मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Podcast Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Friendship Day: गुलज़ार की कविता 'दस्तक', जिससे आए अपनेपन की महक

Friendship Day: गुलज़ार की कविता 'दस्तक', जिससे आए अपनेपन की महक

नफरत के इस दौर में क्या सीमा पार रहने वालों से दोस्ती करना संभव है? इस कविता में शायद जवाब मिल जाए.

फ़बेहा सय्यद
पॉडकास्ट
Published:
<div class="paragraphs"><p> फ्रेंडशिप डे पर पेश है गुलज़ार की कविता</p></div>
i

फ्रेंडशिप डे पर पेश है गुलज़ार की कविता

(फोटो: अर्निका कला/क्विंट हिंदी)

advertisement

दोस्ती के बारे में कई विचारों में से एक सवाल जो दिमाग में आता है, वह है 'दोस्ती' की भावना के बारे में, कि नफरत के इस दौर में क्या सीमा पार रहने वालों से दोस्ती करना संभव है.

गुलज़ार की कविता 'दस्तक' में सरहद पार रहने वालों का जिक्र जिस मिठास से किया है, उससे लगता है कि शायद ये मुमकिन है.

इस फ्रेंडशिप डे पर पेश है ये कविता, जिसमें अपनेपन की महक आती है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

सुब्ह सुब्ह इक ख्वाब की दस्तक पर दरवाजा खोला' देखा

सरहद के उस पार से कुछ मेहमान आए हैं

आंखों से मानूस थे सारे

चेहरे सारे सुने सुनाए

पांव धोए, हाथ धुलाए

आंगन में आसन लगवाए

और तन्नूर पे मक्की के कुछ मोटे मोटे रोट पकाए

पोटली में मेहमान मिरे

पिछले सालों की फसलों का गुड़ लाए थे

आंख खुली तो देखा घर में कोई नहीं था

हाथ लगा कर देखा तो तन्नूर अभी तक बुझा नहीं था

और होंटों पर मीठे गुड़ का जायका अब तक चिपक रहा था

ख्वाब था शायद!

ख्वाब ही होगा!!

सरहद पर कल रात, सुना है चली, थी गोली

सरहद पर कल रात, सुना है

कुछ ख्वाबों का खून हुआ था

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT