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कोरोना लॉकडाउन: गरीब तो दशकों से एक बड़ी महामारी का दंश झेल रहा है

आज इस पॉडकास्ट में गरीब प्रवासियों की जुबानी सुनेंगे कि एक हफ्ते के लॉकडाउन ने उनकी कमर किस तरह तोड़ रखी है.

फ़बेहा सय्यद
पॉडकास्ट
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आज इस पॉडकास्ट में गरीब प्रवासियों की जुबानी सुनेंगे कि एक हफ्ते के लॉकडाउन ने उनकी कमर किस तरह तोड़ रखी है.
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आज इस पॉडकास्ट में गरीब प्रवासियों की जुबानी सुनेंगे कि एक हफ्ते के लॉकडाउन ने उनकी कमर किस तरह तोड़ रखी है.
फोटो: क्विंट हिंदी 

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भारत में कोरोनावायरस की वजह से लगे लॉकडाउन से सोशल डिस्टेंसिंग करना शायद हम सीख लें, और शायद इससे इस वायरस के फैलने को भी कम कर पाएं. ऐसे में जब शहर के शहर बंद हैं, यातायात के साधन बंद हैं, तो  सिर पर सामान की गठरियां उठाए, और पीठ पर अपने बच्चों को लादे, वो मज़दूर जो रोज कमाते हैं और रोज खाते हैं, वो  पैदल ही अपने घरों या गांव की तरफ निकल पड़े हैं. उनमें से कुछ सफर के दौरान ही पैदल चलते चलते गिर पड़े, कुछ मर भी गए. दिल्ली के आनंद विहार बस अड्डे पर भी प्रवासियों का हुजूम देखने को मिला जो घर जाने के लिए, जान दांव पर लगा कर बस निकल पड़े हैं. ये तस्वीरें गवाह हैं इस बात की कि भारत में कोरोनावायरस से भी बड़ी महामारी अगर है तो वो है गरीबी, वो है भूख. ऐसे लोगों की और उनके परिवारों की मन की बात आखिर कौन सुन सकता है?

आज इस पॉडकास्ट में लॉकडाउन और उससे परेशान ऐसे ही लोगों की बात करेंगे और उन्हीं की जुबानी सुनेंगे कि एक हफ्ते के लॉकडाउन ने उनकी कमर किस तरह तोड़ रखी है, औरआगे जो करीब दो हफ्तों से ज्यादा का लॉकडाउन अभी और बचा है उसे देख कर वो क्या महसूस करते हैं.

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