इजरायल-फिलिस्तीन पर बदल रहा US का रवैया?

जो बाइडेन पर इजरायल को ‘युद्ध अपराधों’ के लिए जिम्मेदार ठहराने का दबाव है

नमन मिश्रा
दुनिया
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जो बाइडेन पर इजरायल को ‘युद्ध अपराधों’ के लिए जिम्मेदार ठहराने का दबाव है
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जो बाइडेन पर इजरायल को ‘युद्ध अपराधों’ के लिए जिम्मेदार ठहराने का दबाव है
(फोटो: अरूप मिश्रा/क्विंट)

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इजरायल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू (Benjamin Netanyahu) के लिए फिर से एक डेमोक्रेट अमेरिकी राष्ट्रपति मुश्किलें खड़ी कर रहा है. बराक ओबामा के बाद अब जो बाइडेन (Joe Biden) मिडिल ईस्ट को अपने हिसाब से डील करने की कोशिश कर रहे हैं और इससे शायद क्षेत्र में अमेरिका के सबसे बड़े साथी इजरायल (Israel) के साथ रिश्तों में तनाव आ सकता है. इस बार वजह ईरान नहीं, इजरायल के बगल में मौजूदा फिलिस्तीन है.

बाइडेन के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन 25 मई को इजरायली शहर तेल अवीव पहुंचे. नेतन्याहू से मुलाकात के बाद ब्लिंकेन ने वेस्ट बैंक में रामल्लाह का रुख किया और फिलिस्तीनी अथॉरिटी के राष्ट्रपति महमूद अब्बास से मिले.

ब्लिंकेन की ये दोनों मुलाकातें इजरायल और हमास के बीच हुए सीजफायर के 3 दिन बाद हुई. 11 दिनों तक चले खूनी संघर्ष में सीजफायर कराने में अमेरिका और मिस्र ने बड़ी भूमिका निभाई थी. कहा जा रहा था कि ब्लिंकेन इजरायल और गाजा के बीच सीजफायर को मजबूत करने मिडिल ईस्ट गए हैं.

हालांकि, बाइडेन पर इजरायल को 'युद्ध अपराधों' के लिए जिम्मेदार ठहराने और अमेरिका के बढ़ते समर्थन को रोकने का दबाव है. ऐसे में ब्लिंकेन जब गाजा के पुनर्निर्माण में अमेरिकी मदद, 4 करोड़ डॉलर की वित्तीय सहायता और फिलिस्तीन में एक राजनयिक पहुंच दफ्तर खोलने का ऐलान करते हैं तो सवाल उठने लाजिमी हैं कि क्या इजरायल को लेकर अमेरिका का रवैया बदल रहा है?

प्रशासन का पता नहीं, जनता का मूड जरूर बदला है

18 मई को राष्ट्रपति जो बाइडेन मिशिगन के डेट्रॉइट शहर पहुंचे थे. इजरायल और हमास के बीच हिंसा पूरे जोरों पर थी. इजरायल रोजाना गाजा पट्टी पर एयर स्ट्राइक कर रहा था. निशाना हमास को बताया जा रहा था, लेकिन निशाना महिलाएं, बच्चें और घर बन रहे थे. हमास भी इजरायल पर रॉकेट दाग रहा था.

डेट्रॉइट पहुंचते ही एयरपोर्ट पर बाइडेन की मुलाकात उन्हें लेने पहुंची मिशिगन से रिप्रेजेंटेटिव रशीदा तलीब से हुई. तलीब अमेरिकी संसद में इकलौती फिलिस्तीनी-अमेरिकी हैं. डेमोक्रेट तलीब ने बाइडेन से एयरपोर्ट पर ही करीब 8 मिनट बात की. सहयोगी ने बाद में बताया कि तलीब ने बाइडेन से इजरायल को मिलने वाले ‘बिना शर्त समर्थन’ पर आपत्ति जताई.
रशीदा तलीब के साथ जो बाइडेन(फोटो: @CharlieInUtah/Twitter)

इसके बाद जब बाइडेन का काफिला डेट्रॉइट की सड़कों से गुजरा तो दोनों तरफ फिलिस्तीन के झंडे लिए भीड़ खड़ी थी. शहर में वैसे भी अरब-अमेरिकी समुदाय सबसे बड़ी संख्या में मौजूद हैं.

अमेरिका में फिलिस्तीन का मुद्दा हमेशा से ज्वलनशील रहा है. राष्ट्रपति भी मोटा-मोटी एक ही तरह से इजरायल और फिलिस्तीन मुद्दे या हिंसा पर प्रतिक्रिया देते रहे हैं. लेकिन पिछले एक दो सालों में अमेरिका बदल चुका है. डोनाल्ड ट्रंप के समय शुरू हुए ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन के बाद से नस्लीय और मानवाधिकार मुद्दों पर विमर्श बढ़ गया है.

यूथ इन आंदोलनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहा है. सोशल मीडिया और आम बातचीत में इजरायल-फिलिस्तीन मुद्दे में एक नया शब्द 'अपार्थीड' या 'रंगभेद' आम हो चला है. यंग अमेरिकियों के बीच इजरायल के लिए समर्थन कम हो रहा है. इस बात का अंदाजा YouGov के उस सर्वे से लगाया जा सकता है, जिसमें पता चला कि 30 से कम उम्र के सिर्फ 45.5% अमेरिकी इजरायल को US का सहयोगी मानते हैं. 65 से ज्यादा उम्र के लोगों के बीच ये आंकड़ा 83.8% फीसदी है. दो आयु समूहों के बीच इतना बड़ा अंतर पीढ़ीगत बदलाव का संकेत देता है.

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अमेरिकी राजनीति में इजरायल पर बदले विचार?

इजरायल-हमास विवाद का असर अमेरिकी राजनीति पर इस बार स्पष्ट रूप से देखने को मिला. डेमोक्रेट्स ने बाइडेन पर इजरायल को लेकर सख्त रवैया अख्तियार करने का दबाव बनाया.

ये दबाव सबसे ज्यादा लेफ्ट और प्रगतिवादी राजनीति करने वाले डेमोक्रेट्स की तरफ से था. इसमें न्यू यॉर्क से रिप्रेजेन्टेटिव एलेक्सेंड्रिया ओकेसियो-कॉर्टेज और वर्मोंट से सीनेटर बर्नी सैंडर्स के नाम प्रमुख हैं. इजरायल को मिडिल ईस्ट में अकेला छोड़ देने की वकालत कोई नहीं कर रहा है, बल्कि ये डेमोक्रेट्स फिलिस्तीनी मुद्दों पर इजरायल को उसकी सीमाएं बताने के पक्ष में हैं.  

डेमोक्रेटिक पार्टी में इजरायल के सबसे पक्के सहयोगियों में से एक सीनेटर बॉब मेनेंडेज ने भी इजरायल की एयर स्ट्राइक्स में लोगों की मौत पर 'चिंता' जताई थी. हालांकि, अमेरिकन इजरायल पब्लिक अफेयर्स कमेटी (AIPAC) और रिपब्लिकन पार्टी ने इजरायल पर जल्दीबाजी में कोई फैसला लेने से चेताया है. फिर भी अमेरिकी राजनीति में फिलिस्तीन के मुद्दे पर हो रहा बदलाव साफ दिख रहा है.

ये जो बाइडेन के लिए भी चुनौती है क्योंकि राष्ट्रपति चुनाव की कैंपेनिंग के दौरान उन्होंने खुद को मानवाधिकारों के चैंपियन के तौर पर जनता के सामने रखा था. बाइडेन के लिए फिलिस्तीन का मुद्दा दरकिनार करना आसान नहीं है. ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिकी नीति एकतरफा रूप से इजरायल के प्रति झुकी हुई थी. लेकिन अब ऐसा नहीं है और इसका सबूत बाइडेन ने सीजफायर के बाद अपने बयान में दिया, जब उन्होंने इजरायल-फिलिस्तीन विवाद का समाधान 'सिर्फ दो राष्ट्र के फॉर्मूले' को बताया.

इजरायल-अमेरिकी संबंध खराब होने का खतरा

पिछली बार जब एक डेमोक्रेट व्हाइट हाउस में आया था तो बेंजामिन नेतन्याहू और इजरायल के रिश्ते अमेरिका के साथ सबसे खराब स्थिति में पहुंच गए थे. बराक ओबामा ने बिना इजरायल को साथ लिए ईरान से परमाणु डील पर बातचीत शुरू कर दी थी. नेतन्याहू के लिए ये बुरे सपने से कम नहीं था.

(फोटो: Wikimedia Commons)

इस बार व्हाइट हाउस में ओबामा के उपराष्ट्रपति बाइडेन मौजूद हैं और वो नेतन्याहू के बर्ताव से वाकिफ हैं. इजरायल मिडिल ईस्ट में अमेरिका का सबसे भरोसेमंद साथी है. सामरिक और राजनीतिक लिहाज से इजरायल से संबंध खराब करना अमेरिका के हित में नहीं है.

बाइडेन के लिए आगे की डगर बहुत कठिन होने वाली है. उन पर ईरान के साथ परमाणु डील पर वापस लौटने का दबाव है, जिसके इजरायल सख्त खिलाफ है. बाइडेन इस डगर से सावधानी से आगे बढ़ रहे हैं. अमेरिका फिलिस्तीन को 360 मिलियन डॉलर की मदद देने का ऐलान कर रहा था और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इजरायल के खिलाफ प्रस्ताव को वीटो भी कर रहा था.  

बाइडेन और नेतन्याहू का एजेंडा फिलिस्तीन को लेकर भी एकदम अलग है. बाइडेन फिलिस्तीनी अथॉरिटी को मदद मुहैया करा रहे हैं, जिससे कि महमूद अब्बास की स्थिति मजबूत हो. वहीं, एक्सपर्ट्स कहते हैं कि नेतन्याहू इसके उलट हमास को मजबूत रखने की दिशा में काम करते हैं, जिससे कि अथॉरिटी वेस्ट बैंक से बाहर गाजा में प्रभावशाली न हो पाए. हमास और अथॉरिटी एक-दूसरे के विरोधी हैं और आपस की लड़ाई नेतन्याहू को फायदा दिला सकती है.

अमेरिका अब भी इजरायल का सबसे बड़ा सहयोगी है, पर उसकी निर्भरता में कमी आई है. इजरायल अपने कई पड़ोसी देशों के साथ सुलह कर चुका है. अब वो अरब देशों के बीच फंसा अमेरिका का ‘बेचारा’ दोस्त नहीं है. वित्तीय और राजनयिक सहयोग के बावजूद इजरायल अमेरिका को याद दिलाता रहता है कि अब स्थिति 80 और 90 के दशक की नहीं है.  
नेतन्याहू मिट रोमनी मुलाकात(फोटो: @jamesperloff/Twitter)

इसका उदाहरण बराक ओबामा के दोबारा राष्ट्रपति बनने के समय देखने को मिला था. ईरान परमाणु डील से खफा नेतन्याहू ने खुलेआम ओबामा के विपक्षी मिट रोमनी से मुलाकात की थी. वो पहली बार था कि कोई इजरायली पीएम अमेरिकी राजनीति में इस तरह दखल दे रहा था. जो बाइडेन ने इन वाकयों को बहुत करीब से देखा है. मानवाधिकारों पर अपने वादों को निभाते समय बाइडेन को ये सब बातें जरूर याद आएंगी.

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