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जब आपके अच्छे प्रदर्शन पर लोगों को हैरानी ना होने लगे तो ये शायद समझ लेना चाहिए कि अपने खेल में वो निरंतरता आ चुकी है जिसकी कल्पना हर खिलाड़ी करता है. बावजूद इसके अगर आपको राष्ट्रीय टीम के लिए नजरअंदाज करने का सिलसिला खत्म ना हो तो आप कैसा महसूस करेंगे. ये एक क्रूर सवाल है जिसे मुंबई के बल्लेबाज सूर्यकुमार यादव को अक्सर उस समय गुजरना पड़ता है जब आईपीएल या फर्स्ट-क्लास क्रिकेट में वो एक शानदार पारी खेलतें हैं.
भारतीय क्रिकेट में चयनकर्ता आते और जाते रहते हैं, लेकिन एक बात जो नहीं बदलती है वो है कई मर्तबा किसी खिलाड़ी विशेष के प्रति एक अजीब सा रवैया जिसके चलते उसे कभी समय पर वो मौका नहीं मिलता है, जिसके वो हकदार होते हैं. सूर्यकुमार भारतीय क्रिकेट में ऐसे पहले खिलाड़ी नहीं है और शायद ना ही आखिर साबित होंगे.
बाद में क्रिकेट रोमेंटिक और इतिहासकार ये तर्क देने की कोशिश करते हैं कि वैसे खिलाड़ी गलत दौर में पैदा हुए या फिर उनके लिए जगह बनाना संभव नहीं था.
शायद, तब भी उस दौर के चयनकर्ताओं का संदेह का लाभ दिया जा सकता है, क्योंकि उस समय सिर्फ टेस्ट क्रिकेट और बाद में वन-डे क्रिकेट का ही फॉर्मेट हुआ करता था, जिसमें कमोबेश खिलाड़ी लगभग एक ही जैसे हुआ करते. लेकिन, आधुनिक दौर में टी20 के लिए कई मुल्कों ने पूरी तरह से अलग टीम बनाने का प्रचलन शुरू कर दिया है, लेकिन भारतीय चयनकर्ता अब भी परंपरावादी सोचे से घिरे दिखतें हैं.
अगर शिखर धवन वन-डे क्रिकेट के शानदार खिलाड़ी हैं, तो उन्हें टी20 में स्वभाविक रुप से जगह मिल जाती है. विराट कोहली के बारें में तो आप सवाल ही नहीं कर सकतें है, क्योंकि उनकी काबिलियत को टेस्ट और वन-डे में शानदार कामयाबी के पैमाने से तौला जाता है. लेकिन, सूर्यकुमार यादव जैसे खिलाड़ियों का क्या कसूर है जिन्हें एक मौके लिए तरसते रहना पड़ता है?
अगर पिछले 8 साल में सूर्यकुमार 70 लाख से 3.2 करोड़ की बोली तक का सफर अपने शानदार खेल के बूते तय कर चुके हैं, तो भारतीय क्रिकेट में इस उभरते हुए सिक्के को वो उछाल आखिरकार क्यों नहीं मिलती है? अगर किसी आईपीएल मैच में(2015) रोहित शर्मा के 98 रनों की पारी को अपने 20 गेंद की प्रखर रोशनी (46 रनों में 5 छक्के!) से कोई धुंधला करने का माद्दा रखता है तो कुछ तो बात होगी ही ना उस खिलाड़ी में?
पिछले 5 सालों में हर बार जब भी भारतीय टीम का चयन होने वाला होता है, तो पत्रकारों, साथी खिलाड़ियों, पूर्व खिलाड़ियों के शुभकामनाओं के कॉल और मैसेज आने लगते हैं, तो लिफ्ट मैन, गली-मोहल्ले के लोग, दूर –दराज के रिश्तेदारों को भी लगने लगता है कि यादव का टाइम अब आ गया है लेकिन अफसोस सिर्फ इस बात का कि यादव को हर बार चयनकर्ताओं के हठी रवैये की निराशा से खुद को उबारने की शुरुआत उसी ऊर्जा से होने लगता है जिसने इस खिलाड़ी की रोशनी को अब तक धूमिल नहीं होने दिया है.
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