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इंग्लैंड की सरजमीं पर टीम इंडिया ने पहली टेस्ट सीरीज (IND vs ENG) 1971 में ही जीत ली थी. लेकिन उसके बाद से सिर्फ दो मौकों पर 1986 और फिर आखिरी बार 2007 में टीम इंडिया को टेस्ट सीरीज जीतने में कामयाबी मिली. यानि कि कुल मिलाकर देखा जाए तो पिछले 90 साल में इंग्लैंड में टीम इंडिया को सिर्फ 3 बार ही टेस्ट सीरीज जीतने का मौका मिला.
पहली जीत (1971) के बाद 15 साल का सूखा रहा तो दूसरी जीत (यानि कि 1986 वाली) के बाद 21 साल का लंबा इंतजार और अब एक बार फिर से 15 साल का लंबा गैप जब इंग्लैंड में कोई टेस्ट सीरीज ही नहीं जीती है. भारत की नई पीढ़ी जो सोशल मीडिया और इंटरनेट के दौर में बढ़ी हुई है उसे ये याद दिलाना मुश्किल होगा कि आखिरी बार राहुल द्रविड़ की कप्तानी में 2007 में टीम इंडिया किसी तरह से 1-0 से सीरीज जीतकर लौटी थी. इस पीढ़ी को ये बात यकीन दिलाना मुश्किल होगा कि विराट कोहली और आर अश्विन जैसे दिग्गजों के रहते हुए पिछले एक दशक में ये टीम कभी जीत ही नहीं पाई?
ऐसा कहना है टीम इंडिया के पूर्व स्पिनर मनिंदर सिंह का जो 1986 वाली टीम की जीत का हिस्सा थे. कपिल देव की कप्तानी में वो इकलौता मौका रहा था जब भारत ने इंग्लैड की जमीं पर एक सीरीज में 2 टेस्ट मैच जीते थे. ऐसा कमाल ना तो पहले कभी हुआ और ना बाद में.
मुझे याद है जब मैं 2011 में इंग्लैंड के दौरे पर टेस्ट सीरीज के लिए टीम इंडिया के साथ था तो चर्चा हर जगह यही थी कि इससे मजबूत भारतीय टीम कभी भी इंग्लैंड नहीं पहुंची थी. भारत 2011 का वर्ल्ड कप भी जीता था औऱ टेस्ट में उसकी रैंकिंग नंबर 1 थी. लेकिन, अहम तेज गेंदबाज जहीर खान पहले टेस्ट के दौरान चोटिल क्या हुए कि बस दौरे पर ऐसी मुश्किलें आयीं कि 4-0 से सूफड़ा साफ हो गया.
आप चाहे कितनी दलील दे दें कि मुकाबला कांटे का रहा था और अगर किस्मत ने साथ दिया होता तो शायद भारत सीरीज भी जीत जाता लेकिन इतिहास और आंकड़े अगर और मगर की बातें कहां सुनतें हैं.
मनिंदर के इस उत्साह के पीछे एक और अहम वजह ये है कि इस बार इंग्लैंड के पास करिश्माई ऑलराउंडर बेन-स्टोक्स नहीं होंगे जो एक तरह से टू-इन-वन टाइप वाले खिलाड़ीं है. इसके अलावा इंग्लैड के पास ना तो क्रिस वोक्स की उपलब्धता है और ना ही मोईन अली.
ऐसे में अगले डेढ़ महीने कोहली औऱ टीम इंडिया ने अपना संयम, संतुलन औऱ हौसला बनाए रखा तो डेढ़ दशक बाद ही सही इंग्लैंड में एक बार फिर से टेस्ट सीरीज जीती जा सकती है. उससे भी अहम बात ये होगी कि 1986 में 2 टेस्ट जीतने के कमाल को या तो बराबर किया जा सकता है या फिर उसे बेहतर भी किया जा सकता है.
(लेखक दो दशक से भी ज्यादा समय से खेल पत्रकारिता में सक्रिय है और भारतीय क्रिकेट टीम के साथ कई देशों की यात्रा कर चुके हैं.)
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