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शी जिनपिंग (Xi Jinping) को शुक्रवार को तीसरी बार चीन का राष्ट्रपति चुन लिया गया. उन्हें 14वीं नेशनल पीपुल्स कांग्रेस के चल रहे सत्र में सर्वसम्मति से पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) का अध्यक्ष और केंद्रीय सैन्य आयोग (CMC) का भी अध्यक्ष चुना गया है. 69 वर्षीय शी जिनपिंग के पक्ष में 2,952 वोट पड़े.
दाहिने हाथ की मुट्ठी हवा में उठाए, बाएं हाथ को चीन के संविधान पर रख शी जिनपिंग ने राष्ट्रपति पद की शपथ ली. उन्होंने कहा, "मैं पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के संविधान के प्रति वफादार रहने, संविधान के अधिकार को बनाए रखने, अपने वैधानिक दायित्वों को निभाने, मातृभूमि के प्रति वफादार रहने, लोगों के प्रति वफादार रहने की शपथ लेता हूं. मैं पूरी ईमानदारी और मेहनत से अपने कर्तव्यों का पालन करूंगा."
जिनपिंग साल 2013 में पहली बार देश के राष्ट्रपति बने थे. 2018 में उन्हें दूसरी बार राष्ट्रपति चुना गया था. वो माओ के बाद चीन के सबसे ज्यादा समय तक राष्ट्रपति बनने वाले दूसरे नेता बन गए हैं. जिनपिंग का कद पार्टी के अंदर एक दशक में तेजी से बढ़ा है. कम्युनिस्ट पार्टी के एक साधारण वर्कर से आज वह दुनिया के सबसे ताकतवर देशों में से एक चीन के राष्ट्रपति हैं.
शी जिनपिंग ने जिस तरह से विश्व में वर्चस्व बनाने की कोशिश में हैं, उस लिहाज से उनका तीसरी बार राष्ट्रपति बनना बेहद अहम है. पिछले कई दशकों बाद चीन को ऐसा नेता मिला है जो माओ के बाद इतना ताकतवर हुआ है. वहीं, चीन से तनाव के बीच जिनपिंग का 'सर्वशक्तिमान' बन जाना भारत के लिए भी बेहद अहम है.
जिनपिंग के चीन में 'सर्वशक्तिमान' बन जाने के बीच पुतिन का रूस में बेहद पावरफुल बन जाना भी दुनिया सचेत नजरों से देखेगी, क्योंकि वो हिटलर और मुसोलिनी के इसी तरह 'सर्वशक्तिमान' बन जाने का हाहाकारी परिणाम देख चुकी है.
शी जिनपिंग ने तीसरी बार राष्ट्रपति बनने के लिए 2018 में संविधान ही बदल दिया था. दरअसल, कम्युनिस्ट पार्टी का नियम था कि कोई नेता दो बार ही राष्ट्रपति बन सकता है. लेकिन बदलाव के बाद अब जिनपिंग का जीवन भर राष्ट्रपति बने रहने का रास्ता साफ हो गया है.
हालांकि, जिनपिंग के तीसरे कार्यकाल की शुरुआत उस वक्त हो रही है जब दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था धीमी वृद्धि और घटती जन्म दर का सामना कर रही है. दक्षिणी चीनी सागर में तनाव है और अमेरिका से चीन का टकराव बढ़ता जा रहा है.
SOAS चाइना इंस्टीट्यूट के निदेशक स्टीव त्सांग ने कहा, "यह माओवादी युग की वापसी नहीं है, बल्कि ऐसा है जिसमें माओवादी सहज महसूस करेंगे."
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