Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Readers blog  Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019कोरोना लॉकडाउन: एक तिहाई छात्रों के कभी स्कूल न लौटने की आशंका

कोरोना लॉकडाउन: एक तिहाई छात्रों के कभी स्कूल न लौटने की आशंका

COVID-19 महामारी का शिक्षा पर विपरीत असर और आगे का रास्ता सुझाती रिपोर्ट

भारत डोगरा
ब्लॉग
Updated:
सांकेतिक तस्वीर
i
सांकेतिक तस्वीर
(फोटो:PTI)

advertisement

COVID-19 महामारी का असर कई सेक्टर पर पड़ा है, जिनमें से एक एजुकेशन सेक्टर भी है. हाल ही में जारी ऑक्सफैम की एक रिपोर्ट ने शिक्षा संकट के कई अहम पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए इस संकट से बाहर निकलने के उपाय भी सुझाए हैं.

यह रिपोर्ट बताती है कि महामारी के प्रसार को रोकने के लिए विश्व स्तर पर सरकारों ने शिक्षा संस्थानों को कुछ न कुछ समय के लिए बंद किया. स्कूल बंद रहने की चरम स्थिति के समय 190 देशों में 1.6 अरब छात्र इससे प्रभावित थे, जबकि 2 करोड़ 40 लाख छात्रों पर स्कूल छोड़ने की मजबूरी का खतरा मंडरा रहा था.

भारत सरकार ने मार्च 16, 2020 को राष्ट्रीय स्तर पर सभी शिक्षा संस्थानों के लिए लॉकडाउन घोषित किया था. अक्टूबर के अंत तक शिक्षा संस्थानों के बंद होने से प्रभावित छात्रों की संख्या 32 करोड़ थी. इनमें से 70 प्रतिशत सरकारी स्कूलों में थे. स्कूलों के बंद होने से ऑनलाइन शिक्षा क्लासों में पढ़ने की मजबूरी का छात्रों पर गंभीर असर पड़ा, विशेषकर निर्धन परिवारों और हाशिए पर रह रहे सामाजिक समूहों के छात्रों पर प्रतिकूल असर पड़ा. इस स्थिति में आर्थिक स्थिति पर आधारित असमानताएं और लिंग आधारित असमानताएं पहले से और बढ़ सकती हैं और शिक्षा व्यवस्था ज्यादा विषम बन सकती है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि शिक्षा में अल्प-कालीन व्यवधान आने से शिक्षा स्थाई तौर पर छूट जाने का खतरा बढ़ जाता है. अभिजात परिवारों के छात्र महामारी के ज्यादा विकट असर से सुरक्षित रह सकते हैं, लेकिन बहुत से निर्धन और सीमांत परिवारों के बच्चे शायद फिर स्कूल नहीं जा पाएंगे. ऑक्सफैम इंडिया ने पांच राज्यों में सर्वेक्षण किया जिससे पता चला कि सरकारी स्कूलों के लगभग 40 फीसदी अध्यापक आशंकित हैं कि अधिक समय तक स्कूल बंद रहने से संभवतः एक-तिहाई छात्र स्कूल में लौट कर नहीं आएंगे.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

विशेषज्ञ कहते हैं कि स्कूल से बाहर रहने की दर एक साल में दोगुनी हो सकती है. सबसे कम संपत्ति वाले परिवारों में यह आशंका सबसे ज्यादा है. ज्यादा छात्रों के स्कूल छोड़ने की आशंका दलित, आदिवासी और मुस्लिम समुदायों में अधिक है. इनमें से बहुत से बच्चे बाल मजदूरी और बाल विवाह में भी फंस सकते हैं.

रिपोर्ट में इस ओर ध्यान भी दिलाया गया है कि बालिकाओं के लिए स्कूल छूटने का खतरा ज्यादा होने के साथ बाल-विवाह और हिंसा का खतरा भी अधिक है. किशोर आयु की लड़कियों (जिनमें से 75 प्रतिशत अनुसूचित जाति/जन जाति श्रेणी से थी) का सर्वेक्षण प्रैक्सिस ने किया तो उनमें से 52 प्रतिशत ने कहा कि तकनीकी सुविधाओं के अभाव और घरेलू कलह या हिंसा के कारण उनके अध्ययन के समय में कमी आई है.

स्कूलों ने केवल शिक्षा के मुख्य स्रोत की ही भूमिका नहीं निभाई है, बल्कि वे कुछ अन्य समाज कल्याण की स्कीमों का स्रोत या स्थान भी रहे हैं. स्कूलों के बंद रहने से इन स्कीमों के लाभ छात्रों तक पंहुचने में बहुत व्यवधान आया. लगभग 60 लाख उच्चतर स्कूली शिक्षा के छात्र (जो अनुसूचित जाति/जनजाति श्रेणी से है) केन्द सरकार से 100 से 75 प्रतिशत की छात्रवृत्ति प्राप्त करते रहे थे, पर इस संकट के दौरान इसमें बहुत बाधा आई. कुछ राज्यों में यह छात्रवृत्ति नहीं मिली और कुछ में यह कम मिली, हालांकि साल के अंत में केंद्र सरकार ने इस संदर्भ में नए आश्वासन की घोषणा की.

रिपोर्ट में बताया गया है कि 12 लाख स्कूलों में 12 करोड़ छात्रों तक मिड-डे मील स्कीम का भोजन पंहुचता रहा है. स्कूलों के बंद हो जाने से यह स्कीम भी बुरी तरह बाधित हुई. लगभग 78 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति के बच्चे और 70 प्रतिशत अनुसूचित जाति के छात्र ऐसे स्कूलों में पढ़ते हैं जहां मिड-डे मील मिलता है, इससे उनके पोषण में योगदान मिलता है. इस कारण कुपोषण बढ़ने की भी आशंका पैदा हुई है, विशेषकर अनुसूचित जाति और जनजाति जैसे कमजोर वर्ग के बच्चों में.

ऑक्सफैम इंडिया के सर्वे से पता चला कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस स्कीम को जारी रखने के निर्देश के बावजूद 35 प्रतिशत बच्चों को मिड-डे मील नहीं मिले. बाकी 65 प्रतिशत बच्चों में से मात्र 8 प्रतिशत को पका हुआ भोजन मिला, 53 प्रतिशत को मिड-डे मील के बदले सूखा राशन मिला और 4 प्रतिशत को मिड-डे मील के बदले कुछ धन-राशि प्राप्त हुई.

दुनिया के कई देशों की तरह भारत ने अपने स्कूल कोविड दौर में बंद कर दिए और ऑनलाइन और डिस्टेंस शिक्षा के कई तौर-तरीकों से कुछ हद तक शिक्षा जारी रखने का प्रयास किया. सरकार ने इसके लिए ऑनलाइन पोर्टल, खुली शिक्षा संसाधनों के राष्ट्रीय संग्रह, स्वयम, ई-पाठशाला, रेडियो और टीवी के शिक्षा कार्यक्रमों आदि से सहयोग किया.

इन प्रयासों का उद्देश्य अच्छा है, पर विषमता रिपोर्ट ने इस ओर ध्यान दिलाया है कि डिजिटल दूरी की हकीकत के कारण समाज के निर्धन वर्ग तक शिक्षा पंहुचाने में इस माध्यम की क्षमता बहुत सीमित है. महामारी के शुरू होने के समय केवल 4 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास कम्प्यूटर और केवल 15 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को इंटरनेट कनेक्शन उपलब्ध था. सरकार के अधिकांश डिस्टेंस शिक्षण प्रयास डीटीएच (डायरेक्ट टु होम) टीवी के माध्यम से किए गए जबकि मात्र 5.25 परिवारों को डीटीएच ग्राहकी उपलब्ध है. कम या गैर-तकनीकी प्रयासों पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया.

इस रिपोर्ट में बताया गया है कि यदि देश के 20 प्रतिशत सबसे निर्धन परिवारों की स्थिति देखें तो उनमें से मात्र 2.7 प्रतिशत परिवारों के पास एक कंप्यूटर है व मात्र 8.9 प्रतिशत के पास इंटरनेट सुविधा है. यदि उन अनुसूचित जाति/जनजाति परिवारों को देखें जिनके बच्चे स्कूल में हैं तो उनमें से 96 प्रतिशत के पास कंप्यूटर नहीं है.

ग्रामीण क्षेत्रों में मात्र 15.5 प्रतिशत महिलाएं कंप्यूटर का उपयोग कर सकती हैं या इंटरनेट का.( लाकडाऊन के दौरान इस स्थिति में कुछ बदलाव संभवतः आया होगा, पर मूल स्थिति तो वहीं है. ए.एस.ई.आर. के एक सर्वेक्षण के अनुसार लाकडाऊन के दौरान 11 प्रतिशत अभिभावकों ने फोन खरीदा ताकि उनके बच्चों की शिक्षा जारी रह सके. फिर भी सर्वेक्षण के एक तिहाई बच्चे ही आनलाईन शिक्षा प्राप्त कर सके.

ऑक्सफैम की रिपोर्ट के अनुसार गरीब परिवारों में कठिनाई केवल तकनीकी की पंहुच तक सीमित नहीं थी, बल्कि निजी जगह की भी समस्या है. भारत में औसत परिवार की सदस्य संख्या 4.45 है जबकि देश की 59.6 प्रतिशत जनसंख्या के पास रहने के लिए मात्र एक कमरा (या इससे भी कम) उपलब्ध है. इस स्थिति में घर पर शिक्षा प्राप्त करना सरल या सुविधाजनक नहीं है.

ऑक्सफैम रिपोर्ट में शिक्षा संबंधी कुछ अहम सुझाव भी दिए गए हैं:

  • सुरक्षित और समता-आधारित ढंग से शिक्षा संस्थानों को खोलना चाहिए. छोटी कक्षाओं और कम आयु के छात्रों के लिए भी शिक्षा संस्थान खुलने चाहिए और मिड-डे मील, निशुल्क दवा और यूनिफॉर्म की उपलब्धि भी सुनिश्चित होनी चाहिए.
  • इस तरह के प्रोत्साहन और सहायता घोषित करने चाहिए, जिससे कमजोर वर्ग के छात्रों की शिक्षा कम से कम पहले जैसी स्थिति में आ सके और उनकी कोई शैक्षिक क्षति न हो.
  • वैश्विक शिक्षा सम्मेलन 2020 की घोषणा के अनुरूप सार्वजनिक शिक्षा को बढ़ाना चाहिए या कम से कम उसमें कटौती नहीं करनी चाहिए.
  • अगर स्कूल खुलने में कुछ देर हो तो शिक्षा में समानता के मकसद के अनुरूप मोहल्ला कक्षाएं छोटे स्तर पर आयोजित होनी चाहिए.

अंत में ऑक्सफैम रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अभिभावकों और छात्रों के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए. आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 10(2)(1) के अंतर्गत नोटिफिकेशन जारी कर निजी स्कूलों द्वारा फीस बढ़ाने पर रोक लगानी चाहिए.

(भारत डोगरा एक स्वतंत्र पत्रकार, लेखक, रिसर्चर और एक्टिविस्ट हैं. उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं में लेख लिखे हैं. इस लेख में दिए गए विचार उनके अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 31 Jan 2021,02:06 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT