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सुशील कुमार केस: खेल जगत में जूनियर पर जुल्म की ये भी हैं कहानियां

कई बार जूनियर खिलाड़ियों से की जाती है सेक्सुअल फेवर की मांग

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Indian Athletes a Asian Games (फोटो: PTI)
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Indian Athletes a Asian Games (फोटो: PTI)
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भारत के अंतर्राष्ट्रीय पहलवान और ओलिंपिक मेडलिस्ट सुशील कुमार पर जूनियर रेसलर सागर धनखड़ की हत्या का आरोप है. सुशील की गिरफ्तारी भी हो चुकी है. इस घटना के बाद से जूनियर और स्ट्रगल करने वाले खिलाड़ियों के भविष्य पर भी सवाल उठने लगे हैं. क्योंकि यह पहला मामला नहीं है, इससे पहले भी कई जूनियर खिलाड़ियों को सीनियर प्लेयर या कोच द्वारा परेशान किया जा चुका है. आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ खास घटनाओं के बारे में...

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक 2020 में लगभग एक दशक (2010 से 2019) के दौरान साई में यौन शोषण की 45 शिकायतें दर्ज की गई थी. जिसमें से 29 शिकायत कोच के खिलाफ दर्ज की गई थीं. ये शिकायतें देश के 24 सेंटरों में दर्ज करायी गई थीं.  

देश में न जाने कितने खिलाड़ी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में खेलने का सपना लेकर ट्रेनिंग शुरू करते हैं. लेकिन कई बार उनको प्रताड़ित किया जाता है. सेक्सुअल फेवर मांगा जाता है. इसके अलावा उन्हें शारीरिक और मानसिक तनाव से जूझना पड़ता है.

कोच पर यौन शोषण के आरोप

2010 में रमेश मल्होत्रा महिला वेटलिफ्टिंग कोच थे उन पर जूनियर खिलाड़ियों के यौन शोषण का आरोप लगा था. जिसके बाद इंडियन वेटलिफ्टिंग फेडरेशन ने मल्होत्रा को सस्पेंड कर दिया था. रमेश मल्होत्रा पर ओलिंपियन वेटलिफ्टर कर्णम मल्लेश्वरी ने महिला वेटलिफ्टरों के यौन शोषण का आरोप लगाया था और फोन पर उनकी बातचीत सुनाकर उनकी करतूतों के सबूत भी पेश किए थे.

2012 में भारतीय कुश्ती कोच पर जूनियर महिला पहलवानों ने यौन शोषण का आरोप लगाया था. चार जूनियर खिलाड़ियों ने तत्कालीन खेल मंत्री अजय माकन से लिखित शिकायत की थी. सभी खिलाड़ी उस समय अंडर-19 कैंप की थी और कजाखिस्तान में एशियन जूनियर चैंपियनशिप में भाग ले रही थीं. लड़कियों ने कहा था कि 30 अप्रैल से 25 मई के बीच लखनऊ में लगे नेशनल कैंप के दौरान कोच ने उनसे बदसलूकी की थी.

शिकायत में यह भी कहा गया था कि हरियाणा का यह कोच 15 मई की रात जबरन लड़कियों के कमरे में घुस आया और बदसलूकी करने लगा. शोर मचने पर अन्य लड़कियां वहां पहुंचीं और कोच को कमरे में ही कैद कर दिया. इस पर कोच ने लड़कियों को चुप रहने और उसे चुपचाप निकल जाने देने के लिए धमकाया और वहां से निकल गया. स्पो‌र्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया के तत्कालीन निदेशक डीडी वर्मा ने कहा था कि शिकायत मिलने के बाद हमने कोच को टीम से अलग हो जाने के आदेश दे दिए थे और उसे निलंबित कर दिया गया था. वहीं तीन सदस्यीय पैनल को इस मामले की जांच करने को कहा गया था.

निशानेबाजों पर लगा था आरोप

2013 में भारतीय जूनियर निशानेबाजों द्वारा जर्मनी में किए गए शानदार प्रदर्शन का रंग उस समय फीका पड़ गया था, जब नेशनल रायफल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (NRAI) ने दो जूनियर ट्रैप निशानेबाजों को अपनी साथी खिलाड़ी का यौन उत्पीड़न करने के आरोपों के बाद सस्पेंड किया था. दोनों निशानेबाज नाबालिग थे और उन्हें फिनलैंड में आयोजित होने वाली प्रतियोगिता की टीम से बाहर कर दिया गया था. उनके नाम इसलिए नहीं बताए गए थे, क्योंकि दोनों ही 18 साल से कम उम्र के थे. इन दोनों ने इस महिला खिलाड़ी को उसके मैचों के दौरान भी परेशान किया था.

जनवरी 2014 में हिसार स्थित साई ट्रेनिंग सेंटर में 5 नाबालिग लड़कियों ने अपने कोच के खिलाफ शिकायत की थी. लड़कियों के अनुसार कोच उनको जबरन जकड़कर किस कर रहा था. पुलिस में इसकी शिकायत दर्ज करायी गई थी. लेकिन गांव की पंचायत की दखल के बाद यह वापस ले ली गई.

2015 में केरल स्थित भारतीय खेल प्राधिकरण के वाटर स्पोर्ट्स सेंटर में ट्रेनिंग करने वाली चार खिलाड़ियों ने जहरीला फल खाकर आत्महत्या की कोशिश की थी, जिनमें से एक की मौत हो गई थी. लड़कियों के परिजनों ने आरोप लगाया था कि कुछ सीनियर उनका मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न कर रहे थे. इस घटना के दौरान पुलिस को सुसाइड नोट भी मिला था. ये खिलाड़ी केनोइंग और रोइंग स्पर्धा की थीं. इन्होंने 35वें राष्ट्रीय खेल में गोल्ड मेडल हासिल किया था.

कबड्डी की खिलाड़ी के साथ बलात्कार का मामला

2017 में दिल्ली में कबड्डी की राष्ट्रीय स्तर की जूनियर खिलाड़ी के साथ बलात्कार का मामला सामने आया था, जूनियर खिलाड़ी ने आरोप लगाते हुए कहा था कि 9 जुलाई को वह छत्रसाल स्टेडियम गई थी. वहां उसे एक शख्स मिला, जिसने खुद को स्टेडियम का प्रशासक और कोच भी बताया था. इसके बाद उसने कार में घुमाने के बहाने ले गया और घूंसा मारकर बेहोश कर दिया. इसके बाद बलात्कार किया और किसी को बताने पर उसे जान से मारने की धमकी भी दी थी. बाद में आरोपी कोच को गिरफ्तार कर लिया गया.

2018 में रेवाड़ी जिले की एक नाबालिग नेशनल लेवल की वॉलीबॉल खिलाड़ी ने अपने कोच पर पिछले 2 साल से यौन शोषण करने का आरोप लगाया था. आरोपी कोच उस वक्त हरियाणा स्पोर्ट्स डिपार्टमेंट में कार्यरत था. खिलाड़ी ने मजिस्ट्रेट के सामने दिए बयान में भी कोच पर गंभीर आरोप लगाए थे. साथ ही 2 साल से चल रहे इस शोषण में एक महिला स्पोर्ट्स अधिकारी का भी नाम लिया था.

पीड़िता ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया था कि 2016 में पहली बार कोच और महिला अधिकारी के साथ एक राज्य स्तर के टूर्नामेंट में हिस्सा लेने के लिए गुड़गांव गई थी. वहां एक होटल रूम में कोच ने उसका रेप किया. इसके बाद कई आउटडोर टूर्नामेंट के दौरान चंडीगढ़, रोहतक जैसे शहरों में उसके साथ यौन शोषण हुआ था.

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2018 में भारतीय खेल प्राधिकरण SAI ने अपने एक कोच को शिविर में हिस्सा लेने वाले जूनियर खिलाड़ियों के यौन शोषण का दोषी पाया गया था, जिसके बाद तमिलनाडु के साई सेंटर के कोच को बर्खास्त कर दिया था. हालांकि कोच के नाम का खुलासा नहीं किया गया था. दरअसल मामला यह था कि बेंगलुरु सेंटर से 15 जूनियर एथलीट्स ने साई मुख्यालय में कोच के खिलाफ शिकायत की थी. जिसमें कहा गया था कि कोच उन्हें अश्लील संदेश भेजता है और सेक्सुअल फेवर करने के लिए दवाब बनाता है. वहीं गुजरात सेंटर भी ऐसी ही शिकायत भेजी गई थी.

पिछले साल दिसंबर 2020 में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल CRPF की 30 वर्षीय महिला कॉन्स्टेबल ने अपने रेसलिंग कोच और चीफ स्पोर्ट्स ऑफिसर पर रेप और यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. आरोप लगाने वाली महिला कॉन्स्टेबल CRPF के लिए रेसलिंग में कई मेडल जीत चुकी है.महिला ने आरोप लगाया है कि दिल्ली में तीन साल तक उसके साथ रेप किया गया.

उसने 2014 में भी सीआरपीएफ के अंतर्गत ही इस मामले की शिकायत की थी, लेकिन दबाव के कारण शिकायत वापस ले ली थी.

महिला कॉन्स्टेबल ने कहा है कि उसने 2010 में सीआरपीएफ ज्वाइन की थी, जिसके बाद से ही रेसलिंग टीम में चुनी गई और कई नेशनल और इंटरनेशनल मेडल जीते हैं. एफआईआर में महिला ने कहा है कि टीम के कोच और चीफ स्पोर्ट्स ऑफीसर सीआरपीएफ में सेक्स स्कैंडल चलाते हैं तथा महिला कॉन्स्टेबल के साथ बुरा व्यवहार करते हैं. महिलाकर्मियों के यौन उत्पीड़न का दोषी पाये जाने के बाद केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल ने मार्च 2021 में अपने मुख्य खेल अधिकारी डीआईजी खजान सिंह और कोच इंस्पेक्टर सुरजीत सिंह को निलंबित कर दिया है.

मैरीकॉम के लिए नियम बदलने का आरोप

2019 में पूर्व जूनियर विश्व चैंपियन निखत जरीन ने केंद्रीय खेल मंत्री को पत्र लिखकर भारतीय मुक्केबाजी महासंघ पर मैरीकॉम को ओलिंपिक क्वालीफायर में सीधे प्रवेश देने के लिए नियमों में फेरबदल का आरोप लगाया था. जरीन ने कहा था कि ‘मैं सिर्फ अनुरोध कर रही हूं कि आपके नेतृत्व में सभी मुक्केबाजों के लिये ट्रायल में पारदर्शिता बरती जाये. अगर एक नियम है तो वह हम सभी के लिये है तो यह सभी के लिये एक जैसा होना चाहिए भले ही किसी विशेष मुक्केबाज का स्तर कुछ भी हो.’

हालांकि बाद में हुए ट्रायल मैच में मैरीकॉम ने जरीन को हरा दिया था. लेकिन उन्होंने मैच के बाद जरीन से हाथ मिलाने से इनकार कर दिया था. तब इस मामले पर जरीन ने कहा था कि ‘मैरीकॉम ने जैसा बर्ताव किया, उससे मैं आहत हूं. मैं जूनियर हूं, मुकाबला खत्म होने के बाद अगर वह गले लग जाती तो यह अच्छा होता. लेकिन मैं कोई टिप्पणी नहीं करना चाहती.’ वहीं मैरीकॉम ने कहा था कि अगर वह दूसरों से सम्मान की अपेक्षा करती है तो उसे दूसरों का भी सम्मान करना आना चाहिए.

क्रिकेट में कई युवाओं को नहीं मिला मौका

भारतीय क्रिकेट की बात करें तो यहां टीम में चयन सबसे कठिन है. कई टैलेंट अंडर-19 में या घरेलू मैचों में बेहतरीन प्रर्दशन करते हैं लेकिन टीम इंडिया में उनका चयन नहीं हो पाता है. यहां उनको कहीं न कहीं भेदभाव का सामना करना पड़ता है. पिछले साल ही पूर्व क्रिकेटर और कमेंटेटर पूर्व कप्तान सुनील गावस्कर ने कहा था कि टीम में खिलाड़ियों के साथ भेदभाव किया जाता है. विराट कोहली को पैटरनिटी लीव की अनुमति मिल जाती है, लेकिन टी नटराजन जब आईपीएल के दौरान ही पिता बने थे, उसके बाद से लंबे समय तकतक अपनी बेटी को नहीं देख सके. उन्होंने कहा था कि यदि अश्विन एक मैच में फेल होता है, तो बाहर कर दिया जाता है. जबकि बल्लेबाजों को मौके पर मौके मिलते रहते हैं. यहां हर खिलाड़ी के लिए अलग नियम हैं.

बात करें युवाओं की तो उन्मुक्त चंद, मनविंदर बिसला, गौरव धीमान, विजय कुमार महेश और तन्मय श्रीवास्तव जैसे कई प्रतिभावान U-19 प्लेयर्स को आगे भारतीय टीम में मौका नहीं मिला.

क्यों होते हैं इतने मामले, आगे क्या?

ये तो वे मामले हैं जो उजागर हुए हैं. कई मामले तो लोक-लाज, करियर और बदनामी के डर के कारण दबे रह जाते हैं. जिसकी टीस खिलाड़ियों को जिंदगी भर रहती है. वहीं जांच में देरी और बड़ी कार्रवाई न होने के कारण भी लोगों में सजा का डर कम होता है. पुराने मामले बताते हैं कि या तो जांच अधूरी रह गई है या सजा के तौर पर ट्रांसफर या निलंबन किया गया है. सख्त कार्यवाही न होने की वजह से भी मामले में कमी नहीं आ रही है.

आगे ऐसे मामले में तेजी से और सख्त सजा के प्रावधान करते हुए काम करने की जरूरत है. अगर ऐसा नहीं होता है तो जूनियर और स्ट्रगलिंग प्लेयर आगे नहीं बढ़ पाएंगे.

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