Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Photos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Ladakh की घाटियों में कैसी है महिला चरवाहों की जिंदगी। Photos

Ladakh की घाटियों में कैसी है महिला चरवाहों की जिंदगी। Photos

Changthang women shepherds: चांगपा समाज में महिलाओं को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. वे याक की रखवाली करने से लेकर तंबू लगाने तक सभी काम करती हैं.

रितायन मुखर्जी
तस्वीरें
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<div class="paragraphs"><p>Ladakh के चांगथांग की महिला चरवाहों जिंदगी, देखें|Photos</p></div>
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Ladakh के चांगथांग की महिला चरवाहों जिंदगी, देखें|Photos

(फोटो: रितायन मुखर्जी)

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चांगपा (Changpa) तिब्बती (Tibbt) मूल का एक बंजारा मानव समुदाय है. ये भारत के लद्दाख (Ladakh) क्षेत्र के चांगथंग इलाके में बसते हैं. चांगपा देहाती खानाबदोश हैं, जो याक और भेड़ पालते हैं. नवंबर से मई तक लंबी सर्दियों के दौरान, वे अधिकतर अपने स्थान पर रहते हैं.

गर्मियों में वे अधिक ऊंचाई वाले चरागाह योग्य भूमि की ओर चले जाते हैं. चांगपा महिलाएं चराई के मौसम (मार्च या अप्रैल से अक्टूबर तक) के दौरान सभी प्रकार के कार्यों को मैनेज करती हैं, जिसमें तंबू लगाना, जलावन की लकड़ी ढोना, मवेशी चराना, बकरियों का दूध निकालना आदि शामिल हैं. चलिए जानते हैं कि ये समुदाय घाटी में कैसे अपना जीवन व्यतीत करते हैं...

यह सुंदर घाटी हानले घाटी हैं. यह तिब्बती पठार के चांगथांग क्षेत्र में पड़ती है, जो दक्षिणपूर्वी लद्दाख तक फैली हुई है. भारत-चीन सीमा के पास स्थित इस क्षेत्र की यात्रा के लिए भारतीयों को लेह से विशेष परमिट प्राप्त करना होता हैं.

(फोटो: रितायन मुखर्जी)

चांगपा घुमंतू चरवाहे हैं, जो मौसम के हिसाब से पशुओं के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान तक लेकर घूमते हैं. यह चरवाहें जो चांगथांग क्षेत्र से आते हैं. वे महंगे कश्मीरी ऊन के सबसे बड़े सप्लायर्स हैं. चांगथांग पठार समुद्र तल से 14,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. इस तस्वीर में, दोहना हानले घाटी में एक ऊंचे ग्रीष्मकालीन चरागाह भूमि पर अपने परिवार के लिए तंबू गाड़ रही हैं.

(फोटो: रितायन मुखर्जी)

चांगपा समाज में महिलाओं को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. वे याक की रखवाली भी करती हैं. यहां त्सिरिंग चोंचुम को एक अनाथ याक शावक के साथ देखा जा सकता हैं. वह हानले घाटी की कुछ महिला याक मालिकों में से एक हैं.

(फोटो: रितायन मुखर्जी)

पेमा (बाएं) और गेफेल (दाएं) आराम कर रही हैं. वहीं, उनके पशु मैदान में चर रहे हैं. काम के दौरान इन महिलाओं को अपनी त्वचा को न केवल धूप से, बल्कि आने वाली ठंडी हवा से भी बचाने के लिए अपने शरीर और चेहरे को ढंकने की जरूरत होती है.

(फोटो: रितायन मुखर्जी)

ये है पेमा, पेमा को अपने याकों की देखभाल करते हुए आप देख सकते हैं. यहां की घाटी (हानले घाटी) विशाल और ऊबड़-खाबड़ है. यहां लंबी और कड़ाके की सर्दी और भीषण गर्मी होती है.

(फोटो: रितायन मुखर्जी)

चांगपा घाटी में और उसके आसपास चरवाहें यात्रा करते हैं. चरवाहों को उनके समुदायों के प्रमुख द्वारा चरागाह योग्य भूमि आवंटित किए जाते हैं. वे अपने गर्म दिन पश्मीना/कश्मीरी ऊन को संवारने और बुनाई में बिताते हैं. यहां के चरवाहें बुनकर भी होते हैं.

(फोटो: रितायन मुखर्जी)

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रसोईघर अक्सर इस समुदाय को गर्म रखने के मुख श्रोत होते हैं. रसोईघर उन्हें सर्दियों के दौरान गर्म रखता है, जब यहां तापमान शून्य से 25 डिग्री सेल्सियस नीचे तक गिर जाता है. यदि कोई परिवार पलायन करता है, तो सबसे पहली चीज जो वह स्थापित करता है, वह है रसोई.

(फोटो: रितायन मुखर्जी)

त्सिरिंग चोंचुम अपने याकों की इंतजार करते हुए, जो अभी तक चरकर नहीं आए हैं. यह समुदाय बौद्ध धर्म का पालन करने के लिए जाना जाता है.

(फोटो: रितायन मुखर्जी)

पत्थर इकट्ठा करने के बाद सोनम इसें अपने टेंट की ओर वापस ले जाती हुईं. चरवाहे अपने घरों को मैनेज करना बखूबी जानते है.

(फोटो: रितायन मुखर्जी)

रिनचेन एंगमो कश्मीरी ऊन से भरा बैग उठाती हैं. इस ऊन की कतरन और पैकिंग के लिए अत्यधिक शारीरिक शक्ति की आवश्यकता होती है.

(फोटो: रितायन मुखर्जी)

इस क्षेत्र की बुजुर्ग महिलाएं चराई में शामिल नहीं होती हैं. लेकिन अन्य कामों में अपने परिवारों की मदद करती हैं.

(फोटो: रितायन मुखर्जी)

पूरा दिन चराने के बाद, चरवाहे देर शाम को अपने तंबू में लौट आते हैं.

(फोटो: रितायन मुखर्जी)

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