Home Photos Jaipur Literature Festival: लोकल ब्रांड, कला-कलाकारों के सपने से सजा बाजार। Photos
Jaipur Literature Festival: लोकल ब्रांड, कला-कलाकारों के सपने से सजा बाजार। Photos
छोटे व्यवसायी अपने क्षेत्रों के शिल्प-हस्त कलाओं और उनसे जुड़ी कहानियों को दुनिया के सामने प्रदर्शित करने आए हैं. क्विंट ने उन शिल्पकारों से बात की.
गरिमा साधवानी
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Jaipur Literature Festival: लोकल ब्रांड, पुरानी कल्चर और आर्ट से सजा उत्सव। Photos
(फोटो: गरिमा साधवानी/द क्विंट)
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जयपुर (Jaipur) लिटरेचर फेस्टिवल 2024 का 17वां संस्करण राजस्थान के गुलाबी शहर यानी जयपुर के होटल क्लार्क्स आमेर में आयोजित है. यह फेस्टिवल पूरी तरह से संस्कृति, पुरानी यादों और पुरानी कलाओं से सजा हुआ है. छोटे व्यवसायी अपने क्षेत्रों के शिल्प-हस्त कलाओं और उनसे जुड़ी कहानियों को दुनिया के सामने प्रदर्शित करने आए हैं.
क्विंट ने इस फेस्टिवल में पांच लोगों से बात की, चलिए जानते हैं इन शिल्पकारों की कहानी और उनकी कलाकृति से रूबरू होते हैं.
जयपुर की 26 वर्षीय आयुषी जैन ने इंटीरियर डिजाइनर बनने के लिए ट्रेनिंग लिया था लेकिन प्रोफेशनल परेशानियों की वजह से उनका सपना पीछे रह गया. साल 2020 में जब कोविड महामारी आई, तब आयुषी अपने पैशन और प्यार शिल्प (क्राफ्ट) की ओर वापस लौट आईं. वह डायरियों को नया रूप देते थी, चीजों पर हाथ से पेंट करती थी और आर्ट बनाती थी. फिर अपने पिता के थोड़े से दबाव के बाद, उन्होंने अपना खुद का स्टोर "वर्नान" शुरू किया.
(फोटो: गरिमा साधवानी/द क्विंट)
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के बाजार में उन्होंने अपनी प्रदर्शनी लगाई. इस दौरान जैन ने द क्विंट को बताया, “हम न केवल मेरे द्वारा बनाए गए उत्पादों का प्रदर्शन करते हैं, बल्कि स्थानीय कारीगरों और अन्य घरेलू ब्रांडों के साथ भी सहयोग करते हैं ताकि उन्हें अपनी बनाए हुए आर्ट को बेचने के लिए जगह मिल सके. बिजनेस और क्रिएटीविटी के साथ- साथ हमारे कारीगरों को ट्रेनिंग देने की कोशिश में अब तक की यात्रा कठिन रही है, लेकिन यह सुखद भी रही है."
(फोटो: गरिमा साधवानी/द क्विंट)
बेंगलुरु के फ्लोरिश के 32 वर्षीय संस्थापक साविक भी आयुषी जैन की तरह आर्ट से जुड़े हैं. साविक उन कारीगरों को जगह देने की कोशिश कर रहे हैं, जो पर्यावरण फ्रेंडली चीजें बनाते हैं. वह कहते हैं, "हम कारीगरों को सशक्त बनाना चाहते हैं, साथ ही लोगों को प्लानेट के लिए जागरूक चीजों को चुनने के लिए प्रोत्साहित करना चाहते हैं."
(फोटो: गरिमा साधवानी/द क्विंट)
फेस्टिवल बजार में आने से पहले, फ्लोरिश ने जैगरी के साथ भी पार्टनरशिप की. यह एक छोटा सा जागरूक करने वाला बिजनेस है जो सीटबेल्ट, पैराशूट और सेना के कैनवस को सुंदर बैग और पाउच में बदलने का काम करता है.
(फोटो: गरिमा साधवानी/द क्विंट)
42 वर्षीय सुनीता जाखड़ के लिए उनके उत्पादों की प्रेरणा उनकी पुरानी यादों से आती है. जाखड़, एक कपड़ा डिजाइनर है. वह राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र सीकर में पली-बढ़ीं, जहां से उन्हें अपना खुद का ब्रांड 'फटफटिया' शुरू करने के लिए आइडिया मिला.
(फोटो: गरिमा साधवानी/द क्विंट)
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सुनीता जाखड़ ने द क्विंट को बताया, ''सीकर में थ्री-व्हीलर ऑटो को फटफटिया कहा जाता है. वे चमकीले और फंकी हैं, जिसके कारण मुझे भी उसी तरह के डिजाइन बनाने पड़े. मेरा काम उन हवेलियों और खिड़कियों से प्रेरित है जो आपको शेखावाटी क्षेत्र में मिलेंगी, जो धीरे-धीरे खत्म हो रहे हैं."
(फोटो: गरिमा साधवानी/द क्विंट)
आर्ट को खोने की चिंता संजय सिंह राठौड़ को भी है. इसलिए वह "मरोडी कला" को जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में दुनिया के सामने प्रदर्शित कर रहे हैं.
(फोटो: गरिमा साधवानी/द क्विंट)
मरोडी शब्द 'मॉड' से आया है. इस कला में पीतल या चांदी पर जटिल कलाकृति (आर्ट वर्क) बनाया जाता है. जयपुर के 31 वर्षीय राठौड़ ने अपने पिता को श्रद्धांजलि देने के लिए "हाउस ऑफ एडवा" की शुरुआत की.
(फोटो: गरिमा साधवानी/द क्विंट)
संजय सिंह राठौड़ कहते हैं, ''मेरे पिता हमेशा से मरोडी कलाकृति (आर्ट वर्क) से जुड़े रहे थे. मैं बहुत ही कठिन- कठिन मरोडी डिजाइन देखकर बड़ा हुआ हूं. लेकिन मुझे एहसास हुआ कि अब बहुत कम कारीगर बचे हैं जो इस तरह का जटिल काम कर सकते हैं. इस लिए मैं कारीगरों को ट्रेनिंग देकर इस कला को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहा हूं. उन्होंने आगे बोला कि जब आप एमएफ हुसैन की पेंटिंग देखते हैं, तो आप उसे तुरंत पहचान सकते हैं. उसी तरह हम मरोडी कलाकृति को पहचान योग्य बनाना चाहते हैं.
(फोटो: गरिमा साधवानी/द क्विंट)
हिमाचल प्रदेश के नग्गर की 32 वर्षीय मोनिका भी जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में इसी प्रकार की वस्तुएं लेकर आई हैं. मोनिका, कुल्लू घाटी में कारीगरों द्वारा हस्तनिर्मित और हाथ से बुने गए उत्पादों को दुनिया के सामने प्रदर्शित कर रही है. उन्होंने द क्विंट को बताया, “हमारे लिए, महिलाओं और कारीगरों दोनों को जितना हो सके सशक्त बनाना बहुत महत्वपूर्ण है. हम यह भी चाहते हैं कि लोग हिमाचल की समृद्ध संस्कृति को देखें, इसलिए हम इसे दुनिया के सामने पेश कर रहे हैं."