इस Women's Day पर आपकी मुलाकात करवाते हैं, एक महिला की जो कैब चलाकर अपना परिवार चलाती है. 36 साल की शिवानी अपने दो बच्चों को पाल रही है और साथ ही अपनी मां का भी ध्यान रखती है. उबर कैब सर्विस से जुड़ी शिवानी का कहना है उन्हें कार चलाकर ताकत मिलती है, वो सशक्त महसूस करती हैं. समाज से उन्हें कभी ताने तो कभी ढेर सारी तारीफ भी मिलती हैं. इस अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर बताते हैं शिवानी के सशक्त होने की कहानी.

<div class="paragraphs"><p>(फोटो- क्विंट हिंदी)</p></div>

दिल्ली की कैब ड्राइवर शिवानी

(फोटो- क्विंट हिंदी)

शिवानी दिल्ली में अपने एक किराए के मकान में रहती हैं, वह अपने दो बच्चों और मां के साथ रहती है.   

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शिवानी और शिवानी की मां 

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शिवानी ने अपने पति को काफी साल पहले ही तलाक दे दिया था. उसके बाद उन्होंने हाउस हेल्प का काम शुरू किया .

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इस दौरान शिवानी आजाद फाउंडेशन नाम के एक एनजीओ से संपर्क में आई जो महिलाओं को गाड़ी चलाने की ट्रेनिंग देता है. शिवानी ने इसी एनजीओ से गाड़ी चलाना सीखा.

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गाड़ी सीखने के बाद शिवानी ने कर्ज लेकर एक कार खरीदी और फिर उबर सर्विस से जुड़ी. 

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शिवानी कहती है कि आज भी लोगों को लगता है कि महिला ठीक से गाड़ी नहीं चलाती है, उनका मानना है कि यह एक गलत धारणा है.

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शिवानी ने बताया कि, कई ऑटो वाले और दूसरे कैब ड्राइवर उनसे कई बार चीढ़ जाते हैं. वो कहती है कि जब भी कोई व्यक्ति मुझसे किसी जगह का पता पूछता है तो दूसरे ड्राइवर मुझसे चीढ़ते हैं, शिवानी समझती है कि वे इसलिए चिढ़ते हैं क्योंकि वह इस बात को स्वीकार नहीं करना चाहते कि एक महिला भी हर काम जान सकती है और कर भी सकती है.

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शिवानी ने कई बार अपने यात्रियों से लिंग के आधार पर भेदभाव भी झेला है. वो बताती है कि एक बार सड़क पर स्कूटी चलाने वाले शख्स से उनकी इस बात पर लड़ाई हो गई क्योंकि उस शख्स ने शिवानी को चिल्ला कर कहा "ओए पागल कहां गाड़ी लेकर जा रही है".

शिवानी ने बताया कि झगड़ा काफी बढ़ गया था उस शख्स ने उनकी गाड़ी का साइट मिरर व्यू को भी तोड़ दिया था. यहां तक कि यह मामला पुलिस तक भी पहुंचा था.  

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शिवानी ने कहा कि, कई यात्री की जब वो बुकिंग लेती हैं तो कई लोग उनसे दो बार कॉल कर सुनिश्चित करते हैं कि उन्होंने कैब ही बुक की है या नंबर गलत लग गया है.

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शिवानी कहती हैं कि, कई लड़कियां उनके काम से खुश होती हैं. वो कहती हैं कि जब से में गाड़ी चला रही हूं समाज में मुझे सम्मान भी मिला है.

"मैं महिलाओं को यही संदेश देना चाहती हूं कि अगर आप पढ़ें लिखे नहीं भी है तो भी बाहर बहुत कुछ करने के लिए है, बाहर निकलें और काम खोजे, गाड़ी चलाना सीखे."   

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