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Andrew Symonds में इतना टैलेंट था कि 2 देश उन्हें अपनाना चाहते थे,IPL में था खौफ

Andrew Symonds जिस रफ्तार के कायल थे, क्या उसी ने उन्हें जिंदगी की पिच से बाहर कर दिया?

विमल कुमार
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<div class="paragraphs"><p>Andrew Symonds में इतना टैलेंट था कि 2 देश उन्हें अपनाना चाहते थे,IPL में था खौफ</p></div>
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Andrew Symonds में इतना टैलेंट था कि 2 देश उन्हें अपनाना चाहते थे,IPL में था खौफ

(फोटो: ट्विटर/वसीम जाफर)

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एंड्रयू साइमंड्स (Andrew Symonds) में जो काबिलियत थी, अगर वो इंग्लैंड या वेस्टइंडीज के लिए खेलते तो 26 से ज्यादा टेस्ट खेलते. और ये सिर्फ ख्याली बातें नहीं हैं क्योंकि साइमंड्स का जन्म इंग्लैंड में हुआ था और इस लिहाज से वो वहां के लिए भी क्रिकेट खेल सकते थे.

अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत करने से पहले साइमंड्स फर्स्ट क्लास क्रिकेट के लिए 4 महीने साल के इंग्लैंड की काउंटी क्रिकेट में खेलते थे और साल के चार महीने ऑस्ट्रेलिया के शैफील्ड शील्ड में. उनमें इतनी प्रतिभा थी ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड दोनों मुल्क चाहते थे कि साइमंड्स उनके लिए खेले.

चूंकि, साइमंड्स के माता-पिता कैरिबियाई-यूरोपियन थे तो उनके पास वेस्टइंडीज के लिए भी खेलने का विकल्प था जैसा कि हाल के सालों में जोफरा आर्चर के साथ हुआ था. लेकिन, साइमंड्स हमेशा खुद को बेस्ट मानते थे और बेस्ट टीम के लिए खेलना चाहते थे.

90 के दशक में और इस सदी के शुरुआत में कंगारुओं से बेहतरीन टीम तो किसी के पास नहीं थी और इसलिए साइमंड्स ने खेल के लिए आखिरकार ऑस्ट्रेलिया को ही चुना.

Andrew Symonds, रफ्तार थी उनकी पहचान

नैसर्गिक प्रतिभा के लिहाज से देखा जाए तो साइमंड्स टी20 फॉर्मेट के लिए अल्टीमेट प्रोड्क्ट साबित हो सकते थे. उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के लिए महज 17 मैच खेले लेकिन उनका स्ट्राइक रेट करीब 170 का था.

इसके अलावा साइमंड्स एक असाधारण फील्डर और बेहद उपयोगी गेंदबाज भी थे जो गैरी सोबर्स की ही तरह कभी मीडियम पेस तो कभी स्पिन गेंदबाजी करने का भी हरफनमौला कमाल दिखा सकते थे.

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आईपीएल के पहले दो साल यानि कि 2008 और 2009 में साइमंड्स का खौफ गेंदबाजों पर हुआ करता था जब वो अपने करियर के आखिरी पड़ाव में आ चुके थे. साइमंड्स अगर कुछ साल बाद आईपीएल में आये होते तो शायद उनके करियर की उड़ान ने कुछ अलग मंजिलें तलाश कर ली होतीं.

अजीब सी विडंबना है कि टेस्ट में साइमंड्स को ऑस्ट्रेलिया से बहुत मौके नहीं मिले क्योंकि उस दौर में कंगारुओं के पास एक से बढ़कर एक दिग्गज खिलाड़ी की उपलब्धता थी और टी20 फॉर्मेट में साइमंड्स की एंट्री उस वक्त हुई जब ये खेल ही पूरी तरह से अपनी पहचान स्थापित नहीं कर पाया था.

ऐसे में इन दोनों के बीच में क्रिकेट का एक ही फॉर्मेट बचा और वो था वन-डे क्रिकेट. और यहां पर साइमंड्स ने अपना लोहा मनवाया.

रिकी पोटिंग ने हीरे की पहचान की और तराशा

लेकिन, ऐसा नहीं था कि साइमंड्स आये और आते ही छा गए. जैसा कि अक्सर बेजोड़ प्रतिभाओं के साथ होता है. साइमंड्स टीम में आये तो जल्दी लेकिन उन्हें स्थापित होने में करीब आधा दशक लग गया. कई मौकों पर टीम से अंदर-बाहर हुए.

आखिर में जब रिकी पोटिंग को ऑस्ट्रेलियाई टीम की कप्तानी मिली तो उन्होंने साइमंड्स जैसे खिलाड़ी में हीरे की पहचान की और उन्हें तराशा. और यही वजह रही कि साइमंड्स लगातार दो बार , 2003 और 2007 के वर्ल्ड कप में चैंपियन बनने वाली ऑस्ट्रेलियाई टीम का अहम हिस्सा रहे.

जिस बल्लेबाज ने अपने करियर के पहले एक-चौथाई मैचों में 25 से कम का औसत हासिल किया उसने जब खेल को अलविदा कहा तो उनके आंकड़े वन-डे क्रिकेट के लाजवाब खिलाड़ियों में से एक थे. साइमंड्स के खेल में रफ्तार को एक खास स्थान था और इसी रफ्तार के चलते उन्होंने धीमी शुरुआत की भरपाई कर ली थी.

हमें फिलहाल ये नहीं पता है कि क्या उसी रफ्तार फैक्टर ने कहीं कार दुर्घटना में उनकी जान तो नहीं ले ली... जो भी हो क्रिकेट के इस शानदार खिलाड़ी का इतनी जल्दी जिंदगी की पिच से आउट होना उनके चाहने वालों को बहुत दर्द देगा.

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