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Commonwealth Games 2026: भारत ने जिन खेलों में 49% मेडल जीते उन्हें ही हटाया, अब आगे क्या?

2026 कॉमनवेल्थ गेम्स में से किन-किन स्पोर्ट्स को बाहर किया गया है और क्यों किया गया है? इससे भारत के मेडल टैली पर कितना असर पड़ेगा?

आशुतोष कुमार सिंह
अन्य खेल
Published:
<div class="paragraphs"><p>Commonwealth Games 2026 Sports Reduced</p></div>
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Commonwealth Games 2026 Sports Reduced

(Photo- Altered By Quint Hindi)

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साहिल के सुकूं से किसे इंकार है लेकिन

तूफान से लड़ने में मजा और ही कुछ है

अब मान लीजिए शायर आल-ए-अहमद सुरूर से यह शेर लिखने के बाद कहा गया होता कि आप समंदर में उतरेंगे जरूर लेकिन बिना कोई नाव, बिना कोई पतवार. फिर क्या वो तूफान से लड़ने में मजा खोजते.. भारत के साथ भी गलास्गो में होने जा रहे कॉमनवेल्थ गेम्स 2026 (Commonwealth Games 2026) में कुछ ऐसा ही हुआ है. भारत जिन स्पोर्ट्स में मेडल्स का प्रबल दावेदार रहा है उन्हें गेम्स की लिस्ट से ही बाहर कर दिया गया है. पिछली बार 2022 में बर्मिंघम, इंग्लैंड के अंदर भारत ने कुल 61 मेडल्स जीते थे, जिनमें से 30 यानी 49% तो उन स्पोर्ट्स में आए थे जो 2026 में खेले ही नहीं जाएंगे.

हम आपको इस आर्टिकल में बताएंगे कि 2026 कॉमनवेल्थ गेम्स में से किन-किन स्पोर्ट्स को बाहर किया गया है और क्यों? इससे भारत के मेडल टैली पर कितना असर पड़ेगा? इस हटाए गए स्पोर्ट्स में भारत का कितना दबदबा रहा है? भारत के कौन-कौन से बड़े नाम इस इवेन्ट को मिस करेंगे?

कॉमनवेल्थ गेम्स 2026 से किन स्पोर्ट्स को हटाया गया?

बैडमिंटन, क्रिकेट, हॉकी, स्क्वैश, टेबल टेनिस, ट्रायथलॉन, कुश्ती, बीच वॉलीबॉल और रग्बी सेवन्स - ये ऐसे 9 स्पोर्ट्स हैं जो बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स में तो थे लेकिन 2026 में होने जा रहे ग्लासगो कॉमनवेल्थ गेम्स में नहीं होंगे.

बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स में कुल 19 अलग-अलग स्पोर्ट इवेंट थे जो अगली बार कम होकर केवल 10 रह जाएंगे.

बता दें कि निशानेबाजी और तीरंदाजी को 2022 बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स में हटाया गया था. इन दोनों ही इवेंट में भारत का प्रदर्शन शानदार रहा है. दरअसल भारत को कॉमनवेल्थ गेम्स के इतिहास में सबसे अधिक मेडल (135 मेडल) निशानेबाजी में ही मिले हैं.

कॉमनवेल्थ गेम्स 2026 से 9 स्पोर्ट्स को क्यों हटाया गया?

कॉमनवेल्थ गेम्स 2026 का आयोजन पहले ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया राज्य में किया जाना था. लेकिन इसे होस्ट करने की बढ़ती लागत के कारण उन्होंने ऐसा नहीं किया और कदम पीछे खींच लिए. इसके बाद कॉमनवेल्थ गेम्स फेडरेशन ने दूसरा मेजबान ढूंढने के लिए संघर्ष किया और आखिरकार ग्लासगो, स्कॉटलैंड को मेजबान बनाया गया.

लेकिन यहां भी आयोजन में आने वाले खर्च और तैयारी के लिए कम वक्त की परेशानी आ रही. लागत कम रखने के लिए, कॉमनवेल्थ गेम्स एक छोटे दायरे में मौजूदा स्थानों पर होंगे. एथलीटों और उनके साथ आने वालों को नए कॉमनवेल्थ विलेज के बजाय मौजूदा होटलों में ठहराया जाएगा.

तय हुआ है कि केवल 4 वेन्यू पर ही कॉमनवेल्थ गेम्स आयोजित होंगे और इस वजह से 9 स्पोर्ट्स को हटा दिया गया है.

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इसका भारत की मेडल टैली पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

इस सवाल का जवाब खुद भारत की कॉमनवेल्थ मेडल टैली देती है.

  • भारत ने 2022 के बर्मिंघम गेम्स में कुल 61 पदक जीते थे. इनमें से 30 मेडल उन खेलों में थे जो 2026 ग्लासगो गेम्स में मौजूद नहीं होंगे. यानी यह आंकड़ा 49% का है. इस तरह यकीनन भारत की मेडल की दावेदारी सीधे आधी होनी की संभावना है.

  • इसी तरह 2018 के गोल्ड कोस्ट, ऑस्ट्रेलिया गेम्स में भारत ने कुल 66 मेडल जीते थे. इनमें से 28 यानी 42% उन खेलों में आए थे जो हटाए गए हैं.

  • याद रहे कि 2014 में भी कॉमनवेल्थ गेम्स ग्लासगो, स्कॉटलैंड में ही हुए थे. उस समय भारत ने कुल 64 मेडल जीते थे जिनमें 20 मेडल यानी 31% हटाए गए गेम्स में आए थे.

  • भारत ने कॉमनवेल्थ गेम्स में सबसे शानदार प्रदर्शन 2010 में किया था जब इसकी मेजबानी खुद नई दिल्ली ने की थी. उस साल भारत ने 100 का माइलस्टोन पार करते हुए कुल 104 मेडल अपने नाम किए थे. इनमें से 29 मेडल यानी 29% हटाए गए गेम्स में आए थे.

भारत ने कॉमनवेल्थ गेम्स के अपने इतिहास में निशानेबाजी (135 मेडल) और वेटलिफ्टिंग (133 मेडल) के बाद सबसे अधिक मेडल कुश्ती (115 मेडल) में ही जीते हैं. इसके अलावा बैडमिंटन में 31 और टेबल टेनिस में अब तक 28 कॉमनवेल्थ मेडल भारत अपने नाम कर चुका है.

यह भी ख्याल रखने वाली बात है कि जिन 10 खेलों को 2026 गेम्स में बरकार रखा गया है, उनमें से बॉक्सिंग, जूडो और वेटलिफ्टिंग जैसे खेलों में भारत के प्रदर्शन में काफी गिरावट आई है और ओलंपिक में प्रदर्शन निराशाजनक रहा है.

बॉक्सिंग में भारत को 2022 बर्मिंघम गेम्स में 7 मेडल्स मिले थे लेकिन इसमें से 4 बॉक्सर तो ओलंपिंक 2024 में क्वॉलिफाई ही नहीं कर पाए थे. बर्मिंघम गेम्स में वेटलिफ्टिंग के अंदर 10 मेडल जितने वाले भारत की तरफ से केवल मीराबाई चानू ओलंपिक पहुंचीं लेकिन वो भी पोडियम से दूर रहीं. जूडो की बात करें तो बर्मिंघम गेम्स में भारत के दोनों मेडलिस्ट ओलंपिक के लिए क्वॉलिफाई नहीं कर सकें.

इसका भारत के एथलीटों पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

इसका मतलब यह है कि पीवी सिंधु, बजरंग पुनिया जैसे ओलंपिक मेडल विजेता से लेकर भारतीय मेंस हॉकी टीम की स्पष्ट कमी भारत को खलने जा रही है. अमन सहरावत, अंतिम पंघाल जैसी भारत की उभरती कुश्ती प्रतिभाओं की दावेदारी कॉमनवेल्थ में बहुत मजबूत होती लेकिन उन्हें इंतजार करना होगा.

इन खिलाड़ियों और एथलीट के लिए कॉमनवेल्थ गेम्स में जीते मेडल अक्सर आर्थिक पुरस्कार और सरकारी नौकरियों के मार्ग होते हैं. ये एक एथलीट के करियर की संभावनाओं और उनके फाइनेंसियल सेक्यूरिटी के लिए महत्वपूर्ण होते हैं. लेकिन ऐसे कई एथलीट को अब कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए 2030 यानी 8 साल का इंतजार करना होगा. एक एथलीट के जीवन में 8 साल का फासला बहुत बड़ा होता है. ऐसे में यह याद रखना चाहिए कि किसी एथलीट के लिए कॉमनवेल्थ गेम्स की अपेक्षा एशियन गेम्स और ओलंपिक में कहीं ज्यादा प्रेशर होता है क्योंकि वहां कंपटीशन कहीं ज्यादा टफ होता है.

ऐसे में नए उभरते हुए एथलीट के लिए कॉमनवेल्थ बहुत बड़ा प्लैटफॉर्म होता है. नीरज चोपड़ा ने 2018 कॉमनवेल्थ गेम्स में ही गोल्ड जीतकर भारतीय खेल जगत में अपनी एंट्री की घोषणा की थी.

(इनपुट- ओलंपिक डॉट कॉम, ईएसपीएन)

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