क्रिसमस खुशियां मनाने के लिए है और ऑस्ट्रेलिया के कुछ नागरिकों ने इस बात का ध्यान रखा कि 8 साल की दिव्या और उसका परिवार भी इस क्रिसमस पर खुशियां मना पाए.
दिव्या अपने परिवार के साथ वडोदरा के शास्त्री नगर में रेल की पटरियों के पास रहती है.
तीन सप्ताह पहले जब ऑस्ट्रेलियाई व्यवसाई भारत में एक रेल के सफर पर थे तो उन्होंने एक 8 साल की बच्ची को रेलवे ट्रैक के पास खेलते देखा. वापस जाने के बाद वे इस बच्ची और इसके परिवार की मदद के लिए रास्ता निकालने के बारे में सोचते रहे.
एक वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी ट्रिप के लिए ऑस्ट्रेलिया से भारत आ रहे जेस और क्रिस ब्रे को तस्वीर दिखाकर डिक ने उन्हें इस परिवार का पता लगाने के लिए कहा.
क्रिस और जेस के पास के पास इस परिवार तक पहुुंचने के लिए इन तस्वीरों और गूगल मेप की लोकेशन के अलावा और कोई जरिया नहीं था.
दुख की बात ये थी कि तस्वीरों में किसी का भी चेहरा साफ नहीं था. गुलाबी ब्रेसलेट पहने एक लड़की थी जो थोड़ी-थोड़ी नजर आ रही थी.
दिसंबर 15 को भारत पहुंचते ही क्रिस और जेस ने एक ऑटो किराए पर लिया और लड़की और उसके परिवार की तलाश शुरू कर दी.
गूगल मेप की मदद से ये दोनों ‘शास्त्री ब्रिज’ या ‘पॉलीटेक्निक ब्रिज’ के नाम के इस ब्रिज तक पहुंचे जहां डिक ने ‘गुलाबी ब्रेसलेट वाली लड़की’ और उसके परिवार को देखा था.
उन्होंने आसपास के लोगों से इस परिवार के बारे में पूछताछ शुरू की. एमएस यूनिवर्सिटी के बैंकिंग और इंश्योरेंस विभाग के डॉ. दिलीप चेलानी ने इनकी मदद की.
तभी क्रिस और जेस ने कृत्रिम पैर वाले इस व्यक्ति को पहचान लिया. यह डिक की तस्वीर में नजर आया था.
और फिर उन्होंने गुलाबी ब्रसलेट, दरअसल गुलाबी चूड़ियों वाली लड़की को खोज निकाला. वो अब भी गुलाबी चूड़ियां पहने थी. उन्हें पता चला कि उसका नाम दिव्या है और वह 8 साल की है.
बाद में उसके पूरे परिवार ने क्रिस और जेस से खुल कर बात की. दिव्या के दो भाई हैं, एक 7 साल का दूसरा 2 साल का. ये दोनों भी तस्वीर में थे. क्रिस ने डिक की तस्वीर दिव्या को दी और अपने आने का कारण बताया.
यह परिवार पिछले 12 सालों से यहीं रह रहा था. दिव्या का जन्म भी यहीं हुआ था, वो भी बिना किसी नर्स की मदद के.
क्रिस और जेस ने बच्चों के पिता का काम से वापस आने का इंतजार किया ताकि वे बात कर सकें कि वे कैसे उसके परिवार की मदद कर सकते हैं.
डॉ. चेलानी ने बाद में उन्हें बैंक आकर मिलने के लिए कहा.
बैंक में क्रिस और जेस ब्रे दिव्या के पिता नरेश से मिले. उन्हें नरेश एक मेहनती और अच्छा इंसान लगा.
क्रिस और जेस ने परिवार को बताया कि डिक ने उनके परिवार को कुछ सप्ताह पहले ट्रेन से गुजरते हुए देखा था, और वे उनके परिवार की मदद करना चाहते थे.
अगले दिन वे सब बच्ची और उसके संरक्षक के तौर पर उसकी मां का बैंक अकाउंट खुलवाने के लिए मिले. इस खाते में डिक हर महीने उनके घर के किराए और बच्ची की पढ़ाई के लिए पैसे जमा कर सकते थे.
लेकिन परिवार के पास बैंक अकाउंट खुलवाने के लिए कोई स्थाई पता और पहचान पत्र नहीं था.
ऐसे में बिना पहचान पत्र वाले लोगों के लिए बैंक में खाता खोलने की ‘स्माइल’ योजना काम आई.
पर खाता खोलने से पहले तस्वीरें भी तो चाहिए थीं.
बैंक खाते के फॉर्म्स पर मुहर लगने के बाद खाता खुल चुका था.
एक औपचारिक अनुबंध लिखा गया कि डिक की ओर से आने वाला पैसा घर के किराए और दिव्या की पढ़ाई के लिए खर्च किया जाएगा. और यह भी लिखा गया कि यह पैसा अगले दो साल तक मिलेगा और उसके बाद दोबारा अनुबंध दोबारा तय होगा.
यह साफ किया गया कि दिव्या का लगातार स्कूल जाना जरूरी होगा वरना पैसा भेजना बंद कर दिया जाएगा. खाते पर हस्ताक्षर करने वाले डॉ. चेलानी को स्कूल की प्रिसिंपल हर महीने की अटेंडेंस भेजेगी और डॉ. चेलानी इस बात का भी ध्यान रखेंगे कि पैसे का सही इस्तेमाल हो रहा है या नहीं.
शुरूआती तौर पर खाते में जेस ने 20,000 भी जमा किए. ये रुपए अगले तीन महीने का किराया देने के लिए थे.
और फिर परिवार को खरीदारी के लिए ले जाया गया.
बच्चों को नए कपड़े जूते दिलाने के लिए मां को मनाने में काफी मुश्किल हुई. पर एक बार जब वह मान गईं तो दाम कम कराने के लिए दुकानदारों से उन्होंने अच्छी-खासी बहस की.
परिवार के हर सदस्य के लिए कपड़े खरीदे गए.
और बच्चों के लिए स्कूल बैग और कॉपी किताबें.
वडोदरा म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन के एक स्कूल में तीसरी क्लास में पढ़ने वाली दिव्या रोज स्कूल नहीं जाती थी. क्रिस और जेस से दिव्या के माता-पिता ने उसे रोज स्कूल भेजने का वादा किया.
स्कूल के प्रिंसिपल से भी दिव्या की अटेंडेंस शीट डॉ. चेलानी को हर महीने भेजने की बात भी की गई.
ब्रे कपल का मानना है कि पैसे भेजने के लिए दिव्या को रोज स्कूल भेजने की शर्त उन्हें उसे रोज स्कूल भेजने को प्रेरित करेगी.
दिव्या के परिवार की मदद करने के बाद संतुष्ट होकर लौटते क्रिस और जेस ब्रे.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)