कहा जाता है कि ‘वक्त घाव को भर देता है’. ओडिशा में आए भीषण चक्रवाती तूफान ‘तितली’ के बाद प्रदेश के कई गांव उजड़ गए. वहां के लोगों से पूछने के बाद सोचने पर मैं मजबूर हुआ, ‘कितना वक्त?’ चक्रवाती तूफान तितली को आए 4 महीने हो गए जब उसने प्रकृति का प्रकोप दिखाया था.
उड़ीसा के गजपति जिले के गांवों में लोगों का जीवन और समय बहुत धीरे आगे बढ़ रहा है.
पेड़ अभी भी मुड़ी हुई जड़ों से अलग होकर खड़े हैं. इस साल की फसल बर्बाद हो गईऔर लोग असहाय महसूस कर रहे हैं.
राज्य सरकार ने भले ही मुआवजा दे दिया हो, लेकिन उस तूफान ने जो यहां के घरों को घाव पहुंचाया था. वो आज भी ताजा है. जब मैंने लोगों से पूछा कि वो घर क्यों नहीं बनाते तो वो कहते कि डर लगता है.
कोई नया घर नहीं बनाना चाहता, सब डरते हैं कि कहीं एक बार फिर से तितली जैसा तूफान न आ जाए जो उनके नए घर को फिर से तबाह कर सकता है.
यहां के लोग जैसे तैसे जिंदगी बिता रहे हैं, कई लोग मनरेगा के तहत काम कर अपना गुजारा कर रहे हैं. लेकिन सभी वहीं नहीं रुके कुछ लोगों ने अपने जीवन को आगे भी बढ़ाया.
चक्रवाती तूफान के आने के बाद इलाके एनजीओ और कई सामाजिक संस्थाओं की बाढ़ आ गई. सभी अपने हिसाब से अपना काम कर रहे थे, कोई खाना देता, कोई कपड़े तो कोई दवाईयां.
धीरे धीरे जीवन अपनी पटरी पर वापस आ रहा है. स्कूल खुलने लगे हैं. बेरोजगारी इन इलाकों की सबसे बड़ी समस्या है. ईंट की भट्टियों के बनने से कई लोगों को रोजगार मिला है.
कई सारे गांवों के लोग ईंट के इस काम को जमकर समर्थन कर रहे हैं और पक्के मकान बना रहे हैं. इसबार पक्के मकान बनाकर सब इस बात की पुख्ता तैयारी कर रहे हैं कि अब अगर तितली जैसा तूफान आता है तो ये मकान उसका मुकाबला कर सकेंगे और इन लोगों को भागकर दूसरों की जगहों पर नहीं जाना पड़ेगा.
एक तूफान ने इनके जिंदगियों में जो तबाही मचाई इसकी कहानी ये टूटे हुए मकान, जड़ों से अलग हुए मुड़े हुए पेड़ बयां करते हैं.
(ये फोटो स्टोरी परीज बोर्होगाइन की है. परीज एक फ्रीलांस कहानीकार हैं. पेशे से सामाजिक कार्यकर्ता हैं, वो ऐसी कहानियां कहना चाहते हैं जो कि अनसुनी न रहें. ये ‘फोक फिल्म्स’ के सहसंस्थापक भी हैॆं.)
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