केसरिया रंग के कपड़े, नंगे पांव, कंधे पर भारी भरकम लकड़ी का बना हुआ कांवड़, बोल बम का नारा, साथ ही मिनी ट्रक के लाउडस्पीकर पर जोर-जोर से बजता गाना. सावन का महीना आते ही ऐसा नजारा आपको सड़कों पर अकसर देखने को मिल जाएगा.
इन्हें कांवड़िया कहा जाता है. इस दौरान ये कांवड़ यात्रा पर होते हैं.
सावन का महीना चल रहा है. इस महीने को हिन्दू धर्म के लोग शिव का महीना मानते हैं. इसी महीने में कांवड़ यात्रा की जाती है. कांवड़ यात्रा के बारे में एक कहानी प्रचलित है. समुद्र मंथन के दौरान जो विष (जहर) निकला था, दुनिया को उस विष से बचाने के लिए शिव ने उसे पी लिया था.
इसके बाद उनका कंठ नीला पड़ गया. शिव का शरीर जलने लगा. शिव को इस दर्द से बचाने परशुराम ने उनके ऊपर गंगा जल डाला. गंगाजल से शिवजी का शरीर ठंडा हो गया. इस तरह उन्हें विष से राहत मिली.
यह तो हुई पौराणिक कहानी. अब बात करते हैं उन शिवभक्तों की जो कांवड़ यात्रा में पूरे तन-मन से हिस्सा लेते हैं. आइए मिलवाते हैं आपको ‘ह्यूमन ऑफ कांवड़ यात्रा’ से.
नाम- प्रिंस
उम्र - 22 साल
काम- डांस कोरियोग्राफर
“दिल्ली से हरिद्वार तो ट्रेन से गया था. लेकिन अब वहां से गंगाजल लेकर वापस पैदल अपने घर जा रहा हूं. करीब 200 किलोमीटर पैदल चलना होता है. लेकिन डांसर हूं, तो इतना चलने के बाद भी पैर में दर्द ज्यादा नहीं होता. मैं लोगों को डांस सिखाता हूं, ‘द कॉर्ड ब्रेकर डांस एकेडमी’ नाम से मेरी खुद की डांस एकेडमी है. वैसे तो मैं कहीं नौकरी नहीं करता, लेकिन डांस सिखाकर अपना खर्चा निकालता हूं. कांवड़ यात्रा पर पहली बार आया हूं.”
नाम- मोनू
काम- मोटर मैकेनिक
उम्र - 16 साल
“बचपन से ही मेरा एक पैर खराब है और एक पैर से मैं ज्यादा दूर तक चल नहीं सकता हूं. इसलिए अपने मोहल्ले के लोगों के साथ बाइक से गया था कांवर यात्रा पर. पहले कभी गया नहीं था, तो समझो कि मैं तो घूमने गया था. मुझे नहीं पता क्यों जाते हैं यात्रा पर. मेरे पापा नहीं है और मम्मी से कभी पूछा नहीं कि क्यों जाते हैं यात्रा पर. मुझसे बड़ा एक भाई है और एक बहन है मुझसे छोटी.”
नाम - राकेश कुमार
काम- ओला, उबर में गाड़ियां चलाना
उम्र - 35 साल
“मैं पिछले 7 साल से इस यात्रा में हिस्सा ले रहा हूं. मेरे परिवार में 7 लोग हैं. जब से मैंने यात्रा शुरू की है, तब से कुछ ना कुछ भोले ने हमें दिया है. इसलिए मैं अब हर साल यात्रा में जाता हूं. करीब 40 हजार रुपया महीना कमाता हूं. ओला, उबर में मेरी गाड़ी चलती है. लेकिन मैं अपनी गाड़ी से यात्रा पर नहीं गया. भोलेनाथ के लिए हमने पैदल ही यात्रा की. रास्ते में थोड़ा थक जाते थे, तो रुक कर एक घंटे कहीं भी आराम कर लेते थे.”
नाम - जेम्स
उम्र -21 साल
काम - स्टूडेंट क्लास 10
“जेम्स नाम है मेरा, ईसाई हूं. मैं बाबा को भी मानता हूं. दिल की शांति, मन की शांति के लिए बाबा की दुनिया में जाकर मुझे अच्छा लगता है. बाबा की दुनिया में खोकर अच्छा लगता है. मेरे घर वालों को कोई दिक्कत नहीं है इन चीजों से. वह चाहते हैं मैं बस खुश रहूं. मैं चर्च भी जाता हूं. मैंने इस बार भोले से अपने दोस्तों को लिए दुआ मांगी है. मेरे दोस्तों को नशे की आदत है. मैंने भोले से दुआ मांगी है कि मेरे दोस्त नशा छोड़ दें’
नाम - देवी चरण
काम - कपड़े की दुकान पर सेल्समैन
उम्र - 38 साल
“पहले लोग झंडा लेकर नहीं जाते थे. लेकिन अब यह नया क्रेज है. मोदी जी के पीएम बनने के बाद से लोगों में देश भक्ति का क्रेज बढ़ा है. इसलिए हम लोगों ने केसरिया के साथ साथ भारत का झंडा भी अपने साथ रखा है.”
“मैं टाइम बचाने के लिए बाइक से गया था. आप को जोड़ा पूरा करना पड़ता है. मतलब पिछले साल बाइक से गया था, इसलिए इस बार भी बाइक से गया था. कोई हेलमेट लगा कर नहीं जाता, इसलिए हमलोग भी हेलमेट नहीं लगाते. ट्रैफिक पुलिस भी आमतौर पर हमें नहीं पकड़ती.”
नाम - नितेश कुमार
काम - पारले जी में सेल्समैन
ऊम्र - 28
“8 तारीख को ऋषिकेश गया था, फिर वहां से हरिद्वार गया. करीब 350 किलोमीटर पैदल चलकर अब अपने घर बदरपुर दिल्ली पहुंचने वाला हूं. मैं रहने वाला तो बिहार का हूं. लेकिन अभी दिल्ली में रह रहा हूं. कांवड़ यात्रा क्यों करते हैं, इस बारे में तो पता नहीं है, लेकिन ये कह सकते हैं कि श्रद्धा है और बिना जरूरत के तो कोई कहीं नहीं जाता है. बस हम भी मांगने गए थे भोले से. क्या मांगा, ये मैं अभी आपको नहीं बताऊंगा.”
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