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वेटलिफ्टर साइखोम मीराबाई चानू (Saikhom Mirabai Chanu) इस साल टोक्यो ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीतने वालीं भारत की इकलौती महिला वेटलिफ्टर हैं. मीराबाई को अपनी लिफ्टिंग की ताकत का पहली बार अंदाजा 12 साल की उम्र में ही हो गया था. मीराबाई चानू का सफर उनके संगर्ष और लगन की दास्तां बयां करता है.
20 साल बाद एक और महान खिलाड़ी इम्फाल के एक छोटे से गांव से निकलकर ओलंपिक्स में अपने मजबूत कदम उसी विक्ट्री पोडियम पर दो पायदान ऊपर रखने जा रहीं हैं, भारत की गोल्डन गर्ल पद्मश्री साइखोम मीराबाई चानू.
8 अगस्त 1994 को मणिपुर के नोंगपोक कक्चिंग गांव में मीराबाई का जन्म हुआ था, मीराबाई उनकी छठी औलाद हैं. मीराबाई बताती हैं कि, "हम 6 भाई बहन हैं तो उन सब को देखने में घरवालों को बहुत ज्यादा दिक्कत होती थी."
बचपन में जब मीराबाई अपने बड़े भाई के साथ रोज चूल्हा जलाने के लिए लकड़ी बटोरने जंगल जाती थी. तो उनसे ज्यादा बड़े लकड़ी के गठे खुद उठा लिया करती थीं. बचपन को याद करते हुए मीराबाई कहती हैं कि,
लेकिन उस वक्त किसी को कहां पता था कि किस्मत आने वाले समय में पूरे देश के सपनों का भार अपने कंधों पर उठाने के लिए तैयार कर रही है.
मीराबाई के वेटलिफ्टिंग के शुरूआती दिनों में कोच ने उनसे प्रोटीन खाने के लिए बोला था. मीराबाई की मां बताती हैं कि, "घर आके हमें जब उसने बोला कि मुझे भी ये सब चाहिए मैंने बोला कि खाने पीने कि तू फिक्र मत कर जो भी होगा हम करेंगे."
2012 में एक धमाकेदार शुरुआत करते हुए मीराबाई ने एशियाई जूनियर चैंपियनशिप में ब्रॉज जीता इसके बाद 2013 जूनियर नेशनल वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में गोल्ड और 2014 कामनवेल्थ गेम्स में सिल्वर जीत कर पूरी दुनिया को अपने बाजुओं का जोर दिखा दिया. लेकिन 2016 के रिओ ओलंपिक्स में वो क्लीन एंड जर्क सेक्शन में बुरी तरह चूक गयीं. फिर 2018 कामनवेल्थ गेम्स में उन्होंने गोल्ड मैडल जीता और रिकॉर्ड भी बनाया.
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