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नीरज चोपड़ा ने भारत को टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympic 2020) का पहला गोल्ड मेडल दिला दिया है. उन्होंने मेंस जेवलिन थ्रो में यह काम किया. नीरज दूसरे भारतीय एथलीट हैं, जिन्होंने ओलंपिक में मेडल जीता है. उनसे पहले 1900 में नॉर्मन प्रिचर्ड ने एथलेटिक्स में मेडल जीता था.
नीरज चोपड़ा पानीपत जिले के खंडरा गांव में रहने वाले एक साधारण पारिवारिक पृष्ठभूमि से आते हैं. उनके पिता एक किसान हैं और उनकी मां एक गृहिणी हैं. नीरज की दो बहनें हैं.
जब तक उन्होंने खेल में हाथ नहीं आजमाया, तब तक उन्हें भाला फेंक के बारे में बहुत कम पता था. उनकी प्रतिभा को स्टेडियम में सीनियर्स ने देखा और खेल को गंभीरता से लेने के लिए प्रेरित किया.
नीरज को अपने गांव में परिवहन की कमी के कारण अपने घर से स्टेडियम तक यात्रा करने में कठिनाई का सामना करना पड़ा, इसके बजाय, वह प्रशिक्षण मैदान तक पहुंचने के लिए 16-17 किलोमीटर की यात्रा के लिए गुजरने वाले वाहनों से लिफ्ट लिया करते थे.
2016 में, वह भारतीय सेना में शामिल हुए और वर्तमान में नायब सूबेदार के पद के साथ जूनियर कमीशंड अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं. नीरज पंजाब के चंडीगढ़ में डीएवी कॉलेज से स्नातक हैं.
नीरज के खेल करियर में ऐसा भी दौर आया था जब महीनो तक उनके पास कोई कोच नहीं था. लेकिन खेल के लिए झुकना नीरज ने सीखा नहीं था, उन्होंने कभी हार नहीं मानी. नीरज ने यूट्यूब का सहारा लिया और वहीं से वीडियो देखते हुए अपनी ट्रेनिंग जारी रखी, वीडियो देख कर ही वो घंटो प्रैक्टिस किया करते थे.
नीरज चोपड़ा के लिए साल 2019 काफी मुश्किलों भरा था. पहले वह कंधे की चोट से जूझते रहे और जब उसे उभरे तो कोरोना महामारी के कारण नेशनल और इंटरनेशनल प्रतियोगिताएं एक के बाद एक रद्द कर दी गयी थी. लेकिन आर्मी में अपनी सेवाएं देने वाले नीरज ने जिस तरह से वापसी की वह कबीले तारीफ है. ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने से पहले कोहनी की चोट के कारण नीरज को सर्जरी भी करनी पड़ी.
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