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भारत में G20 Summit: इसे 'इवेंट' न बनाइए, कतर से सीखिए, फायदा उठाइए

G20 Summit की मेजबानी का लाभ उठाया जा सकता है, कतर जैसा छोटा देश कमाल कर सकता है तो हम क्यों नहीं?

डॉ. उदित राज
ब्लॉग
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<div class="paragraphs"><p>फीफा कप की मेजबानी करने वाला देश कतर से  भारत को&nbsp;सीखने की जरूरत.</p></div>
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फीफा कप की मेजबानी करने वाला देश कतर से भारत को सीखने की जरूरत.

(फोटोः अलटर्ड बाइ क्विंट)

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जी 20 की अध्यक्षता करने की बारी इस बार भारत को मिली है. 20 देशों के इस समूह में भारत भी एक है लेकिन डंका ऐसा पीटा जा रहा कि न तो भूतकाल में कभी ऐसा हुआ और न ही कभी भविष्य में होने वाला है. कहा जा रहा है कि, ये सब मोदी जी के प्रताप से हो रहा है. मीडिया में खूब जगह मिल रही है और प्रचार-प्रसार में अभी से खर्च बढ़ गया है. मिलेगा क्या, जानना मुश्किल नहीं है. जितना स्थान मीडिया और भाषणों में जी 20 की मेजबानी के लिए मिल रहा है उतना किसान, मजदूर और भ्रष्टाचार पर रोक आदि समस्याओं को मिलता तो हम कहां से कहां पहुंचते? किसान के जो आलू और टमाटर कौड़ियों के भाव बिक रहे हैं, मीडिया ऐसे मुद्दे को जगह दे तो उपभोक्ता को भी लाभ और किसान का तो होगा ही.

अधिकारी काम नहीं करते और रिश्वत लेते हों परंतु ऐसी बातों के लिए कहां जगह है? युवाओं को रोजगार नहीं है और महंगाई आसमान पर, ऐसी समस्याओं की बात नदारद है. जी 20 की अध्यक्षता मिली देश के लिए गर्व की बात है. वैसे 19 और देश हैं जिन्हे ऐसा अवसर मिला या मिलेगा. इस मेजबानी का लाभ उठाया जा सकता है अगर कतर जैसे कट्टर देश से भी सीख लें. भले ही फीफा और जी 20 के उद्देश्य अलग हों लेकिन निवेश और पर्यटन दोनों इनसे प्रभावित होते हैं. फीफा वर्ल्ड कप 20 नवंबर से शुरू हुआ. कतर को उम्मीद थी कि 18 दिसम्बर को फाइनल तक 15 लाख विदेशी पर्यटक आयेंगे जबकि 29 लाख टिकट बिक चुके थे.

शुरुआत में कुछ फीफा प्रेमियों में कट्टरता के कारण हिचक थी लेकिन जो आते गए और संदेश वापिस अपने देश में दिए उससे पर्यटक बढ़ते गए. स्टेडियम में बीयर और शराब आदि पर कुछ प्रतिबंध जरूर लगा लेकिन व्यवस्था इतनी अच्छी थी कि लोगों को आनंद मिलता रहा. फ्रांस और अन्य देशों में खेल के दौरान ऐसे कुछ प्रतिबंध लग चुके हैं. कुछ धार्मिक प्रतिबंध थे परंतु बेहतर सुविधा और अनुशासन ने माहौल खुशनुमा बनाए रखा. यूरोप की लड़कियों ने अपने देश से भी ज्यादा आजादी और सुरक्षा महसूस किया. ऐसा माहौल बना कि पड़ोसी देशों का पर्यटन 200% बढ़ गया. इस बार की फीफा कमाई करीब 75000 करोड़ आंकी गई है. कतर ने भारी खर्च करके स्टेडियम और अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा किया जो बाद में उपयोग होगा.

आने वालों दिनों में पर्यटन, ट्रेड और निवेश से भरपाई हो जाएगी और अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी. एक अनुमान के अनुसार, 2030 तक हर साल 60 लाख सैलानी आएंगे. उत्तर भारत में विदेशी सैलानी करीब गायब हो गए. कभी कनॉट प्लेस और पहाड़ गंज सैलानियों से भरा होता था और अब तो दर्शन दुर्लभ हो रहा है. आत्मनिर्भरता का असर उल्टा हो गया. चीन से आयात 100 बिलियन डॉलर से अधिक बढ़ गया. जिस उपलब्धि का डंका पीटा जाता है, होता उल्टा ही है और जी 20 सम्मेलन का भी वही हश्र होने वाला है. ट्रंप के आने से कौन सा लाभ मिला? करने वाला शोर नहीं करता बल्कि करके दिखा देता है. क्या कतर जैसे यहां होगा? फीफा वर्ल्ड कप का इंतजाम और माहौल ऐसा हो गया कि कतर के होटलों में जगह कम पड़ गई और पड़ोसी देशों के भाग्य चमक गए. लाखों लोग उनके होटलों में रूके. 10 लाख फुटबॉल प्रेमी घूम रहे थे और कोई वारदात नहीं हुई.

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फुटबॉल वर्ल्ड कप के द्वारा कतर ने अपनी कट्टर छवि में जबर्दस्त सुधार लाया और हमारे यहां उल्टा ही होता है. नोएडा एक्सपो में जो देश भाग लेने आए थे, कान पकड़ लिया कि दुबारा नहीं आएंगे. मूल सुविधाएं नदारद और ट्रैफिक की समस्या से चीनियों ने कहा कि, अब कभी नहीं आएंगे. कतर जैसे छोटे से देश ने बिना ऐसी शिकायतों के सफलता पूर्वक दुनिया का सबसे बड़ा आयोजन करा दिया. इसका आने वाले दिनों में कतर को आर्थिक रूप से बड़ा लाभ मिलने वाला है.

जी 20 मेजबानी में अभी देना पड़ रहा है और आते-आते इतना खर्च हो जायेगा कि लेने के देने न पड़ जाएं. झुग्गियों और गरीब बस्तियों को ढकने में तमाम धन व्यर्थ होने लगा है. शहर सजाएं जाने लगे हैं. ये पैसे किसी और काम में भी काम आ सकते हैं. चीन के राष्ट्रपति गुजरात में आए तो शोर मचा कि 500 बिलियन डॉलर निवेश होगा, हुआ कितना अंदाज ही लगाना ठीक होगा.

वाइब्रेंट गुजरात महोत्सव होता रहता है लेकिन अर्थव्यवस्था की हालत खराब होती गई. कुछ बड़े शहरों में चमक दिखती है जो पहले से अच्छे रहे हैं बल्कि देखा जाए तो उनको और आगे होना चाहिए लेकिन ग्रामीणों की हालात बहुत ही खराब है. अतीत के ऐसे सारे कार्यक्रमों को देखते हुए हम कह सकते हैं कि फायदा किसी का होगा तो जरूर लेकिन न देश की अर्थव्यवस्था का और न ही जनता का. लेने के देने ही पड़ेंगें जैसे पहले होता रहा है.

एक साधारण सा आयोजन जो इंडोनेशिया जैसे देश ने हाल में किया. इंडोनेशिया की मेजबानी की तैयारी के बारे में तमाम जानकारी इकट्ठा किया तो पता लगा कि उसने इसे इवेंट नहीं बनाया. यहां तो अभी से अनहोनी को होनी की तरह पेश किया जाने लगा है. किसी को कुछ प्राप्ति हो या न लेकिन मोदी जी का नाम चारों तरफ जरूर चमकेगा. मीडिया तो ऐसे पेश करेगी कि अब तो तमाम समस्याओं का समाधान हो ही जाने वाला है. काश! जी 20 सम्मेलन इवेंट न बने यही देश के भले में होगा.

(डॉ. उदित राज, पूर्व सांसद, राष्ट्रीय चेयरमैन, असंगठित कामगार एवं कर्मचारी कांग्रेस (केकेसी) व राष्ट्रीय प्रवक्ता)

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