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‘डोकलाम’ आखिर भारत, चीन और भूटान के लिए क्यों है अहम? 

चीन सड़क बनाने में कामयाब होता है, तो उसके लिए भारत के ‘चिकन नेक’ तक पहुंच बेहद आसान हो जाएगी.

अभय कुमार सिंह
दुनिया
Updated:


भूटान का डोकलाम पठार भारत (सिक्किम), चीन, भूटान के ट्राइजंक्शन पर है
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भूटान का डोकलाम पठार भारत (सिक्किम), चीन, भूटान के ट्राइजंक्शन पर है
(फोटो: Reuters)

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भारत-चीन के बीच सिक्किम में सीमा विवाद काफी बढ़ चुका है. चीन, भूटान के डोकलाम में सड़क बना रहा है और भारत ने इसका जोरदार विरोध किया है. यही विवाद की वजह है.

आइए जानते हैं कि भारत, चीन और भूटान के लिए क्यों अहम हैं डोकलाम इलाका.

भूटान का डोकलाम पठार भारत (सिक्किम), चीन, भूटान के ट्राइजंक्शन पर है. डोकलाम को चीन डोंगलांग कहता है. इस इलाके में चीन की दखलंदाजी और सड़क बनाकर अपनी स्थिति मजबूत करने से भारत और भूटान को परेशानी है.

भारत के लिए क्यों अहम है डोकलाम

'चिकन-नेक' के पास का इलाका है डोकलाम

ये पूरा इलाका सामरिक रूप से भारत के लिए बेहद अहम है. अगर चीन यहां सड़क बनाने में कामयाब होता है, तो उसके लिए भारत के चिकन नेक कहे जाने वाले सिलीगुड़ी तक पहुंच काफी आसान हो जाएगी.

दरअसल, ‘चिकन नेक’ उस इलाके को कहते हैं जो सामरिक रूप से किसी देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है, लेकिन संरचना के आधार पर कमजोर होता है. सिलीगुड़ी कॉरिडोर ऐसा ही क्षेत्र है.
यह ग्राफिक्स प्रतीकात्मक है, यह मूल नक्शे से अलग हो सकता है

सिलीगुड़ी कॉरिडोर की अहमियत

डोकलाम से सिलीगुड़ी कॉरिडोर की दूरी महज 50 किलोमीटर के करीब है. सिलीगुड़ी कॉरिडोर ऐसा इलाका है, जिससे शेष भारत, नॉर्थ ईस्ट के 7 राज्यों से जुड़ता है. 200 किलोमीटर लंबे और 60 किलोमीटर चौड़ा ये कॉरिडोर देश की एकता के लिए काफी जरूरी है.

साथ ही सिलीगुड़ी कॉरिडोर साउथ की तरफ से बांग्लादेश और नॉर्थ की तरफ से चीन से घिरा है. ट्रेन, रोड नेटवर्क से संपन्न ये इलाका चीन के किसी भी संभावित हमले में सैनिक साजो-सामान और दूसरी जरूरी चीजों की आपूर्ति के लिए अहम है.

जानकार मानते हैं कि अगर चीन ने डोकलाम में सड़क बना ली, तो दुश्मन हमसे और करीब हो जाएगा.

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भूटान की जिम्मेदारी भारत की है

भूटान के भारत के साथ खास रिश्ते हैं और 1949 की संधि के मुताबिक, ये विदेशी मामलों में भारत सरकार की ‘सलाह से निर्देशित’ होगा. 1949 में हस्ताक्षर की गई संधि और फिर 2007 दोहराई गई संधि के मुताबिक, भूटान के भू-भाग के मामलों को देखना भी भारत की जिम्मेदारी है. ऐसे में अगर चीन, भूटान के किसी भी हिस्से पर दावा ठोकता है या उसकी संप्रभुता में दखल देता है, तो भारत के लिए भी विरोध करना जरूरी है.

चीन क्यों डोकलाम पर नजर गड़ाए हुए है?

चीन का डोकलाम पठार पर सड़क बना देना उसके सैनिकों को सिलीगुड़ी कॉरिडोर के और करीब पहुंचा देगा. चीन ये नहीं मानता है कि डोकलाम पठार का 'डोका ला' इलाका 'ट्राइजंक्शन' है. चीन 'डोका ला' इलाके को अपना हिस्सा मानता है और भूटान अपना.

इस सड़क का मकसद है 'ट्राइजंक्शन' को हमेशा के लिए शिफ्ट कर देना. सड़क बनने के साथ ही चीन का डोका ला पर दावा और मजबूत हो जाएगा. ऐसे में चीन एक तरह से भूटान के कुछ इलाकों पर कब्जा हासिल कर लेगा.

भूटान के लिए क्यों अहम है डोकलाम

भारत के साथ भूटान की साझेदारी बरसों पुरानी है. इस लिहाज से डोकलाम का इलाका भूटान किसी भी हालत में चीन को नहीं सौंपना चाहता है. भूटान-चीन के बीच सीमा का विवाद साल 1959 से चला आ रहा है.1959 से हीे चीन की सेना ने भूटान में दखल देना शुरू कर दिया था.

ये वो समय भी था जब भारत-भूटान के रिश्तों काफी मजबूत हो रहे थे. 1984 में भूटान ने चीन के साथ बातचीत शुरू की. उसके बाद से दोनों देशों के बीच 24 बार बातचीत हुई.

फिलहाल ये भी बताया जा रहा है कि डोकलाम के अलावा भी भूटान के दूसरे इलाकों में चीन अपना दावा ठोक रहा है. ये कहा जा रहा है कि चीन चाहता है कि इस दबाव के बदले भूटान डोकलाम को सौंप दे.

ऐसे में तीनों देशों के पास डोकलाम के लिए अपनी-अपनी वजह है. लेकिन हालात अब बिगड़ते जा रहे हैं. चीन की ओर से इस तरह के भी बयान आए हैं कि भारत को पूरे विवाद की कीमत चुकानी होगी.

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Published: 06 Jul 2017,08:58 PM IST

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