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भारतीय क्रिकेट में सबसे बड़े नामों में से एक सौरव गांगुली (Sourav Ganguly),वो इंसान जिसने टीम को फिर से लड़ना सिखाया और भारतीय क्रिकेट में एक पीढ़ीगत बदलाव की शुरुआत की. लेकिन अफसोस कि ड्रेसिंग रूम के अंदर गांगुली जो बदलाव लाने में कामयाब रहे, वैसे बदलाव वे अपनी दूसरी पारी में नहीं ला पाए.
14 अक्टूबर 2019, ये वो दिन था जब भारतीय क्रिकेट में कुछ खास होने की उम्मीद जगी थी, इस दिन सौरव गांगुली ने बीसीसीआई अध्यक्ष के रूप कुर्सी संभाली थी. पदभार ग्रहण करने के बाद उनके पहले बयानों में से एक बयान ये था
उनके इस बयान को भी लगभग 3 साल बीत चुके हैं, और घरेलू क्रिकेटरों के लिए कांट्रैक्ट कहीं नहीं है. जब 2019-20 में क्रिकेट पूरी तरह कोरोना के चपेट में आ चुका था, और अधिकांश घरेलू क्रिकेट बंद हो चुका था, क्रिकेटरों के पास आय का कोई साधन नहीं था, उस हालत में भी बोर्ड को मुआवजे की घोषणा करने में एक साल का समय लगा! मतलब साल भर से ज्यादा समय तक उन क्रिकेटरों के खातों में एक भी रुपया नहीं आया.
हम उन्ही घरेलू खिलाड़ियों की बात कर रहें हैं जिनके बारे में गांगुली ने कहा था कि ये उनकी पहली प्राथमिकता है. उत्तराखंड में तो खिलाड़ियों ने ये शिकायत की कि उन्हें सिर्फ 100 रूपये दैनिक भत्ता मिला.
भारत का सबसे पुराना घरेलू टूर्नामेंट यानी रणजी ट्रॉफी ( Ranji Trophy) 2019 में पहली बार रद्द किया गया था, हालांकि आईपीएल जरूर हुआ था. इस साल भी रणजी लगभग रद्द हो चुका था, लेकिन जब प्राथमिकताओं को लेकर बोर्ड की आलोचना होने लगी तो BCCI को रणजी कराने के लिए मजबूर होना पड़ा.
लेकिन, अब लौट कर आते हैं गांगुली की बात और CoA पर. और मैं केवल कुछ समानताओं की ओर इशारा करता हूं कि सीओए को सुप्रीम कोर्ट ने क्यों रखा और नए बोर्ड के पदभार संभालने के बाद से यह सामान्य व्यवसाय में कैसे वापस आ गया.
सीओए को 2017 के जनवरी में नियुक्त किया गया था क्योंकि तब सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि तत्कालीन बीसीसीआई अध्यक्ष अनुराग ठाकुर लोढ़ा कमेटी के सुधारों को लागू करने में समर्थ नहीं थे.
गांगुली और जय शाह ने 2019 के अक्टूबर में पदभार संभाला तो लोढ़ा कमेटी के सुधारों को लागू करेने की मंशी जाहिर की, जिनमें से एक 'टेन्योर क्लॉज' था.
लोढ़ा समिति ने पुरुषों की राष्ट्रीय टीम के लिए तीन चयनकर्ताओं की सिफारिश की, बोर्ड ने इसे बदलकर पांच कर दिया, लेकिन …उनके पास पिछले चार महीनों में से पांच सेलेक्टर्स भी नहीं हैं, एक चयनकर्ता ने फरवरी में पद छोड़ दिया था. सेलेक्टर्स का चयन करने वाली क्रिकेट सलाहकार समिति का भी एक सदस्य कम है. मदन लाल (Madan Lal) का कार्यकाल अक्टूबर 2021 में समाप्त हो गया था, लेकिन इन दोनों पदों के लिए कोई नया नाम अभी तक नहीं पता.
जब यही सब होना था तो लोढ़ा कमेटी का क्या मतलब था, उनकी सिफारिशें, सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और सीओए... अगर इन सब के अंत में चीजें फिर पहले जैसी ही लग रही हैं, बीसीसीआई दशकों पहले की तरह चलाया जा रहा है. हां, बोर्ड पहले से कहीं ज्यादा पैसा जरूर कमा रहा है. आईपीएल (IPL) स्पॉन्सरशिप, मैचों के मीडिया राइट्स के जरिए हर एक साल हजारों करोड़ आते हैं. लेकिन पैसा कहां जा रहा है?
निश्चित रूप से भारत की महिला क्रिकेटरों की जेब में तो बिल्कुल नहीं. 2017 एकदिवसीय विश्व कप उपविजेता और 2020 टी 20 विश्व कप फाइनलिस्ट बनकर महिला टीम ने पिछले कुछ सालों में जबरदस्त सुधार दिखाया है, और निश्चित रूप से पुरुष टीम की तुलना में ज्यादा आईसीसी फाइनल में पहुंचे, लेकिन जब बोर्ड से इसका इनाम मिलने की बारी आती है तो ये हास्यास्पद लगता है.
2020 टी20 वर्ल्ड कप (T20 World Cup 2020) की टीम की इनामी राशि भी उन्हें पूरे एक साल तक नहीं दी गई. इस दौरान उन्होंने महामारी के चलते कोई अंतर्राष्ट्रीय या घरेलू क्रिकेट नहीं खेला. लेकिन इसी समय बोर्ड आईपीएल, ऑस्ट्रेलिया दौरा और घरेलू सीरीज के आयोजन में व्यस्त था. भारतीय महिला क्रिकेट टीम को महामारी का असली दर्द तब महसूस हुआ जब उन्हें पूरे 12 महीनों तक एक भी असाइनमेंट नहीं दिया गया. यहां ये कह सकते हैं कि सौरव गांगुली भूल गए कि भारत के पास एक महिला क्रिकेट टीम भी है.
न्यूजीलैंड (New Zealand) क्रिकेट बोर्ड ने अपने पुरुष और महिला क्रिकेटरों के लिए समान मैच फीस की घोषणा करते हुए सही दिशा में बड़े कदम उठाए हैं. लेकिन बीसीसीआई ? जब अंतर जानेंगे तो ये सवाल ही नहीं करेंगे.
सबसे अधिक भुगतान पाने वाली महिला क्रिकेटर अपने कांट्रेक्ट के अनुसार हर साल 50 लाख रुपये कमाती है. लेकिन पुरुषों के कांट्रेक्ट में सबसे कम सालाना रकम भी कम से कम एक करोड़ रूपये है. अंतर स्पष्ट है और गांगुली के तीन सालों में इस अंतर को पाटने हमें नहीं लगता कि कुछ किया गया है.
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