ओप्पो, शाआेमी और जियोनी शामिल हैं.
फोन बनाने वाली ज्यादातर चीनी कंपनियों के सर्वर चीन में हैं. हालांकि इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने जिन कंपनियों को नोटिस भेजे हैं, उनमें एप्पल, सैमसंग, ब्लैकबेरी जैसी ग्लोबल कंपनियां और कई भारतीय कंपनियां भी शामिल हैं.
भारत में तो चीनी सामानों के बहिष्कार को लेकर भी कैंपेन चलाए गए हैं.
स्वदेश जागरण मंच जो बीजेपी से जुड़ी एक राइट विंग समूह है, इसने ही इस साल एक अभियान चलाया था, जिसमें भारतीयों को चीनी सामान का बहिष्कार करने की अपील की जा रही थी.
भारत में बिजली उत्पादन और वितरण के लिए चीनी उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता रहा है, क्योंकि ये ग्रिड से दूर रह रहे 250 मिलियन लोगों को सस्ती बिजली उपलब्ध कराता है.
भारतीय कंपनियों की बात करें, तो भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड, क्रॉम्पटन ग्रिव्स कंज्यूमर इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड और लार्सन एंड टुब्रो लिमिटेड पावर सेक्टर में काम कर रही हैं.
बिजली मंत्री पीयूष गोयल ने इस महीने संसद को बताया कि चाइना साउदर्न पावर ग्रिड, सीएलपी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के साथ मिलकर पावर ट्रांसमिशन लाइनों के लिए बोली लगाने वाली चीनी कंपनियों में से एक है.
सीईए रिपोर्ट का नया मसौदा तैयार किए जाने पर इंडियन इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के डायरेक्टर जनरल सुनील मिश्रा कहते हैं कि बिजली ट्रांसमिशन के नए नियम स्थानीय उद्योग और उन कंपनियों को मदद देंगे, जिनकी चीन के बाजार में सीमित पहुंच है.
वहीं सीईए रिपोर्ट तैयार करने में शामिल एक अन्य अधिकारी ने जानकारी दी है कि सुरक्षा एजेंसियों ने पावर सेक्टर में आने वाली चीनी कंपनियों के लिए कई तरह के प्रोटोकॉल और चेक लागू किए हैं. यानी सरकार के इस बदलाव को काफी गुपचुप तरीके से शांति के साथ अमल में लाया जा रहा है, जिसका असर चीन पर पड़ेगा.
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