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Asian Games 2018 में जीता मेडल, अब चाय बेच रहा ये ‘खुद्दार’ खिलाड़ी

हरीश कुमार हाल ही में जकार्ता से रेगू (सेपक टकरा) में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर लौटे हैं

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हरीश कुमार हाल ही में जकार्ता से रेगू (सेपक टकरा) में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर लौटे हैं
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हरीश कुमार हाल ही में जकार्ता से रेगू (सेपक टकरा) में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर लौटे हैं
(फोटो: ANI)

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उसने हाल ही में एशियन गेम्स में ब्रॉन्ज मेडल जीता है. उसे दिल्ली सरकार ने 50 लाख और खेल मंत्रालय ने 5 लाख रुपए देने का ऐलान किया है. वो रोज 4 घंटे की कड़ी प्रैक्टिस करता है, ताकि देश के लिए और मेडल जीत सके. लेकिन खेल की जिम्मेदारियों के साथ-साथ जमीन से जुड़ा ये खिलाड़ी अपने घर की जिम्मेदारियों को भी बखूबी निभाना जानता है.

यही वजह है कि इंडोनेशिया से मेडल जीतकर वापस लौटने के बाद से ही उसने एक बार फिर अपने चाय के दुकान की बागडोर संभाल ली, ताकि परिवार चलाने में मदद कर सके. मिलिए 23 साल के हरीश कुमार से, और जानिए उनकी अनोखी दास्तान.

दिल्ली के 'मजनूं का टीला' इलाके में रहने वाले हरीश जब से जकार्ता से रेगू (सेपक टकरा) में ब्रॉन्ज मेडल लेकर लौटे हैं, उसके बाद से उनकी जिंदगी एक बार फिर पुराने ढर्रे पर वापस लौट आई है. वे रोज सुबह से दोपहर तक अपने भाई के साथ चाय की दुकान पर काम करते हैं.

“हमारा परिवार बड़ा है और आमदनी के जरिए कम हैं. मैं अपने परिवार को मदद करने के लिए दुकान पर काम करता हूं. मैं रोज दोपहर को 2 बजे से 6 बजे तक प्रैक्टिस करता हूं, ताकि मैं अपने देश का नाम रोशन कर सकूं अपने भविष्य को संवारने के लिए मैं कोई अच्छी नौकरी हासिल करना चाहता हूं ताकि मैं अपने परिवार की मदद कर सकूं.”
-हरीश कुमार  
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सरकार की शुक्रगुजार हैं मां

हरीश के परिवार की आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं है. परिवार में माता-पिता के अलावा 4 भाई और 1 बहन हैं. दो भाई नेत्रहीन हैं. पिता किराए का ऑटो चलाते हैं और चाय की इस दुकान से परिवार की थोड़ी बहुत आमदनी हो जाती है. हरीश की मां प्रैक्टिस के दौरान हरीश को रहना, खाना और हर तरह की मदद मुहैया करने के लिए सरकार का शुक्रिया अदा करती हैं.

साल 2011 में एक बार रेगू खेलते हुए उनके मौजूदा कोच हेमराज की नजर उन पर पड़ी और उन्होंने हरीश की काबिलियत को पहचान लिया. इसके बाद हेमराज उन्हें स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया ले गए और इस खेल से उन्हें वाकिफ करवाया. उसके बाद से उन्हें अथॉरिटी की तरफ से महीने का फंड और किट मिलने लगी.

हरीश बताते हैं कि आसपास के जो लोग इस खेल को वक्त की बर्बादी बताकर इसे छोड़ने की सलाह देते थे, और कहते थे कि 'तुम्हारा कोच तुम्हें लूट रहा है', अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश के लिए मेडल जीतकर लौटने पर उन्हीं लोगों ने मालाओं से उनका स्वागत किया.

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Published: 08 Sep 2018,05:57 PM IST

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