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उर्दू शायरी और किसान: मजाज़, इक़बाल के भरोसा दिलाने वाले शब्द 

आज उर्दुनामा में पढ़ेंगे कुछ ऐसे अशआर जिन में किसान लफ्ज़ के पीछे छुपी कुर्बानियां शायरों ने गिनवाई हैं.

फ़बेहा सय्यद
पॉडकास्ट
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उर्दुनामा में पढ़ेंगे कुछ ऐसे अशआर जिन में किसान लफ्ज़ के पीछे छुपी कुर्बानियां शायरों ने गिनवाई हैं.
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उर्दुनामा में पढ़ेंगे कुछ ऐसे अशआर जिन में किसान लफ्ज़ के पीछे छुपी कुर्बानियां शायरों ने गिनवाई हैं.
फोटो: क्विंट हिंदी/कामरान अख्तर

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होस्ट, राइटर और साउंड डिजाइनर: फबेहा सय्यद

एडिटर: शैली वालिया

म्यूजिक: बिग बैंग फज

जिस खेत से दहक़ान को मयस्सर नहीं रोज़ी

उस खेत के हर ख़ोशा-ए-गंदुम को जला दो

उर्दू के महान शायर अल्लामा इक़बाल का ये शेर है जिसमें वो कहते हैं कि अगर खेत से रोटी देने वाले किसान ही को रोजी ना मिल पाय, उस खेत का कोई मतलब नहीं है.

ऐसे वक्त में जब देश भर के किसान अपने हक के लिए दिसंबर की ठंड में दिनों से सड़कों पर निकले हुए हैं, तो ऐसे में किसानो के समर्थन में कई लोग भी जुट रहे हैं. अगर एक आंदोलन जमीन पर है तो सोशल मीडिया पर भी किसानो की सपोर्ट में आवाज उठाई जा रही हैं.

हमने सोचा, क्यों न किसान हित्त में जो आवाजें उर्दू शायरी में हैं वो भी आप को सुनाएं. यानी वो नज़्में जो उर्दू में किसानो के मुद्दों पर लिखी गई हैं. इस तरह की शायरी ज्यादातर किसानों के प्रति सामाजिक अन्याय, उत्पीड़न, असमानता के बारे में है.

तो इस एपिसोड में सुनिए उर्दू के शायर असरार उल हक मजाज, कैफी आजमी और अल्लामा इकबाल की नज़्में. इन की शायरी आज भी भारत में रोजगार के सबसे बड़े क्षेत्र यानी कृषि क्षेत्र में काम करने वाले लोगों के लिए जख्मों पर फायदे का काम करती है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

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