advertisement
प्रो कबड्डी लीग ने भारत में कबड्डी को अलग स्तर पर पहुंचाया है और कई कबड्डी खिलाड़ियों को शौहरत दिलाई है. जब तक प्रो कबड्डी लीग शुरू नहीं हुई थी तब तक खिलाड़ियों को पहले अपनी नौकरी की चिंता होती थी ताकि जीवन चल सके. लेकिन अब ऐसा नहीं हैं. भारत के पूर्व कबड्डी कप्तान अनूप कुमार का मानना है कि अब खिलाड़ियों के कबड्डी खेलने की वजह सिर्फ सरकारी नौकरी की ख्वाहिश नहीं है
भारत को एशियन गेम्स और कबड्डी वर्ल्ड कप का चैंपियन बनाने वाले ‘कैप्टन कूल’ अनूप कुमार एक बार फिर लौट आए हैं कबड्डी की मैट पर. 2018 में करीब 14 साल के कबड्डी करियर के बाद संन्यास लेने वाले अनूप इस बार प्रो कबड्डी लीग की टीम पुणेरी पलटन के कोच बनकर लीग में लौटे हैं.
अनूप कहते हैं कि जब उन्हें लगा कि भारतीय कबड्डी की नई पीढ़ी अब तैयार है और युवा खिलाड़ियों को खेल की अच्छी समझ होने लगी है, तो उन्होंने संन्यास का फैसला किया.
प्रो कबड्डी लीग के पहले 6 सीजन में अनूप कुमार ने एक्टिव तौर पर हिस्सा लिया. यहां तक कि पहले ही सीजन में यू-मुंबा की ओर से खेलते हुए वो लीग के मोस्ट वैल्युएबल प्लेयर भी बने. 2018 में जयपुर पिंक पैथर्स की ओर से खेलने के बाद अनूप ने इस खेल से संन्यास ले लिया.
अनूप का मानना है कि उनकी जिंदगी का सबसे खास मौका था जब उन्होंने देश के लिए मेडल जीते और दूसरा जब सरकार ने उन्हें अर्जुन पुरस्कार दिया.
अनूप का मानना है कि आज कबड्डी खिलाड़ियों के सामने उतनी परेशानियां नहीं हैं जैसे पहले के खिलाड़ियों के लिए थी, क्योंकि उस वक्त पहला लक्ष्य होता था सरकारी नौकरी ढूंढ़ना और फिर कबड्डी खेलना है.
अनूप के मुताबिक प्रो कबड्डी लीग के आने के बाद से खिलाड़ियों के सामने से ये चिंता कुछ दूर हो गई है.
संन्यास के बाद अनूप कुमार चाहते हैं कि उन्हें भारतीय टीम की कोचिंग का एक मौका मिले ताकि वो देश के खिलाड़ियों को मेडल के लिए तैयार कर पाएं.
संन्यास के बाद अनूप कुमार को कबड्डी लीग में कोचिंग के कई ऑफर मिले और अभी वो पुणेरी पलटन के कोच हैं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)