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BHU: धर्म के दायरे में बांधेंगे तो कैसे आगे बढ़ेगी संस्कृत?

क्या किसी सब्जेक्ट को पढ़ाने के लिए किसी खास धर्म का होना जरूरी है?

फ़बेहा सय्यद
पॉडकास्ट
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अब एक मुस्लिम टीचर के संस्कृत पढ़ाने पर इतना विरोध देख कर ऐसा लगता है कि इस पॉइंट पर ज़रा हिस्ट्री की तरफ रुख करना बड़ा ही ज़रूरी है.
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अब एक मुस्लिम टीचर के संस्कृत पढ़ाने पर इतना विरोध देख कर ऐसा लगता है कि इस पॉइंट पर ज़रा हिस्ट्री की तरफ रुख करना बड़ा ही ज़रूरी है.
फोटो: क्विंट हिंदी 

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क्या किसी सब्जेक्ट को पढ़ाने के लिए किसी खास धर्म का होना जरूरी है? ये सवाल हम इसलिए पूछ रहे हैं क्योंकि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय यानी बीएचयू में एक मुस्लिम फिरोज खान की संस्कृत के एसोसिएट प्रोफेसर के तौर पर अपॉइंटमेंट होने के बाद विवाद खड़ा हो गया है.

विरोध करने वालों का तर्क है कि संस्कृत पढ़ाने वाला मुस्लिम कैसे हो सकता है? उनका कहना है कि अगर कोई हमारी संस्कृति और भावनाओं से जुड़ा हुआ नहीं है तो वह कैसे उन्हें और उनके धर्म को समझ सकता है.

फिरोज खान, संस्कृत में डॉक्टरेट हैं. उन्होंने बीए, बी एड, पीएचडी, नेट, जेआरएफ ये सब क्लियर कर लिया है यानी वो BHU के एसोसिएट प्रोफेसर बनने के लिए तमाम शर्तों को पूरा करते हैं. यहां तक

कि बीएचयू प्रशासन ने कहा है कि वह इस पद के लिए एक दम बेस्ट कैंडिडेट हैं. यहां तक कि फिरोज खान का रिश्ता संस्कृत से सिर्फ पढाई लिखाई तक ही सीमित नहीं है.

इसी पर आज का हमारा बिग स्टोरी पॉडकास्ट, मैं हूं फबेहा सय्यद.

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