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बशीर बद्र का शेर है,
"उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो,
न जाने किस गली में जिंदगी की शाम हो जाए"
2 जून की शाम को अपनी यादों के उजाले से रोशन करते हुए भजन सोपोरी साहब इस दुनिया को अलविदा कह गए. वे 73 साल के थे. हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत एवं सूफियाना मुशिकी के जरिए उन्होंने संगीत प्रेमियों के बीच समान रूप से लोकप्रियता बटोरी. पचास के दशक में महज पांच साल का एक बालक सार्वजनिक सम्मेलन में संतूर के तारों को छेड़ता है और यही संगीत बाद के वर्षों में हिंदुस्तान और दूसरे देशों की धरती पर हिंदुस्तान का गौरव बन जाता है.
भजन सोपोरी में संगीत के संस्कार के अंकुर परिवार से ही फूटे. उनके दादा शंकर पंडित संस्कृति बंदिशों के महान साधक थे. उनके पिता ने संतूर को संगीत की साधना के लिए चुना. जम्मू कश्मीर के श्रीनगर में 1948 को भजन सोपोरी का जन्म हुआ था. हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत और सूफियाना संगीत की शिक्षा के बाद वे पश्चिमी शास्त्रीय संगीत को सीखने के लिए अमेरिका के वाशिंग्टन विश्वविद्यालय गए. अमेरिका से हिंदुस्तान लौटकर उन्होंने फिर संतूर के तारों की ध्वनि को कभी रुकने नहीं दिया.
एक साक्षात्कार में अपनी बात शुरू करने से पहले भजन सोपोरी ने कहा था, "संगीत का आरंभ संगीत से ही होना चाहिये." भारत के जिन लोगों का समय कभी ऑल इंडिया रेडियो के रोचक सफर के साथ बीता है, वे भजन सोपोरी के संतूर की धुनों को अपने हृदय में जरूर महसूस करते होंगे.
1990 के दशक में ऑल इंडिया रेडियो के संगीत कार्यक्रम में जब भजन सोपोरी संगीत के सुर छेड़ा करते थे, तब उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में बैठा संगीत प्रेमी कश्मीर की खूबसूरती वादियों की सैर पर निकल पड़ता था. सूफी गायन और हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के जरिए भजन सोपोरी ने गंगा-जमुनी तहजीब का मधुर सुर छेड़ा. उन सुरों में हिंदुस्तान के संगीत प्रेमी हमेशा भजन सोपोरी और उनके संतूर को याद करते रहेंगें.
भजन सोपोरी ने पद्मश्री, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, बाबा अलाउद्दीन खान पुरस्कार और कश्मीर का डोगरी पुरस्कार जैसे महत्वपूर्ण पुरस्कार अर्जित किए. समापा अकादमी के जरिए वे संतूर एवं संगीत की अविरल धारा को दशकों से पोषित करते आ रहे हैं. जेलों की दीवारों में अपने दुनिया बसाये बैठे हजारों कैदियों में उनकी संस्था सामापा संगीत के प्रति प्रेम जगा रही है.
2 जून की शाम को अपनी यादों से रोशन जब भजन सोपोरी इस दुनिया से विदा ले रहे थे तब कश्मीर की वादियों में संतूर का एक बहुमूल्य तार जरूर टूटा होगा. संतूर की ध्वनि कुछ पल के लिए मौन हो गई होगी, यह कहते हुए कि तनिक ठहरो, संगीत के महान साधक को प्रणाम तो करने दो.
(लेखक आईटीएम विश्वविद्यालय ग्वालियर में एम.ए. (पत्रकारिता एवं जनसंचार) के स्टूडेंट हैं. इस लेख में लिखे गए विचार लेखक के अपने हैं. इसमें क्विंट हिंदी की सहमति जरूरी नहीं है.)
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