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इंडिया गेट से कुतुब मीनार तक दिल्ली के धरोहरों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव| Photos
दिल्ली के हैरिटेज साइट्स पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव वास्तविक है. क्या नुकसान की भरपाई की जा सकती है?
क्विंट हिंदी
तस्वीरें
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नई दिल्ली के मध्य में स्थित इंडिया गेट का निर्माण प्रथम विश्व युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों की याद में एक सैन्य स्मारक के रूप में किया गया था.
फोटो- सोहम प्रसाद
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दिल्ली के विरासत स्थलों पर जलवायु परिवर्तन (Climate Change) का प्रभाव काफी तेजी से बढ़ रहा है. मौसम के परिवर्तन के कारण हुमायूं के मकबरे के छोटे गुंबदों में लाल पत्थर की सतह पर प्रदूषकों की एक पतली परत बैठ चुकी है, जो गुंबदों को लाल से काला और धुंधला कर रही है. वहीं अन्य विरासत स्थलों में जलवायु परिवर्तन के कारण सफेद संगमरमर के फर्श और दीवारों पर काले धब्बे पड़ गए हैं. तस्वीरों के जरिए समझिए दिल्ली के विरासत स्थलों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का असर.
इंडिया गेट के लाल बलुआ पत्थर के स्लैब पर गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण की वजह से कालिख नुमा परत जम रही है. यह इतनी ज्यादा है कि इस स्लैब पर लिखे प्रथम विश्व युद्ध के शहीदों के नाम धुंधले होते जा रहे हैं.
फोटो- सोहम प्रसाद
जैसे ही ओजोन परत पतली होती है, वायुमंडल का सुरक्षात्मक फिल्टर कमजोर हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप विरासत स्थलों के उपरी परत के खराब होने का खतरा बढ़ जाता है. जिससे वह पीला पड़ने लगता है.
फोटो- सोहम प्रसाद
दिल्ली में स्थित हुमायूं का मकबरा मुगल वास्तुकला का एक बेहतरीन उदाहरण है और कभी-कभी इसे ताज महल के अग्रणी के रूप में देखा जाता है. इस मकबरे का निर्माण 1572 में किया गया था और यहां मुगल सम्राट हुमायूं का कब्र है.
फोटो- सोहम प्रसाद
हुमायू के मकबरे के छोटे गुंबदों में लाल पत्थर की सतह पर प्रदूषकों की एक पतली परत पेटिना है, जो गुंबदों को लाल से धुंधला और काला कर रही है.
फोटो- सोहम प्रसाद
ईसा खान के मकबरे के बाहर जंग लगी लोहे की जालीदार स्क्रीन. जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है, रासायनिक प्रतिक्रियाओं की गति तेज हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप धातु का ऑक्सीकरण होता है. इससे धातु की संरचनाओं को नुकसान होता है.
फोटो- सोहम प्रसाद
जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप अधिक और लगातार बारिश हो सकती है. ज्यादा बारिश के कारण पुरानी इमारतों में सीलन का खतरा बढ़ जाता है.
फोटो- सोहम प्रसाद
ईसा खान के मकबरे की गुंबददार छत पर कालिख, धुआं, अपक्षय और संक्षारण (जंग) का प्रभाव साफ देखा जा सकता है. अत्यधिक तापमान और अधिक बारिश की वजह से बलुआ पत्थर से निर्मित संरचनाओं के क्षतिग्रस्त होने का खतरा बढ़ जता है.
फोटो- सोहम प्रसाद
दक्षिण दिल्ली के महरौली इलाके में कुतुब मीनार, लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर से बनी इंडो-इस्लामिक वास्तुकला का एक नमूना है. कुतुब मीनार परिसर में विभिन्न प्राचीन संरचनाए हैं, जिनमें से सबसे प्रसिद्ध कुतुब मीनार है. इसे 13वीं शताब्दी की शुरुआत में दिल्ली सल्तनत के संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा बनवाया गया था.
फोटो- सोहम प्रसाद
पर्यावरणीय क्षरण के चरण- बाएं वाला हिस्सा अपेक्षाकृत बरकरार है, दाहिने साइड का हिस्सा काफी खराब हो चुका है, तथा बीच का अलाई मीनार पूरी तरह से नष्ट हो चुका है.
फोटो- सोह00म प्रसाद
हमारे विमानों से भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड निकलता है. प्रति घंटे, प्रति यात्री 90 किलोग्राम से अधिक CO2, जिसका मतलब है कि कुतुब मीनार कालिख के जमाव, संगमरमर के पीलेपन और तेजाबी बारिश से पीड़ित है.
फोटो- सोहम प्रसाद
कुव्वत उल-इस्लाम मस्जिद प्रांगण में एक कब्र के सामने दरार. तापमान परिवर्तन से बलुआ पत्थर का विस्तार और संकुचन हो सकता है. बार-बार होने वाले विस्तार और संकुचन के कारण दीवोरों में दरार आ सकते हैं.
फोटो- सोहम प्रसाद
कुव्वत उल-इस्लाम मस्जिद के गुंबद के अंदर के हिस्से में कालिख, सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जैसे प्रदूषक जमा हो गए हैं.
फोटो- सोहम प्रसाद
पुरानी दिल्ली में स्थित जामा मस्जिद, लाल बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर से बनी एक शानदार मस्जिद है. 1644 और 1656 के बीच निर्मित यह मस्जिद मुगल सम्राट शाहजहां द्वारा निर्मित भारत की सबसे बड़ी और सबसे प्रमुख मस्जिदों में से एक है.
फोटो- सोहम प्रसाद
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जामा मस्जिद के सफेद संगमरमर के फर्श पर काले धब्बे पड़ गए हैं. यह अम्लीय वर्षा और सूर्य के प्रकाश के संपर्क के कारण खराब हो रहे हैं.
फोटो- सोहम प्रसाद
जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले तापमान और आर्द्रता में परिवर्तन से पत्थर पर लगाए गए सुरक्षात्मक कोटिंग्स (कवर) या सीलेंट की अखंडता खतरे में पड़ सकती है. अगर ये कोटिंग्स विफल हो जाती हैं, तो इससे पत्थर के अपक्षय होने और रंग बिगड़ने का खतरा हो सकता है.
फोटो- सोहम प्रसाद
दिल्ली में स्थित लोधी गार्डन में कई लोधी वंश के सम्राटों की कब्रें हैं, जिन्होंने 15वीं शताब्दी में उत्तरी भारत के क्षेत्रों पर शासन किया था. हरे-भरे पत्ते, जॉगिंग पथ और प्राचीन वास्तुकला मौजूद है. लोधी गार्डन स्थानीय और बाहर से आए लोगों के लिए एक पसंदीदा स्थान हैं.
फोटो- सोहम प्रसाद
लोधी गार्डन में स्थित एक विशाल मीनार. प्रदूषण के कारण हवा में मौजूद कण पत्थर की सतह पर जम जाते हैं. इससे पत्थरों का रंग बदलने लगता है, साथ ही संरचना को भी नुकसान पहुंचता है.
फोटो- सोहम प्रसाद
सिकंदर लोदी के मकबरे की गुंबददार छत पर जलवायु परिवर्तन से होने वाला नुकसान स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है. इस परिवर्तन के कारण पेंट फैल या सिकुड़ सकता है, जिससे इसकी ऊपरी परत खराब या विलुप्त हो सकती है.
फोटो- सोहम प्रसाद
पत्थर के भीतर लौह युक्त खनिज ऑक्सीजन और नमी के संपर्क में आने पर ऑक्सीकरण कर सकते हैं. इस प्रक्रिया से आयरन ऑक्साइड उत्पन्न होता है, जिसे आमतौर पर जंग के रूप में जाना जाता है, जो पत्थर की दीवारों पर भूरे रंग का दाग डाल सकता है.
फोटो- सोहम प्रसाद
साल 1986 में निर्मित, लोटस टेम्पल कमल के फूल से प्रेरित डिजाइन के साथ समकालीन वास्तुकला का एक शानदार उदाहरण है. लोटस टेम्पल, दिल्ली का बहा पूजा घर है और दुनिया के सात बहा' पूजा घरों में से एक है.
फोटो- सोहम प्रसाद
लोटस टेम्पल सफेद संगमरमर से बना है. लेकिन वर्षों से लगातार हो रही अम्लीय वर्षा ने सफेद संगमरमर की खुबसूरती को खराब कर दिया है. इसकी पंखुड़ियों पर दाग और धब्बे लग चुके हैं. चूना पत्थर के ऑक्सीकरण, मौसम के परिवर्तन और प्रदूषण के कारण इसकी पंखुड़िया पीली पड़ चुकी हैं.
फोटो- सोहम प्रसाद
अम्लीय वर्षा जमाव के कारण संगमरमर के स्लैब पर काले धब्बे पड़ गए हैं.
फोटो- सोहम प्रसाद
दिल्ली के प्रसिद्ध विरासत स्थलों मे से एक लाल किला लाल बलुआ पत्थर से बना है, जो मुगल वास्तुकला का एक बेहतरीन उदाहरण है. मुगल बादशाह शाहजहां ने 17वीं शताब्दी के मध्य में लाल किला बनवाया था और लगभग 200 वर्षों तक यह मुगल शासकों का प्राथमिक घर था.
फोटो- सोहम प्रसाद
लाल किले की ढहती हुई इमारत लगातार चिलचिलाती धूप के संपर्क में रहती है, जिससे इसकी दीवारें तेजी से खराब हो रही हैं. इसके अलावा, तेज हवाएं, मूसलाधार बारिश और ओलावृष्टि से भी इसे नुकसान हो रहा है.
फोटो- सोहम प्रसाद
मुगल वास्तुकला में विशिष्ट पिएट्रा ड्यूरा रंग का काम सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आने से फीके पड़ गए हैं.