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अमेरिका महंगाई की चपेट में है. अमेरिका (America) में महंगाई ने बीते 40 सालों के नए उच्च स्तर को छू लिया है. यूएस ब्यूरो ऑफ लेबर स्टैटिस्टिक्स के मुताबिक अमेरिका में जनवरी में मुद्रास्फीति की दर 12 महीने पहले की तुलना में बढ़कर 7.5 प्रतिशत के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है. मतलब पिछले एक साल में अमेरिका में महंगाई की दर (Inflation Rate) लगभग 7.2 प्रतिशत तक पहुंच गई है, जो चालीस साल में सबसे ज्यादा है.
बता दें कि किसी भी अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं (goods and services) की कीमतें मांग और आपूर्ति (demand and supply) से निर्धारित होती हैं. वहीं दूसरी ओर, जब अर्थव्यवस्था में वस्तुओं की आपूर्ति मुद्रा आपूर्ति (money supply) की तुलना में तेज गति से बढ़ती है, तो कीमतों में गिरावट आती है.
बता दें कि अमेरिका और दुनिया भर के दूसरे देशों में, पिछले दो सालों में या तो COVID-19 महामारी और इससे निपटने के लिए लगाए गए सख्त लॉकडाउन के कारण वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति में गिरावट आई है.
द हिंदू अखबार में प्रशांत पेरुमाल अपने लेख में लिखते हैं कि यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि अमेरिका और दूसरे देशों में धन की आपूर्ति भी उनके संबंधित केंद्रीय बैंकों द्वारा आर्थिक मंदी से लड़ने के लिए अलग-अलग माध्यमों से की गई थी. उदाहरण के लिए, अमेरिका में, व्यापक मुद्रा आपूर्ति (M3) में महामारी की शुरुआत के बाद से लगभग एक-तिहाई की वृद्धि हुई है. इसलिए, वस्तुओं और सेवाओं (goods and services) की सप्लाई में गिरावट और मुद्रा आपूर्ति में बढ़ोतरी, दोनों ने मिलकर बढ़ती कीमतों की मौजूदा प्रवृत्ति में योगदान दिया है.
जहां एक तरफ अमेरिका महंगाई की मार झेल रहा है वहीं अब इसका असर भारतीय बाजार पर भी दिखने लगा है. भारतीय शेयर बाजार में पिछले हफ्ते गिरावट देखने को मिली थी.
इसके अलावा एक और वजह है जिसका असर भारत पर पड़ सकता है. अमेरिका में महंगाई को कंट्रोल में करने के लिए फेडरल रिजर्व (US federal reserve) पर इंट्रेस्ट रेट बढ़ाने का दबाव रहेगा तो वो इंट्रेस्ट रेट तेजी से बढ़ा सकता है. इससे भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर होगा.
इसे ऐसे समझते हैं कि वो भारतीय कंपनियां जो विदेशों से फंड जुटाने की कोशिश करती हैं, उनके लिए ऐसा कर पाना महंगा हो जाएगा, क्योंकि अमेरिकी निवेशक अमेरिका में ही निवेश करना चाहेंगे.
वहीं दूसरी ओर रिजर्व बैंक को घरेलू स्तर पर अपनी ब्याज दरें बढ़ाकर अपनी मॉनेटरी पॉलिसी में तालमेल बिठाना होगा, बदले में इससे इंफ्लेशन बढ़ सकता है, क्योंकि प्रॉडक्शन कॉस्ट बढ़ जाएगा.
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