WHO से अमेरिका का अलग हो जाना बहुत बड़ी बात क्यों?

अमेरिका की फंडिंग नहीं मिलने से WHO के कामकाज पर पड़ सकता है असर

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अमेरिका की फंडिंग नहीं मिलने से WHO के कामकाज पर पड़ सकता है असर
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अमेरिका की फंडिंग नहीं मिलने से WHO के कामकाज पर पड़ सकता है असर
(फोटो: Altered by Quint)

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अमेरिका आधिकारिक तौर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से अलग हो रहा है. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने संयुक्त राष्ट्र (UN) को अलग होने की प्रक्रिया को लेकर नोटिस जारी किया है. ट्रंप ने कांग्रेस को भी इस प्रक्रिया के बारे में सूचित किया है. UN ने बताया है कि अमेरिका 6 जुलाई 2021 से अलग हो जाएगा. राष्ट्रपति ट्रंप ने अप्रैल में WHO की फंडिंग पर रोक लगाने का ऐलान किया था.

कोरोना वायरस महामारी के बाद से ट्रंप लगातार WHO पर हमलावर है. ट्रंप ने WHO पर चीन को लेकर पक्षपाती होने का आरोप लगाया था. ट्रंप का आरोप है कि WHO जान बचाने की बजाय पॉलिटिकल करेक्टनेस पर ज्यादा ध्यान दे रहा है.

विदेशी संबंध समिति के प्रमुख डेमोक्रेट सीनेटर बॉब मेनेंडेज ने ट्विटर पर लिखा, "कांग्रेस को नोटिस मिला है कि POTUS ने महामारी के बीच में अमेरिका को WHO से अलग कर दिया है. COVID-19 पर ट्रंप की प्रतिक्रिया को बेतुका कहना कम होगा. ये अमेरिकी जिंदगियों की सुरक्षा नहीं करेगा- ये अमेरिकन्स को बीमार और अमेरिका को अकेला कर देगा."

अमेरिकी फंडिंग पर रोक और अलग हो जाना बड़ी बात क्यों है?

अमेरिका WHO का सबसे बड़ा डोनर रहा है. अमेरिकी फंडिंग पर रोक और उसका WHO से अलग हो जाना संगठन के लिए बहुत बड़ा झटका है. WHO प्रोग्राम बजट, 2018 के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2019 में अमेरिका ने WHO को 550 मिलियन डॉलर से ज्यादा डोनेट किया था. ये WHO के सालाना बजट का करीब 15 फीसदी है.

अमेरिका के बाद बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन दूसरा सबसे बड़ा डोनर है. इस फाउंडेशन ने WHO के कुल फंड का 9.8% दिया है. तीसरे स्थान पर UK है जो अमेरिका का करीब आधा यानी 7.79% डोनेट करता है. इसके बाद जर्मनी का नंबर आता है.

द न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका से हासिल ज्यादातर फंडिंग का इस्तेमाल पोलियो उन्मूलन, वैक्सीन डेवलपमेंट और हेल्थ-न्यूट्रीशन सर्विसेज के लिए किया जाता है. अमेरिकी कॉन्ट्रीब्यूशन का महज 3 फीसदी ही इमरजेंसी ऑपरेशन के लिए और 2.33 फीसदी बीमारियों के रोकथाम के लिए जाता है.

WHO की जरूरत क्यों है?

बता दें कि सेकेंड वर्ल्ड वॉर के बाद स्थापित WHO, कोरोना वायरस जैसी महामारी की स्थिति में दुनियाभर के लिए सेंट्रल को-ऑर्डिनेटिंग बॉडी की तरह काम करता आया है. इसका काम है दुनिया की अलग-अलग हेल्थ एजेंसियों को गाइड करना, आपातकाल की घोषणा करना और आपात स्थिति में दुनिया के अलग-अलग देशों के बीच सूचनाओं और अहम जानकारी को साझा करना.

ऐसे में जब दुनियाभर में कोरोना वायरस के मरीजों की संख्या 1 करोड़ पार कर गई है, WHO का रोल और अहम हो जाता है. अमेरिकी फंडिंग नहीं मिलने से, इसके कामकाज पर असर पड़ सकता है. WHO का काम कोरोना वायरस के संक्रमण को धीमा कर रहा है, अगर इस काम को रोक दिया जाता है, तो दुनिया में कोई भी दूसरा संगठन ये काम नहीं कर सकेगा.

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Published: 08 Jul 2020,02:56 PM IST

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