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1983 वर्ल्ड कप:कपिल आखिर मदनलाल को गेंद क्यों नहीं थमाना चाहते थे?

1983 वर्ल्ड कप की कई यादों को कपिल देव ने ताजा किया

द क्विंट
स्पोर्ट्स
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1983 वर्ल्ड कप
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1983 वर्ल्ड कप
(फोटो साभार: ICC-Cricket)

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भारतीय क्रिकेट के लिए साल 1983 बेहद खास साबित हुआ, जब कपिल देव की अगुवाई में टीम इंडिया ने पहला वर्ल्ड कप जीता. हम लोगों में से कई लोग उस ऐतिहासिक लम्हे के गवाह नहीं बन सके. ऐसे में 1983 वर्ल्ड कप की ऐतिहासिक जीत पर बॉलीवुड में फिल्म बनाई जा रही है, जिसमें उस लम्हे को बड़े पर्दे पर उकेरा जाएगा.

फिल्म के प्रमोशन के सिलसिले में बुधवार को एक कार्यक्रम में इस जीत के सबसे बड़े हीरो कपिल देव भी पहुंचे. इस दौरान उन्होंने इस जीत के कई किस्से सुनाए.

कपिल ने बताया कि कैसे वे तेज गेंदबाज मदनलाल को फाइनल मैच के निर्णायक ओवर में बॉल नहीं थमाना चाह रहे थे, लेकिन मदन ने खुद ही कपिल के हाथ से गेंद ले ली थी. बता दें कि मदनलाल अपने दिनों में 130 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से गेंदबाजी करते थे.

फाइनल मैच में टारगेट महज 184 रन का था. कपिल कोई रिस्क नहीं लेना चाहते थे. ऐसे में मदनलाल को बॉल थमाने का फैसला कपिल के लिए गैंबलिंग जैसा था. मदनलाल ने विवियन रिचर्ड्स का विकेट उसी ओवर में हासिल किया और वो पल इतिहास में दर्ज हो गया.
उस ओवर से पहले, मदनलाल की गेंद पर दो-तीन चौके लग चुके थे. ऐसे में मैं मदन के पास गया और मैंने कहा कि तुम ब्रेक ले लो और कुछ ओवर के बाद वापसी करना. मदन ने मुझसे कहा- कपिल, आप मुझे बॉल दीजिए. मैंने पहले भी विवियन रिचर्ड्स को आउट किया है, मैं एक बार और ये कर सकता हूं
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कपिल ने कहा कि मदनलाल का ऐसा कॉन्फिडेंस देकर मैंने उन्हें बॉल दे दिया, हालांकि मैं कुछ खास इच्छुक नहीं था. साथ ही कपिल ने उस टीम के हर मेंबर की जमकर तारीफ की. कपिल ने कहा:

हमारी पूरी टीम ये जानती थी कि हम बेस्ट नहीं हैं. आधा दौरा खत्म होने के बाद हमें समझ आया कि हम एक टीम के तौर पर खास हैं. जब हमारी वर्ल्ड कप टीम को चुना गया, तो हमारा आत्मविश्वास उतना ऊंचा नहीं था. लेकिन जब हम जीतने लगे, तो हमें प्रेरणा मिलने लगी. हर टीम मेंबर एक लीडर की तरह योगदान देने लगा.

इस दौरान कपिल देव ने अपने शुरुआती दिनों की कमजोर अंग्रेजी और उससे जुड़े किस्सों के बारे में भी बताया.

कपिल ने कहा, ''मैं खेती-किसानी वाले बैकग्राउंड से हूं. मेरे सभी टीममेट पढ़े-लिखे, सभ्य परिवार से थे. जिस बैकग्राउंड का मैं था, उस का असर मेरी भाषा में दिखाई देता था. जब मैंने खेलना शुरू किया, तो क्रिकेट 'अंग्रेजी में' खेला जाता था. जब मैं कप्तान बना, तो कुछ लोगों ने कहा कि इसको तो अंग्रेजी आती ही नहीं, इसे कप्तान नहीं होना चाहिए. ऐसे में मैंने कहा कि किसी ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी वाले को अंग्रेजी बोलने के लिए बुला लीजिए, मुझे मैदान पर अपना काम करने दीजिए.''

इस मौके पर वर्ल्ड कप विजेता टीम के दूसरे मेंबर के. श्रीकांत, रोजर बिन्नी, कीर्ति आजाद, यशपाल शर्मा, संदीप पाटिल, मोहिंदर अमरनाथ, बलविंदर सिंह संधू, दिलीप वेंगसरकर, सुनील वालसन और टीम के प्रबंधक पीआर मान सिंह ने भी ऐतिहासिक जीत की यादें साझा कीं.

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