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भारतीय क्रिकेट और इसके एडमिनिस्ट्रेशन को लेकर विवादों और तमाम बहस के बावजूद एक बात स्पष्ट है कि यह लगातार तरक्की कर रहा है. वक्त आ गया है, जब क्रिकेट प्रशासक प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को बताएं कि जिंदगी के प्रति उनका नजरिया और उनका आचरण कैसा होना चाहिए. अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में जो खिलाड़ी अपनी पहचान बना चुके हैं या बनाने जा रहे हैं, उन्हें यह बताया जाना चाहिए कि सही सोच और संतुलित निजी जिंदगी उनके खेल को नई ऊंचाइयों पर ले जा सकती है. युवा खिलाड़ियों को सचिन तेंदुलकर, सुनील गावस्कर और विराट कोहली की मिसाल दी जा सकती है कि किस तरह से संतुलित निजी जिंदगी से उन्हें अपना खेल संवारने में मदद मिली.
युवा रिकी पॉन्टिंग और पबों में उनके झगड़े के किस्से शायद ही क्रिकेटप्रेमी भूले होंगे. एक समय ऐसा भी था, जब इन हरकतों की वजह से उन्हें टीम से निकाले जाने तक के बारे में सोचा जाने लगा था. ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट प्रशासकों ने पॉन्टिंग को चेतावनी दी थी कि यह सब और बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. उनसे कहा गया कि उनमें बहुत प्रतिभा है और अगर वे अपनी आदतें सुधारते हैं तो वह क्रिकेट की ऊंचाइयों पर पहुंच सकते हैं.
भारत में भी यंग क्रिकेटर्स को सही सलाह देने की योग्यता रखने वालों की कमी नहीं है. अंडर-19 टीम को राहुल द्रविड़ से बेहतर मेंटॉर और कोच नहीं मिल सकता था. यह बात भी पक्के तौर पर कही जा सकती है कि द्रविड़ ने उन खिलाड़ियों को क्रिकेट के बारे में जितना बताया होगा, उससे कहीं अधिक उन्होंने उनकी निजी जिंदगी को प्रभावित किया होगा. देश में एक साथ आने वाले युवा प्रतिभाशाली क्रिकेटरों में वीरेंद्र सहवाग, हरभजन सिंह, युवराज सिंह, मोहम्मद कैफ और जहीर खान शामिल थे. उन्हें ड्रेसिंग रूम में द्रविड़, सचिन, अनिल कुंबले और कैप्टन सौरभ गांगुली का गाइडेंस मिला था.
युवराज एक किस्सा सुनाते हैं कि निराश होकर एक बार बल्ला फेंकने पर सचिन ने उन्हें समझाया था कि क्रिकेट से जुड़ी हर चीज का सम्मान करना चाहिए. हरभजन में जो आक्रामकता थी, उसका टीम के सीनियर खिलाड़ी ग्राउंड पर सही इस्तेमाल करना जानते थे. कोहली भी अनुशासित जिंदगी की मिसाल हैं. रवि शास्त्री जब खेलते थे, तब से वह कई प्लेयर्स के मेंटॉर और बड़े भाई रहे हैं. मुंबई से भारतीय क्रिकेट टीम के ड्रेसिंग रूम तक और अब नेशनल टीम के कोच के तौर पर वह यह भूमिका निभा रहे हैं, लेकिन साथी खिलाड़ियों, सीनियर क्रिकेटर्स और कोच की एक सीमा होती है. इसलिए क्रिकेटर्स को एक प्रोफेशनल गाइड की जरूरत है. कौन जानता है कि अगर श्रीसंत की प्रोफेशनल काउंसलिंग हुई होती तो आज वह कहां होते?
जरा एक क्रिकेटर की जिंदगी पर नजर डालिए. जूनियर क्रिकेट लेवल पर एक खिलाड़ी अपना बचपना, मासूमियत, शिक्षा और सामान्य जिंदगी गंवा चुका होता है. मूंछें आने से पहले उसका नाम अखबारों में आना शुरू हो जाता है और धीरे-धीरे असल दुनिया से उसका रिश्ता खत्म हो जाता है. जूनियर लेवल पर सफलता मिलने पर उसे आईपीएल का कॉन्ट्रैक्ट मिल जाता है. वह करोड़ों में खेलने लगता है. ऐसे कई क्रिकेटर्स छोटे शहरों से आते हैं. उन्हें जिंदगी के बारे में बहुत कुछ पता नहीं होता. पूर्व तेज गेंदबाज जवागल श्रीनाथ ने एक बार कहा था, ‘कम उम्र में नाम, पैसा और पावर होना अच्छी बात है, लेकिन यही चीजें आपको बर्बाद भी कर सकती हैं. इस ग्लैमर को किस तरह से हैंडल किया जाना चाहिए, यह बताने वाला कोई शख्स होना चाहिए.”
सही रास्ते पर बनाए रखने के लिए कुछ प्लेयर्स को लगातार मदद की जरूरत पड़ती है. जिस तरह से चोटिल होने पर किसी खिलाड़ी की देखरेख की जाती है, उसी तरह से पर्सनैलिटी मैनेजमेंट भी किया जाना चाहिए. बीसीसीआई को इसके लिए प्रोफेशनल काउंसलर्स की नियुक्ति करनी चाहिए, जो खिलाड़ियों के डर और चिंताओं को समझ सकें और उन्हें बताएं कि ग्राउंड पर सफल होने के लिए उनकी लाइफ कैसी होनी चाहिए. क्रिकेट तकनीक का खेल है. इसमें ग्राउंड के अंदर और बाहर वही सफल होता है, जिसके पास अच्छी तकनीक और मजबूत चरित्र हो.
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