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अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव को लेकर हलचल काफी तेज हो चुकी है. मौजूदा राष्ट्रपति और रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप दोबारा राष्ट्रपति बनने के लिए हर संभव कोशिश करते दिख रहे हैं. इस चुनाव में ट्रंप के प्रतिद्वंदी हैं- डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडेन. प्रमुख नेशनल ओपिनियन पोल्स के मुताबिक, बाइडेन चुनाव में ट्रंप पर भारी दिख रहे हैं. इसके बावजूद भी, अभी इस बात का पुख्ता अनुमान लगाना कि राष्ट्रपति कौन बनेगा, मुश्किल ही है. ऐसा क्यों है, ये समझने की कोशिश करते हैं. इसके साथ ही इस चुनाव को लेकर ट्रंप और बाइडेन की मौजूदा स्थिति को अलग-अलग आधार पर देखते हैं.
सबसे पहले नेशनल पोल्स की बात करते हैं. रियल क्लियर पॉलिटिक्स के 16 सितंबर के नेशनल पोल एवरेज के मुताबिक, बाइडेन को 49 फीसदी समर्थन हासिल है, वहीं ट्रंप के लिए यह आंकड़ा 43.1 फीसदी है.
यहां बाइडेन के लिए अच्छी बात यह है कि उन्हें बढ़त हासिल है, जबकि उनके लिए चिंता की बात यह है कि पिछले कुछ दिनों में इस बढ़त का आंकड़ा लगातार कम हुआ है.
दरअसल, अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में पूरे देश में जनता के वोट यानी पॉपुलर वोट से ज्यादा अहमियत इलेक्टोरल वोट की होती है क्योंकि अब तक 5 चुनावों में ऐसा देखने को मिला है कि कोई उम्मीदवार पॉपुलर वोट में जीत गया हो, लेकिन वह इलेक्टोरल वोट में हारने की वजह से राष्ट्रपति चुनाव हार गया. अब अगर आपके मन में सवाल उठ रहा है कि इलेक्टोरल वोट के आधार पर राष्ट्रपति का चुनाव कैसे होता है तो उसे समझने के लिए ये वीडियो देखिए:
जिन चुनावों में उम्मीदवारों ने पॉपुलर वोट में जीत हासिल करके भी राष्ट्रपति चुनाव गंवाया, उनमें साल 1824, 1876, 1888, 2000 और 2016 के चुनाव शामिल हैं. साल 2016 के चुनाव में वोटिंग से ठीक पहले तक नेशनल पोल्स में डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन बढ़त बनाए हुए थीं, यह बढ़त नतीजे में भी बदली जब हिलेरी को ट्रंप से ज्यादा पॉपुलर वोट मिले, मगर वह इलेक्टोरल वोट में पिछड़ने की वजह से राष्ट्रपति चुनाव हार गईं. ऐसे में आप सोच रहे होंगे कि किसी राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए जब आखिर में इलेक्टोरल वोट ही मायने रखते हैं तो क्यों न उस आधार पर ट्रंप और बाइडेन की मौजूदा स्थिति को देखा जाए. तो चलिए, अब इलेक्टोरल कॉलेज पोल पर नजर दौड़ाते हैं.
किसी भी उम्मीदवार को राष्ट्रपति बनने के लिए कुल 538 इलेक्टोरल वोट में से कम से कम 270 इलेक्टोरल वोट हासिल करने होते हैं.
यहां ‘भारी संभावना’ से लेकर ‘टॉस अप्स’ तक जो अलग-अलग कैटिगरी दी गई हैं, वो किसी उम्मीदवार के लिए किसी राज्य के इलेक्टोरल वोट जीतने की अलग-अलग संभावनाओं पर आधारित हैं. ‘भारी संभावना’ वाली कैटिगरी की बात करें तो इसमें कैलिफॉर्निया जैसे राज्य हैं, जहां बाइडेन को ट्रंप पर 30.3 प्वाइंट की बढ़त हासिल है.
दरअसल, अमेरिका के बहुत से राज्यों में किसी एक उम्मीदवार की दूसरे उम्मीदवार पर बढ़त काफी ज्यादा है, ऐसे में उन राज्यों में जीत का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है. जबकि कुछ राज्य ऐसे हैं, जहां दोनों उम्मीदवारों के जीतने की संभावना है और ‘टॉस अप्स’ कैटिगरी लागू होती है. ऐसे राज्यों को 'बैटलग्राउंड स्टेट' कहा जाता है. उम्मीदवार अपने चुनावी अभियान की काफी ऊर्जा ऐसे ही राज्यों में खपाते दिखते हैं.
बार चार्ट में जिन राज्यों के आंकड़े हैं, वो 16 सितंबर के अपडेट के आधार पर हैं. इससे कुछ दिन पहले के आंकड़े देखें तो बैटलग्राउंड स्टेट्स में टेक्सस, ओहायो, वर्जीनिया, न्यू हैंपशायर और आयोवा समेत और भी कुछ राज्य शामिल हैं.
ट्रंप प्रशासन कोरोना वायरस महामारी से जिस तरह निपटा है, उसका नतीजा यह है कि कुल कन्फर्म्ड केस के मामले में दुनिया में अमेरिका का पहला स्थान है. ट्रंप को चुनाव में इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है. इस मोर्चे पर ट्रंप की अप्रूवल रेटिंग की हालत खराब है और भविष्य में इन रेटिंग्स में कुछ खास सुधार की संभावना भी नहीं जताई जा सकती. हाल ही में वरिष्ठ पत्रकार बॉब वुडवर्ड की किताब के जरिए यह दावा सामने आया है कि ट्रंप को पता था कि कोरोना वायरस का खतरा काफी गंभीर है, लेकिन उन्होंने इसे उतनी गंभीरता से जनता के बीच नहीं स्वीकारा. इस दावे ने काफी सुर्खियां बटोरी हैं, शायद इसलिए भी, क्योंकि वुडवर्ड एक जानेमाने पत्रकार हैं, जिनकी वॉटरगेट स्कैंडल में की गई रिपोर्टिंग को आज भी याद किया जता है.
मई 2020 में अफ्रीकी-अमेरिकी जॉर्ज फ्लॉयड की मौत के बाद अमेरिका में नस्लवाद का मुद्दा एक बार फिर तेजी से उठ खड़ा हुआ है.
ऐसे में साफ है कि इस चुनाव में ट्रंप की तुलना में बाइडेन के लिए यह मुद्दा ज्यादा अहम है. हालांकि एक मुद्दा ऐसा है, जिसे लेकर बाइडेन जरूर चिंतित होंगे, वो है इकनॉमी का मुद्दा. हाल ही में द हिल में मार्क पेन ने लिखा था कि जिन पोल्स में ट्रंप 7 से लेकर 10 प्वाइंट्स तक पिछड़ रहे हैं, वहां इकनॉमी के मोर्चे पर उनके पास 5 या उससे ज्यादा प्वाइंट्स की बढ़त है. इसका मतलब है कि अभी ऐसे वोटरों की अच्छी खासी संख्या है, जिनके लिए राष्ट्रपति उम्मीदवार के तौर पर बाइडेन पहली पसंद हैं, लेकिन वे सोचते हैं कि ट्रंप इकनॉमी को लेकर अच्छा काम करेंगे. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि ट्रंप जनरल इलेक्शन की वोटिंग तक इस मुद्दे को कितना भुना पाते हैं.
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