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BCCI का खिलाड़ियों को कॉन्ट्रैक्ट: जवाब कम हैं लेकिन सवाल ज्यादा!

इतने सारे खिलाड़ियों को बीसीसीआई का सालाना कॉन्ट्रैक्ट देने की क्या जरूरत है?

चंद्रेश नारायण
स्पोर्ट्स
Published:
विराट कोहली को बीसीसीआई ने A+ कॉन्ट्रैक्ट में रखा है तो वहीं एमएस धोनी को A कॉन्ट्रैक्ट में जगह मिली है. 
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विराट कोहली को बीसीसीआई ने A+ कॉन्ट्रैक्ट में रखा है तो वहीं एमएस धोनी को A कॉन्ट्रैक्ट में जगह मिली है. 
(फोटो: Reuters)

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बीसीसीआई और सुप्रीम कोर्ट नियुक्त प्रशासकों की कमेटी (सीओए) के बीच खिलाड़ियों के नए कॉन्ट्रैक्ट्स का श्रेय लेने की होड़ लगी हुई है. जहां दोनों पक्ष श्रेय लेने में व्यस्त हैं, वास्तव में यह वक्त कॉन्ट्रैक्ट के नए प्रारूप पर गौर करने का है. सात सालों तक चले विचार-विमर्श के बाद 2004 में सालाना कॉन्ट्रैक्ट व्यवस्था लागू होने के बाद से आज तक यह साफ नहीं है कि यह आखिर कैसे काम करती है.

वैसे 2011 तक सब कुछ सही लग रहा था क्योंकि हमारे पास चैंपियन खिलाड़ियों की भरमार थी जो स्वाभाविक तौर पर शीर्ष श्रेणी में फिट बैठते थे, और बाकी खिलाड़ी अन्य श्रेणियों में रखे जाते थे. पर चैंपियंस के मेन लीग से हटने के बाद से इस बारे में काफी चर्चा होती है कि आखिर ये व्यवस्था कैसे काम करती है, क्योंकि अब कोई स्पष्ट हरारकी नहीं है.

1. इतने सारे खिलाड़ियों को कॉन्ट्रैक्ट देने की क्या जरूरत है?

दुनिया भर में कॉन्ट्रैक्ट पाने वाले खिलाड़ियों की संख्या 12-15 से ज्यादा नहीं होती है. माना कि बीसीसीआई के पास बहुत ज्यादा पैसा है, फिर भी 26 खिलाड़ी थोड़ा अधिक हैं. इस सूची में ऐसे भी कुछ खिलाड़ी हैं जो शायद भारत के लिए कोई और क्रिकेट मैच नहीं खेल पाएं, क्योंकि कॉन्ट्रैक्ट सूची से बाहर के अनेक खिलाड़ी भी टीम में जगह बनाने की संभावना रखते हैं, इसलिए उन अप्रसिद्ध/अचर्चित खिलाड़ियों को बाहर रखा जाना थोड़ा अन्यायपूर्ण है.

2. व्हाइट बॉल स्पेशलिस्ट शीर्ष श्रेणी में?

शीर्ष श्रेणी ए+ की व्यवस्था लागू किए जाने में कुछ भी बुरा नहीं है लेकिन रोहित शर्मा और शिखर धवन इस समूह में क्यों रखे गए हैं? सीओए प्रमुख का कहना है कि तीनों फॉर्मेट्स में खेलने की सुनिश्चितता वालों को ए+ श्रेणी में प्राथमिकता दी गई है लेकिन आखिरी बार जब हमने गौर किया, रोहित और धवन दोनों ही की टेस्ट मैच फॉर्मेट में जगह पक्की नहीं है. दोनों को दक्षिण अफ्रीका में ड्रॉप किया गया था.

ये तो ज़ाहिर है कि बाद में एकदिवसीय/टी20 मैचों में उनके प्रदर्शन ने ए+ श्रेणी में उनकी उपस्थिति को संभव बनाया. वास्तव में, दोनों ही विभिन्न कारणों से अच्छे-खासे समय तक टेस्ट फॉर्मेट से बाहर रहे हैं इसलिए इस बारे में सवाल उठना वाजिब है.

3. सुपरस्टार संस्कृति को बढ़ावा

रामचंद्र गुहा ने भारतीय क्रिकेट में “सुपरस्टार संस्कृति” की मौजूदगी पर टिप्पणी की थी इसलिए ये देखना रोचक है कि कैसे उनके पूर्व सहयोगियों ने एक ऐसी व्यवस्था को मंजूरी दी जोकि उनकी आलोचना को एक तरह से सही ठहराती है. विनोद राय ने इस बारे में बताया है कि नए कॉन्ट्रैक्ट विराट कोहली और एमएस धोनी से सुझाव लेने के बाद तैयार किए गए हैं.

यह दुखद है कि 15 वर्षों के बाद भी हम कोई सुसंगत प्रणाली तय नहीं कर पाए हैं.

4. प्रक्रिया के बारे में अधिक जानकारी दिए जाने की जरूरत

एक बात ऐसी है कि जिस पर भारत गर्व कर सकता है. क्रिकेट खेलने वाले देशों में एकमात्र हमारे यहां ही यह साफ-साफ बताया जाता है कि प्रत्येक खिलाड़ी या सपोर्ट स्टाफ का सदस्य कितना धन पाता है, यहां तक कि यहां यह भी बताया जाता है हमारी आईपीएल टीमें कितना भुगतान करती हैं. भारतीय खिलाड़ियों के कॉन्ट्रैक्ट, मैच शुल्क और अन्य वित्तीय ब्यौरों की जानकारी – उनके विज्ञापन अनुबंधों के अतिरिक्त – सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हैं.

इसलिए यही वो अवसर था जब सीओए को आगे बढ़कर पूरी प्रक्रिया को स्पष्ट करने के लिए संवाददाता सम्मेलन बुलाना चाहिए था. यह दुनिया के सामने आना बेहद महत्वपूर्ण है कि कैसे रोहित/धवन शीर्ष श्रेणी में आए, या ए+ श्रेणी को कैसे परिभाषित किया गया है.

बाकी देशों में से अधिकांश इस मामले में विज्ञप्ति जारी करने से अधिक कुछ नहीं करते और कानूनी शर्तों का बहाना कर रकम की जानकारी नहीं देते हैं. हम इस बारे में बड़ी पहल कर सकते हैं.

5. महिला क्रिकेटर और घरेलू क्रिकेटरों को फायदा मिला है, पर क्या वे अधिक कमा सकते हैं?

ज़ाहिर है, गत वर्ष महिला क्रिकेट विश्व कप में भारत के प्रदर्शन के बाद बीसीसीआई का हृदय परिवर्तन हुआ है. कई महिला क्रिकेटर घरेलू प्रतियोगिताओं में कठिन परिश्रम कर रही हैं और उन्हें खेलते रहने के लिए एक सुसंगत करियर विकल्प चाहिए. उनकी दुर्दशा पर भी ध्यान दिए जाने की जरूरत है. साथ ही आईपीएल में नजरअंदाज किए गए घरेलू क्रिकेटरों को भी उचित प्रतिफल दिए जाने की आवश्यकता है.

प्रियांक पांचाल, अभिनव मुकुंद, आर समर्थ, फैज फजल या विदर्भ के मैच-जिताऊ गेंदबाज़ रजनीश गुरबानी तक को आईपीएल कॉन्ट्रैक्ट नहीं मिला है. उनके दैनिक मैच शुल्क में कई गुना बढ़ोत्तरी का निश्चय ही स्वागत किया जाना चाहिए, पर अब भी उनके करियर में सुरक्षा का अभाव है. आईपीएल के दौरान वे बाहर बैठकर अनजाने खिलाड़ियों को मौके का फायदा उठाते देख रहे होंगे. घरेलू स्तर पर भी खिलाड़ियों के लिए कॉन्ट्रैक्ट लागू करने का यह सही अवसर था.

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