International Women's Day 2023: महिलाएं अक्सर दूसरों का ख्याल रखते-रखते अपने बारे में सोचना या अपना ख्याल रखना भूल जाती हैं. इसका बुरा असर उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है. बीमारी का समय पर पता नहीं चलना या खतरनाक रूप ले लेना ज्यादातर महिलाओं के मामले में देखा जाता है.

महिलाओं को अपने स्वास्थ्य को प्राथमिकता देनी चाहिए. उन्हें खुद की नियमित जांच करवानी चाहिए. अपने मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए. महिलाओं का स्वास्थ्य बेहतर हो इसकी जिम्मेदारी केवल उन पर ही नहीं डाली जानी चाहिए, बल्कि उनके परिवारों को भी इसका ध्यान रखना चाहिए.

डॉ. गरिमा साहनी, गायनेकोलॉजिस्ट एंड को-फाउंडर प्रिस्टीन केयर ने बताया भारतीय महिलाओं में होने वाली आम बीमारियां के बारे में.

ब्रेस्ट कैंसर: युवा महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर (Breast Cancer) के मामले बढ़ रहे हैं. स्टडीज से पता चला है कि प्रत्येक 8 मिनट में भारत में एक महिला में ब्रेस्ट कैंसर का पता चलता है. WHO के अनुसार, साल 2020 में दुनिया भर में 23 लाख महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर हुआ और इसकी वजह से 6.85 लाख से अधिक महिलाओं की जान चली गयी. भारत में ब्रेस्ट कैंसर के मरीजों की संख्या साल 2025 में 2.32 लाख हो जाएगी. ब्रेस्ट कैंसर से बचने के लिए सेल्फ टेस्ट के साथ डॉक्टर से जांच कराते रहें.एक्सरसाइज करें, हेल्दी डायट, अच्छी नींद और स्ट्रेस को दूर रखें.

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सर्वाइकल कैंसर: सर्वाइकल कैंसर दुनिया में चौथा और भारत में दूसरा सबसे आम कैंसर है. हालांकि, ओवेरियन और सर्विकल कैंसर के प्रमुख लक्षण तब तक पता नहीं चलते हैं, जब तक ये टिशु के आसपास नहीं फैल जाता. इसके कारण बहुत से लोगों को कैंसर के शुरुआती चरण में कोई लक्षण ही पता नहीं चल पता. समय पर पता न चल पाने के कारण कैंसर सेल्स शरीर के अन्य हिस्सों में फैल सकती हैं. जैसे कि यूट्रस और ओवरी में, जहां अधिक जटिल उपचार जैसे हिस्टेरेक्टॉमी आवश्यक हो जाता है.

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कोलोन कैंसर: कोलोन कैंसर इस वक्त महिलाओं के लिए कैंसर से संबंधित मौत का तीसरा प्रमुख कारण बना हुआ है और दुर्भाग्य से यह एक ऐसी बीमारी है जिसका अक्सर शुरुआती स्टेज में पता नहीं चलता. आंत्र परिवर्तन (bowel changes) हमेशा कोलोन कैंसर जैसी गंभीर बात का संकेत नहीं होता हैं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इन परिवर्तनों के प्रति सचेत रहना चाहिए और जरूरत पड़ने पर अपने डॉक्टर से बात करनी चाहिए.

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हार्ट अटैक: युवा महिलाओं में आजकल हार्ट अटैक और हृदय संबंधी गंभीर बीमारियां बहुत अधिक बढ़ रही हैं. इसका प्रमुख कारण है ब्लड प्रेशर का बढ़ना, जो चुपचाप महिलाओं के लिए हार्ट अटैक का खतरा बढ़ाता है.

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मोटापा: मोटापा आज सबसे बड़ी समस्‍याओं में से है. जिससे हर तीसरी महिला परेशान है. WHO ने मोटापे को स्वास्थ्य के 10 मुख्य जोखिमों में से एक बताया है. मोटापे के कारण शरीर में कुछ हॉर्मोन और अतिरिक्त फैट बनने लगते हैं, जो डायबिटीज, हाई ब्‍लड प्रेशर, डिसलिपिडेमिया, ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एप्निया, प्राइमरी स्टर्लिटी जैसी कई बीमारियों का कारण हो सकता है. इनसे हार्ट अटैक, स्ट्रोक और कई प्रकार के कैंसर (ब्रेस्‍ट, ओवरी, यूटरस और पेनक्रियाज) तथा किडनी संबंधित रोगों की आशंका  बढ़ जाती है.

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टाइप 2 डायबिटीज : भारतीय महिलाओं में टाइप 2 डायबिटीज की समस्या तेजी से बढ़ रही है. डायबिटीज एक गंभीर बीमारी है, जो तब डेवलप होती है जब शरीर या तो अपर्याप्त मात्रा में इंसुलिन का बनाता है या जब शरीर बने हुए इंसुलिन का उपयोग करने में असमर्थ होता है. इंसुलिन हार्मोन ब्लड शुगर के लेवल को नियंत्रित करता है. डायबिटीज को लाइफस्टाइल में बदलाव कर रोका जा सकता है, जैसे वजन को घटाना,  शारीरिक गतिविधियों को बढ़ाना, जंक फूड से दूरी बनाना.

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हाइपरटेंशन: पहले उम्र बढ़ने पर महिलाओं में हाइपरटेंशन की समस्या ज्यादा देखने को मिलती थी पर अब कम उम्र में भी ये समस्या सामने आने लगी है. महिलाओं में हाइपरटेंशन के कई कारण हो सकते हैं. इस बीमारी की गंभीरता उम्र के साथ बढ़ सकती है. अधिक वजन या मोटा होना, बहुत अधिक नमक खाना, बहुत अधिक शराब पीना और धूम्रपान करना इसके कारण हो सकते हैं.

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पीसीओएस (PCOS): पीसीओएस (PCOS) महिलाओं की ओवरी में होने वाला एक प्रकार का सिस्‍ट होता है, जो सेक्स हार्मोन में असंतुलन पैदा होने की वजह से होता है. इस हार्मोन में होने वाले बदलाव पीरियड्स साइकिल और प्रेग्नेंसी पर बुरा असर डालते हैं. जिसकी वजह से ओवरी में छोटी सिस्‍ट बन जाती है. पीसीओएस (PCOS) एक ऐसी बीमारी है, जिसे लाइफस्टाइल और खाने की आदतों में सही बदलाव किए बगैर ठीक नहीं किया जा सकता है, वजन को नियंत्रित करने से इस बीमारी के लक्षणों को कम करने में मदद मिलती है.

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इंसोमनिया : नींद की कमी यानी इंसोमनिया (Insomnia) की समस्या अक्सर महिलाओं में देखी जाती है. इसमें सोने में असुविधा, नींद की कमी या नींद पूरी नहीं हो पाने की समस्या रहती है. ऐसा होने से स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है और दूसरी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होने लगती हैं. जैसे कि प्रजनन क्षमता और गर्भावस्था की समस्याएं, डायबिटीज, हृदय की बीमारी, हाई ब्लड प्रेशर, मूड डिसऑर्डर और खराब याददाश्त और कंसंट्रेशन में कमी.

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डिप्रेशन: आजकल की महिलाएं घर और ऑफिस दोनों की जिम्मेदारी सम्भालती हैं. परिवार, ऑफिस, समाज को खुश रखते हुए हर काम परफेक्ट करने के चक्कर में महिलाएं स्ट्रेस और डिप्रेशन का शिकार बनती जा रही हैं. आजकल की भागती-दौड़ती जिंदगी में अक्सर उनके पास समय नहीं होता स्ट्रेस से डील करने का. तब वो तनाव कहीं न कहीं उनके अंदर ही बढ़ता जाता है और उसका नेगेटिव असर लाइफ के हर हिस्से पर पड़ने लगता है.

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