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दुनिया के सबसे बड़े झरनों में एक विक्टोरिया फॉल सूखने के कगार पर

अफ्रीका क्षेत्र में शताब्दी के सबसे बड़े सुखाड़ के कारण अब विक्टोरिया फॉल सिकुड़ कर पतली धार में बदल गया है.

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दुनिया के सबसे बड़े झरनों में एक विक्टोरिया फॉल सूखने के कगार पर
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दुनिया के सबसे बड़े झरनों में एक विक्टोरिया फॉल सूखने के कगार पर
(फोटो: Reuters)

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दुनिया के सबसे बड़े झरनों में एक विक्टोरिया फॉल सूखने की कगार पर है. जिम्बाब्वे और जांबिया की सीमा पर स्थित यह वाटरफॉल बढ़ते तापमान का शिकार हो रहा है. विक्टोरिया फॉल अपनी प्राकृतिक छटा के कारण दोनों देशों के लाखों लोगों को बेहतरीन पर्यटन स्थल के रूप में अपनी ओर खींचता रहा है. अफ्रीका क्षेत्र में शताब्दी के सबसे बड़े सुखाड़ के कारण अब यह फॉल सिकुड़ कर पतली धार में बदल गया है, जो कई तस्वीरों में नजर आया है.

विक्टोरिया फॉल में जांबेजी नदी का पानी गिरता है. विक्टोरिया के पानी का स्तर कम होने से लोगों में भय है कि जलवायु परिवर्तन के कारण इस क्षेत्र का सबसे बड़ा टूरिस्ट स्पॉट खत्म हो सकता है.

रॉयटर्स के मुताबिक, अधिकारियों ने कहा है कि गर्म मौसम में अमूमन झरने का पानी घटता है, लेकिन इस साल पानी का स्तर आश्चर्यजनक रूप से कम हो गया है.

जांबिया के एक हैंडीक्राफ्ट विक्रेता ने कहा कि पहले के सालों में जब यह सूखता था, इस तरीके का नहीं दिखता था.

विक्टोरिया फॉल को इस तरह देखने का हमारा यह पहला अनुभव है. इससे हम पर असर पड़ता है, क्योंकि पर्यटक इस सूखे हुए फॉल को इंटरनेट पर देख सकते हैं. अब यहां ज्यादा टूरिस्ट नहीं आ रहे हैं.
हैंडीक्राफ्ट विक्रेता
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जिम्बाब्वे और जांबिया दोनों देश करीबा डैम से मिलने वाले हाइड्रोपावर पर निर्भर हैं जो जांबेजी नदी पर बना है. अब यहां बिजली में कटौती भी आम बात हो गई है. एक किलोमीटर तक लंबे इस झरने में अब सिर्फ सूखे पत्थर दिखते हैं.

जांबेजी रिवर अथॉरिटी के डेटा के अनुसार, 1995 के बाद पानी का स्तर अपने निचले स्तर पर है. जांबिया के राष्ट्रपति ने जलवायु परिवर्तन से पर्यावरण को हो रहे इस नुकसान को एक 'चेतावनी' बताया है.

पानी सूखने पर अलग मत भी है

हालांकि विक्टोरिया फॉल के घटते स्तर के लिए जलवायु परिवर्तन को वजह बताने से कुछ वैज्ञानिक बच भी रहे हैं और इसे मौसमी कारण बता रहे हैं.

जाबेंजी नदी एक्सपर्ट और हायड्रोलॉजिस्ट हेराल्ड क्लिंग ने कहा कि क्लाइमेट साइंस किसी खास वर्ष से नहीं, बल्कि दशकों से परिभाषित होता है. इसलिए क्लाइमेट चेंज को इसकी वजह बताना कठिन है क्योंकि सुखाड़ जैसी समस्या हमेशा होती है.

उन्होंने कहा कि अगर इस तरह की स्थिति लगातार बनती है तो हम इसे जलवायु परिवर्तन का कारण बता सकते हैं.

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