advertisement
नये साल (New Year 2023) के नये दिन की नयी तारीख के नये पहर में नये साल की नयी-नयी शुभकामनाएं. दुनिया भर में हर किसी के ज़ुबान पर नये साल का स्वाद चढ़ा हुआ है, हर शख्स जश्न में डूबा हुआ है, तेज आवाज में गाने बजाकर बच्चे -बूढ़े झूम रहें हैं, सभी स्वादिष्ट पकवानों का आनंद लेंगे. कुछ इसी तरह की छवि आपके मस्तिष्क दर्पण पर भी बनती होगी नव वर्ष के नाम पर! है ना...!
तो चलिए आपको ले चलते हैं सोशल मीडिया की चकाचौंध में नजर न आने वाली नये वर्ष की पुरानी सच्चाई की ओर, नए साल के इस चमकीले जश्न में न जाने कितने पैसे राख हो गए होंगे लेकिन वो भूखा कल पेट दबा के सो गया था, शायद नए साल के लाउडस्पीकर के शोर और ब्रांडेड जूतों की धमक से सो भी न सका होगा!
नए साल पर न जाने कितने नवजवान सड़कों पर रात गुजारते हैं और जश्न खत्म होते ही घर को लौट जाते हैं, लेकिन सैकड़ों दिहाड़ी मजदूरों की रातें कल भी सड़कों पर गुजरी थीं, आज भी सड़कों पर हैं और इस कंपकंपाती ठंड में कल भी वो वहीं रहेंगे.
नए साल पर दीवारों के कैलेंडर तो बदल जाते हैं लेकिन जिसके पास दीवार ही नहीं उसके लिए कैलेंडर का क्या मतलब?
तमाम बच्चों को नयी डायरी दी जाती है तो कुछ ऐसे भी नन्हे हाथ होंगे, जिन्होंने डायरी के मोटे पन्नों की गर्माहट और नयी डायरी की खुश्बू सपने में भी महसूस नहीं की होगी.
कहीं मिठाइयां बंटी होंगी तो कहीं कोई दाल के लिए तरसा होगा, कहीं नये कपड़े पहनने की खुशी रही होगी तो कहीं किसी के पुराने ख्वाब भी पूरे नही हुए होंगे.
कहीं पटाखों से पेड़ों को झुलसाया और कॉर्बन बढ़ाया गया होगा तो कहीं अस्पताल के किसी बेड पर कोई मरीज आक्सीजन की कमी से मौत का सामना कर रहा होगा.
नए साल पर कहीं कोई नयी यादों से जीवन सजा रहा होगा, तो कोई पुराने दिनों की गलियों में बेबसी से मंडरा रहा होगा, जोरों की आतिशबाजी और शोर-गुल के बीच कई लड़के-लड़कियां 4 बाई 2 के कमरे में बैठे आंखों में कुछ कर जाने का जुनून और दिल में गांव का सुकून लिए किताबों में खोए होंगे और दूर किसी गांव में उनके मां-बाप अपने बच्चों के भविष्य की सुखद कामना करते हुए अपने सूने घर में वक्त काट रहे होंगे.
क्या साल बदलने से एक तारीख ही बदलेगी या हालात भी?
नया साल ही आया है या होगी नयी बात भी?
क्या इस नये साल के नये दिन से महिलाएं सड़कों पर बिना किसी डर से निकल पाएंगी?
तथाकथित उच्च लोगों के मटके से पानी पी लेने के गुनाह में कोई बेगुनाह बच्चा (दलित) फिर तो नही मारा जाएगा?
भारतीय संविधान का मूल अधिकार हमारे सामाजिक संविधान का हिस्सा कब बनेगा (संवैधानिक नैतिकता)?
क्या बेरोजगारों के लिए कुछ नये काम आएंगे?
क्या बरसों से अदालत का चक्कर काटते पीड़ितों को इंसाफ मिलेगा?
क्या ऐसा भी कोई नया साल कभी आएगा जो सबके लिए खुशियों की नमी बौछार लेकर आए?
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)