नई मोटरसाइकल खरीदते ही सबसे पहला ख्याल जो बाइकर्स के दिलो-दिमाग में आता है वो है लेह-लद्दाख की बाइक यात्रा का. और अगर आपने रॉयल एन्फील्ड खरीदी है फिर तो ये जरूरी हो जाता है कि आप कम से कम एक बार तो लेह-लद्दाख यात्रा कर ही लें.

अगर आप लेह-लद्दाख जाते रहते हैं तो आपने ये महसूस किया होगा समय के साथ ये पहाड़ अब एक कमर्शियल रियल एस्टेट भी बन चुके हैं. लेकिन 20 साल पहले तक यहां की खूबसूरती बिल्कुल बेजोड़ थी.

सत्या राव कोमन्ना जो कि एक एडवेंचरर हैं, उन्होंने 1994 की अपनी लद्दाख यात्रा की तस्वीरें साझा की हैं. यह यात्रा उन्होंने एक 2-स्ट्रोक यामाहा 350 से पूरी की थी.

उस समय का मुश्किलों से भरा जम्मू-कश्मीर का सोनमर्ग, पृष्ठभूमि में खजियार ग्लेशियर है. सभी तस्वीरें और कैप्शन सत्या के हैं. (फोटोः सत्या राव कोमन्ना)

हर साल जून से सितम्बर तक हजारों बाइकर्स लेह और खरदुंग ला की एक तरह से तीर्थयात्रा करने की कोशिश करते हैं. कुल 18,380 फीट की ऊंचाई पर मौजूद यह दुनिया का सबसे ऊंचा गाड़ी चलाने योग्य रास्ता है.

इन दिनों कुछ हिम्मती लोग अपनी साइकिलों से भी इतने ऊंचे स्थानों तक जा रहे हैं.

अमित, जो पदुम तक के 300 किमी लम्बे सफर में सत्या को मिले एकमात्र व्यक्ति थे. उन दिनों उस रास्ते पर ईंधन की कोई आपूर्ति नहीं हुआ करती थी. (फोटोः सत्या राव कोमन्ना)

इसके एक ट्रेंड बन जाने से पहले लद्दाख जाना आम बात नहीं हुआ करती थी.

सोनमर्ग से बाहर खतरनाक जोली ला से द्रास/कारगिल की ओर बढ़ते हुए. (फोटोः सत्या राव कोमन्ना)

उस समय कोई बुनियादी ढांचा मौजूद नहीं था. वे सब शहर और कस्बे जहां अब व्यापारिक गतिविधियां दिखाई देती हैं, वे उनके आज के स्वरूप की छाया मात्र हैं.

नक्शे में राष्ट्रीय राजमार्ग लिखा होने के बावजूद कई जगह सड़कों का नामो-निशान तक नहीं था. और आतंकवाद अपने चरम पर था.

रंगडम मठ, जहां दयालु लामाओं के सौजन्य से सत्या ने रात बिताई. (फोटोः सत्या राव कोमन्ना)
रंगडम मठ के पास सड़क के ऊपर से तेज बहती नदी. यहां सड़क पार करते वक्त सत्या की बाइक स्लीपिंग, बैग कैमरा और बाकी सामान के साथ नदी में गिर गई, जिसकी वजह से उन्हें मठ में रात बिता कर बचे हुए ईंधन के साथ वापस कारगिल लौटना पड़ा. (फोटोः सत्या राव कोमन्ना)
भगवान के भेजे हुए लामा जिन्होंने सत्या की बुरी हालत पर तरस खा कर न सिर्फ उन्हें सोने के लिये जगह दी बल्कि उन्हें खाना भी खिलाया. एक शिलालेख के अनुसार इस मठ को 200 साल पहले लद्दाख के राजा सेवांग मांग्युल के शासनकाल के दौरान गेलेक याशी ताक्पा ने बनाया था. (फोटोः सत्या राव कोमन्ना)
उन दिनों में कारगिल शहर. आज इस शहर की कहानी ही अलग है. (फोटोः सत्या राव कोमन्ना)
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सरदार करन सिंह, जो कभी ट्रक ड्राइवर थे फिर कारगिल उन्हें इतना पसंद आया कि वे वहां ढाबे पर परांठा और दाल-चावल बनाने लगे और आज तक खिलाते हैं. (फोटोः सत्या राव कोमन्ना)
गाटा – लूप्स (फोटोः सत्या राव कोमन्ना) 
लामायुरू मठ (फोटोः सत्या राव कोमन्ना)
स्वामिभक्त यामाहा का जान्सकार में फूलों से स्वागत. (फोटोः सत्या राव कोमन्ना)
पांग कैम्पिंग और तिब्बतियों द्वारा तम्बुओं में चलाए जाने वाले बिस्तर और नाश्ते की सुविधा देते लॉज. (फोटोः सत्या राव कोमन्ना)
भूस्खलन के रूप में एक छोटी सी बाधा, जब पांच घंटे के इंतजार के बाद ( फंसे हुए ट्रक के निकल जाने के लिए) थके और भूखे सत्या को मनाली वापस जाना पड़ा. (फोटोः सत्या राव कोमन्ना)

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Published: 05 Nov 2015,12:48 PM IST

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