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‘बेलगाम कंपनी और नौकरी की अनिश्चितता’: US में भारतीय महिलाओं पर टेक लेऑफ की मार

कंपनी पर कानूनी बंधन का अभाव इन उच्च शिक्षित महिलाओं के लिए अवसरों का गला घोंट देता है.

सविता पटेल
दुनिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>H1-B वीजा की अनप्रेडिक्टेबिलिटी के साथ बड़े पैमाने पर छंटनी, भारतीय अमेरिकी महिलाओं पर ज्यादा असर </p></div>
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H1-B वीजा की अनप्रेडिक्टेबिलिटी के साथ बड़े पैमाने पर छंटनी, भारतीय अमेरिकी महिलाओं पर ज्यादा असर

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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"हम शुरू से जानते थे कि H-1B एक जोखिम भरा वीजा है..." द क्विंट से ये कहना था प्रिया का, जिनका 'दिल जरूर टूटा है', लेकिन वो 'हैरान नहीं' हुईं, जब उनकी कंपनी ने छंटनी में अचानक उन्हें निकाल दिया. प्रिया (बदला हुआ नाम) अमेरिका में MBA करने के बाद 2012 से H1-B वीजा पर हैं.

भले ही वो कई सालों से इस अमेरिकी कंपनी के साथ काम कर रही थीं और उनकी नौकरी 'स्टेबल लगती थी', मगर वो और उनके पति शुरू से जानते थे कि नौकरी पर खतरा कभी भी मंडरा सकता है.

"इसका सिर्फ मुझ पर ही नहीं, बल्कि मेरे पति पर भी असर पड़ेगा. वो एक बड़ा सपोर्ट हैं, मगर प्राइमरी वीजा होल्डर मैं हूं."
प्रिया ने द क्विंट को बताया

H-1B वीजा विदेशी, हाई-स्किल्ड वर्कर को US में ज्यादा से ज्यादा छह साल तक रहने और काम करने की इजाजत देता है, लेकिन अगर वीजा होल्डर के पास रोजगार नहीं हैं, तो उसे 60 दिन के भीतर देश छोड़ना होगा.

मुश्किल आर्थिक हालात का सामना कर रही अमेरिकी कंपनियों में बड़े पैमाने पर छंटनी जारी रहने से US में H1-B वीजा होल्डरों में शामिल भारतीय-अमेरिकी महिलाओं की बड़ी आबादी पर प्रतिकूल असर पड़ा है.

H-1B की ‘अनिश्चितता’ पूरे परिवार पर किस तरह असर डाल रही?

H-1B वीजा पर रह रही महिलाओं को एक अलग समस्या का सामना करना पड़ता है, क्योंकि उन पर न सिर्फ अपने करियर, बल्कि अपने पति का भी भार है, और वह अपने करियर, शादी और बढ़ती पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही हैं.

'H-1B की अनिश्चितता' से बचने और 'अपने पति का करियर खतरे में डालने से बचाने' के लिए प्रिया और उनका परिवार 2021 में शिकागो से वाशिंगटन स्टेट में चला गया, जो US-कनाडा सीमा के करीब है.

उन्होंने दो घर मैनेज करने का फैसला किया– एक अमेरिका में और दूसरा सिर्फ चार मिनट की ड्राइव की दूरी पर कनाडा में. उनके पति को 'सौभाग्य' से कनाडा का रेजिडेंसी परमिट मिल गया था.

उनका अमेरिकी परमानेंट रेजिडेंसी आवेदन मंजूर हो गया है, लेकिन ग्रीन कार्ड के बैकलॉग में परिवार 'कई साल की वेटिंग लिस्ट' में है. सरहद पर ये वैकल्पिक व्यवस्था खतरे के समय काम आएगी – अगर उनकी नौकरी छूटने पर उन्हें अमेरिका से बाहर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा, तो वे पूरी तरह बेघर नहीं होंगे.

प्रिया कहती हैं, "पहली पसंद के तौर पर मैं अमेरिका में काम करना चाहती हूं. मैं चाहती हूं कि मेरा बेटा अमेरिका में रहे और यहीं पले-बढ़े, जहां वो पैदा हुआ है. लेकिन हमने तय किया कि अगर कभी मेरी नौकरी छूटती है, तो हम कनाडा में रहेंगे, जो हमारे लिए अब तक अच्छा रहा है. मैं 60 दिन में पैकिंग करने और कहीं दूर जाने के तनाव में नहीं रहना चाहती."

ये परिवार 'फैमिली फ्रेंडली' कनाडा जाने के लिए तैयार है.

क्या भारत वापसी एक विकल्प है?

फेसबुक की पेरेंट कंपनी मेटा में स्ट्रेटजी एंड ऑपरेशंस प्रोफेशनल स्तुति मोहन के लिए इस टेक्नोलॉजी कंपनी में छंटनी का मतलब है 30 फीसदी सहयोगियों को खो देना और अपनी टीम को नए सिरे से तैयार करना.

वो पांच साल से अमेरिका में हैं, पहले एक स्टूडेंट के रूप में और अब H-1B वीजा पर. टेक कंपनी में छंटनी ने इनके माता-पिता को फिक्र में डाल दिया है. वो कहती हैं, "मेटा में ढेरों छंटनी की खबरों के बीच मैं यहां (सैन फ्रांसिस्को बे एरिया) हूं, वहां भारत में मेरे मां-बाप बहुत ज्यादा फिक्रमंद हैं."

भले ही उनके मां-बाप 'उनका साथ देते हैं और आर्थिक स्वतंत्रता के मामले में उनपर यकीन करते हैं,' मगर उनपर शादी करने का दबाव हमेशा बना रहता है.

आने वाले समय में छंटनी का खतरा हमेशा मंडराता रहेगा, लेकिन वो समझती हैं कि 'भविष्य में छंटनियां आम होंगी' और ऐसे हालात पैदा होने पर उन्हें भारत में काम करने में ‘कोई एतराज नहीं’ है. मगर ऐसा सोचने वाले बहुत कम हैं.

प्रिया के लिए, जिन्हें भारत में रहना ‘सुरक्षित नहीं लगता’, भारत लौटना पसंदीदा विकल्प नहीं है, "भारत में एक महिला के रूप में रोजमर्रा की जिंदगी मेरी सबसे बड़ी चुनौती है."

"दिल्ली ऐसी जगह है, जहां मैं सिर्फ सुरक्षा कारणों की वजह से नहीं जाना चाहती. अगर भविष्य में मेरी बेटी होगी, तो मैं वहां उसकी परवरिश नहीं करना चाहूंगी. भारत में मेरा परिवार है और मेरा इरादा उन लोगों को चोट पहुंचाना नहीं है, जो वहां रहना पसंद करते हैं, लेकिन मुझे कोई बदलाव नहीं दिखता. मैं 12 साल से अमेरिका में हूं, और सड़क पर छेड़खानी या बदतमीजी जैसी एक भी हरकत मेरे साथ नहीं हुई!"
प्रिया ने द क्विंट को बताया
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मदरहुड और करियर के बीच संतुलन बनाने कोशिश कर रही महिलाएं

ये सभी जानते हैं कि बच्चे पैदा करना और पालना, महिलाओं के करियर के लिए बहुत भारी पड़ता है. मदरहुड के सबसे नाजुक समय में छंटनी होने पर नुकसान और तकलीफदेह है.

एक मां, नमिता (बदला हुआ नाम) जब बच्चे की परवरिश के लिए छुट्टी पर थीं, तभी ट्विटर ने उन्हें नौकरी से निकाल दिया, जहां वो दो साल से काम कर रही थीं. वो बताती हैं,

"मैं 20 हफ्ते की मैटरनिटी लीव पर थी, और मुझे 18वें हफ्ते में नौकरी से निकाल दिया गया. मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरी मैटरनिटी के दौरान मुझे नौकरी से निकाला जा सकता है, वो भी अमेरिका में. इसने बेहद नाजुक समय में तनाव को और बढ़ा दिया, जिससे मेरे शरीर में बच्चे के लिए दूध बनना भी कम हो गया. अजीब बात ये है कि मुझे बकाया छुट्टियों के लिए पेमेंट तक नहीं किया गया."

अपने नवजात की देखभाल पर ध्यान केंद्रित करने की योजना बना रही नमिता, मदरहुड के साथ इंटरव्यू कॉल्स के लिए तैयार नहीं थीं.

शादी के बाद नमिता डिपेंडेंट वीजा पर अमेरिका आई थीं और जॉब मार्केट में जगह बनाने के लिए उन्होंने MBA किया. ट्विटर में फैमिली लीव पॉलिसी से निराश होकर वो कहती हैं, "मेरे काम में ज्यादा स्थिरता थी, क्योंकि मेरे पति अपनी मौजूदा नौकरी में नए थे और उन्हें अक्सर ट्रैवल करना होता था. मैंने ट्विटर में नौकरी के लिए बहुत मेहनत की थी. अजीब ये है कि फैमिली लीव पर किसी महिला के साथ ऐसा हो सकता है. लेकिन ऐसा पहली बार नहीं है जब मुझे टेक कंपनी में भेदभाव का सामना करना पड़ा है."

सौभाग्य से नमिता ने अपने अमेरिकी सफर में एक खास मंजिल को हासिल कर लिया है – वो अमेरिकी नागरिक बन चुकी हैं, और अब नौकरी की तलाश या देश में रहने के लिए H-1B वीजा पर निर्भर नहीं हैं.

अमेरिकी परमानेंट रेजिडेंसी, आप्रवासी परिवारों के लिए कई सुविधाओं का रास्ता खोलती है, जो भारतीयों को सालों से नहीं मिली, और कुछ को शायद उनकी पूरी जिंदगी में नहीं मिल पाएगी, क्योंकि उनके लिए ग्रीन कार्ड की लाइन काफी लंबी है, कुछ कैटेगरी के लिए दशकों लंबी.

H-1B वीजा पर आए भारतीय-अमेरिकी परिवारों के बीच अक्सर भेदभाव का मसला उठता है. साल 2014 से H-1B वीजा होल्डर वर्कर के जीवनसाथी को अप्रूव्ड ग्रीन कार्ड पिटीशन पर H-4 डिपेंडेंट वीजा के साथ अमेरिका में काम करने की इजाजत है, लेकिन तीन साल में जैसे ही उनका H-4 वीजा खत्म होता है, उनको मिली इजाजत खत्म हो जाती है.

रिन्यूअल की प्रक्रिया में नौकरी छूट जाती है और रोजगार की निरंतरता टूट जाती है, जिससे करियर बनाना मुश्किल हो जाता है. कानून इस तरह बनाया गया है कि जैसे ही H-1B वीजा होल्डर की नौकरी छूटती है, H-4 EAD (Employment Authorisation Document) होल्डर की भी नौकरी खत्म हो जाती है.

शर्मिंदगी का अहसास, कंपनी की मनमानी

मौजूदा H-4 EAD होल्डर में 93 फीसदी से ज्यादा दक्षिण एशियाई महिलाएं हैं. ऊंची डिग्री और काम का अनुभव रखने वाले H4-EAD भारतीय समुदाय के बीच साइंस, टेक्नोलॉजी और हेल्थकेयर में करियर काफी लोकप्रिय है.

कंपनी पर कानूनी बंधन का अभाव और H-1B वीजा होल्डर पति से अलग कोई कानूनी पहचान न होना, इन उच्च शिक्षित महिलाओं के लिए अवसरों का गला घोंट देता है. 'पति को सपोर्ट करने' और अमेरिका आने के लिए 'अपनी ऊंची तनख्वाह वाली नौकरी' छोड़कर आने वाली इन महिलाओं के लिए टेक कंपनियों से छंटनी ने 'शर्मिंदगी के अहसास' को बढ़ा दिया है.

'द अपॉर्च्युनिटी ट्रैप: हाई-स्किल्ड वर्कर्स, इंडियन फैमिलीज, एंड द फेल्यर्स ऑफ द डिपेंडेंट वीजा प्रोग्राम' किताब की राइटर और कैलगरी यूनिवर्सिटी में सोशियोलॉजिस्ट डॉ पल्लवी बनर्जी कहती हैं कि अपने देश में परिवार और दोस्तों के साथ संपर्क बनाए रखने की जिम्मेदारी अक्सर महिलाओं पर आ जाती है.

वो समझाती हैं, "नौकरी जाने की खबर देने की जिम्मेदारी उनपर आ जाती है. H-4 की नौकरी छूटने की शर्मिंदगी दोहरी हो जाती है, क्योंकि किसी पर निर्भर होने से शर्मिंदगी जुड़ी होती है, और अब उनके पार्टनर की नौकरी भी जा चुकी है. ये उम्मीद कि आने वाले समय में वो अपनी खोई नौकरी पा लेंगे, ये उम्मीद भी खत्म हो जाती है."

रिसर्च से पता चलता है कि अश्वेत महिला कर्मचारी को कम वेतन मिलता है और कॉरपोरेट जगत के वरिष्ठ पदों पर उनकी नुमाइंदगी कम है. टेक इंडस्ट्री में हालिया छंटनी की बाढ़ से महिलाओं पर गहरी मार पड़ी है. अश्वेत महिलाएं और बच्चों वाली महिलाएं छंटनी के लिहाज से ज्यादा असुरक्षित हैं.

अमेरिकी टेक इंडस्ट्री, जो लंबे समय से वर्क फोर्स में विविधता बनाए रखने के लिए कोशिश कर रही है, अब अपनी वर्कफोर्स में महिलाओं और दूसरे अल्पसंख्यकों को हिस्सेदारी देने के लिए 'विविधता, समानता और समावेशन' को कायम रखने की चुनौती का सामना कर रही है. दूसरी तरफ, H-1B वीजा और H-4 EAD वाली उच्च शिक्षित भारतीय-अमेरिकी महिलाएं, अमेरिकी जिंदगी जीने और अमेरिकी अर्थव्यवस्था में योगदान देने के लिए बेताब हैं.

(सविता पटेल सैन फ्रांसिस्को बे एरिया में रहने वाली पत्रकार और प्रोड्यूसर हैं. वो भारतीय प्रवासियों, भारत-अमेरिका संबंध, जिओ-पॉलिटिक्स, टेक्नोलॉजी, पब्लिक हेल्थ और एनवायरमेंट पर लिखती हैं. उनका ट्विटर हैंडल @SsavitaPatel है.)

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