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रविवार को भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच टी-20 सीरीज का आखिरी मैच खेला जाएगा. डकवर्थ लुइस नियम के चलते सीरीज का पहला मैच भारत 4 रन से हार गया था. दूसरे मैच में बारिश की वजह से नतीजा नहीं निकला. यानी अभी तक सीरीज में कंगारुओं को 1-0 की बढ़त हासिल है.
रविवार का मैच अगर मेजबानों की झोली में आता है तो वो टी-20 सीरीज 2-0 से जीत लेंगे. जो लंबे दौरे से पहले भारत पर मनोवैज्ञानिक बढ़त होगी. इस मनोवैज्ञानिक बढ़त का फायदा उन्हें टेस्ट सीरीज में भी मिलेगा. इतना ही नहीं ऑस्ट्रेलिया को इस सीरीज की जीत से रैंकिंग्स में भी फायदा होगा.
टी-20 रैंकिंग्स में वो चौथे पायदान से तीसरे पायदान पर आ जाएंगे. टी-20 और टेस्ट दोनों में भारत की मौजूदा रैंकिंग ऑस्ट्रेलिया से बेहतर है. अपने से बेहतर टीम को हराने का मनोवैज्ञानिक लाभ होता ही है. इसी इरादे से कंगारूओं ने लंबे समय बाद मिचेल स्टार्क को भी टीम में शामिल किया है. लेकिन अगर रविवार का मैच भारतीय टीम की झोली में आ जाता है तो ना सिर्फ ये मनोवैज्ञानिक बढ़त भारत के खाते में होगी बल्कि सीरीज भी बराबरी पर खत्म हो जाएगी.
रविवार का मैच भले ही ऑस्ट्रेलिया के लंबे दौरे में महज 20 ओवर का एक छोटा सा मैच है लेकिन यकीन मानिए इस मैच में जीत या हार का असर पूरी सीरीज पर दिखाई देगा. ये सच है कि टी-20, वनडे और टेस्ट क्रिकेट में सभी का फॉर्मेट अलग अलग है. तीनों फॉर्मेट को खेलने का तरीका और रणनीति अलग है. बावजूद इसके किसी एक फॉर्मेट की जीत का भरोसा अगले फॉर्मेट की सीरीज पर भी जाता है. इसीलिए करोड़ों क्रिकेट फैंस को विराट कोहली से सिर्फ एक जीत चाहिए.
पहले टी-20 मैच में टीम इंडिया जीत के बिल्कुल करीब थी. अगर आखिरी ओवर की पहली गेंद पर क्रुणाल पांड्या ने दो रन ना लिया होता तो शायद बाजी भारत के पक्ष में जाती. इसके अलावा विराट कोहली ने अपनी नंबर तीन की पोजीशन पर केएल राहुल को भेजने का जो बेतुका फैसला किया था उससे बचना होगा. ताज्जुब वाली बात ये भी है कि दोनों टी-20 मैचों में विराट कोहली ने टॉस जीता लेकिन पहले गेंदबाजी करने का फैसला किया.
ये सच है कि पिछले कुछ सालों में भारतीय टीम को लिमिटेड ओवरों के मैच में लक्ष्य का पीछा करना ज्यादा सहज लगता है. लेकिन अगर ये रणनीति काम नहीं कर रही है और सिक्का साथ दे रहा है तो प्लान ‘बी’ के बारे में भी सोचना होगा. दूसरे टी-20 मैच में भारतीय टीम के गेंदबाजों ने शानदार गेंदबाजी की थी. 19 ओवर में कंगारुओं को सिर्फ 132 रन बनाने का मौका मिला था. 7 विकेट भी गिर चुके थे.
ये प्रदर्शन बताता है कि भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया को टक्कर देने की स्थिति में तो है बस वो आखिरी मौके पर गलतियां ना करे. पहले मैच में चार रन से मिली हार के पीछे भी ये नहीं भूलना चाहिए कि डकवर्थ लुइस नियम की वजह से भारत को नुकसान उठाना पड़ा था. उसे बड़ा लक्ष्य दिया गया था. यानी पहले दोनों मैचों के नतीजे इस बात का सबक हैं कि टॉस जीतने पर बैटिंग या फील्डिंग के फैसले में मौसम के मिजाज का भी ख्याल रखना चाहिए.
इस साल खेली गई दो विदेश सीरीज में भारतीय टीम ने शुरूआती मैचों में कमाल का प्रदर्शन किया. बावजूद इसके मैच के किसी मोड़ पर की गई बड़ी गलती उन्हें भारी पड़ी. ऑस्ट्रेलिया रवाना होने से पहले विराट कोहली ने खुलकर ये बात कही कि उनकी टीम ने दक्षिण अफ्रीका और इंग्लैंड में बड़े ‘क्रूशियल’ मौके पर भारी गलती कर दी. वरना सीरीज का नतीजा कुछ और ही होता.
आपको याद दिला दें कि दक्षिण अफ्रीका के दौरे पर टी-20 और वनडे सीरीज में मिली जीत का फायदा ये था कि टेस्ट सीरीज में भारत ने धमाकेदार शुरूआत की थी.
पहले टेस्ट मैच में भारतीय टीम जीत के काफी करीब पहुंची थी. लेकिन दूसरी पारी में पूरी तरह घुटने टेक दिए. सिर्फ 208 रनों का लक्ष्य हासिल नहीं कर पाए और टीम को 72 रनों से हार का सामना करना पड़ा. आखिर में टेस्ट सीरीज प्रोटिएस के कब्जे में आई. ऐसे ही इंग्लैंड के दौरे की शुरूआत में भी भारतीय टीम ने टी-20 और वनडे सीरीज में अच्छा प्रदर्शन किया था लेकिन टेस्ट सीरीज में उसे 31, 60 और 118 रनों जैसे मामूली अंतर से टेस्ट मैच गंवाने पड़े.
हार का ये फर्क बताता है कि टीम इंडिया जीत के करीब है. बशर्ते मनोवैज्ञानिक तौर पर उसका आत्मविश्वास कायम रहे और ‘क्रूशियल’ मौकों पर उसके खिलाड़ी अपना रोल बखूबी निभाएं.
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