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डेनिस लिलि या मैल्कम मार्शल, कर्टेले एम्ब्रोस या ग्लैन मैक्ग्रा, वसीम अकरम या वकार यूनिस. महान और बेहतर कौन वाली ये बहस हर युग के धुरंधर गेंदबाजों के बीच क्रिकेट प्रेमियों ने की है और अक्सर एक राय पर पहुंचने में नाकाम ही हुए हैं. इसकी वजह है कि क्रिकेट का खेल अलग अलग फॉर्मेट में अलग-अलग मुल्कों में अलग-अलग हालात में खेला जाता रहा है और टीमों की ताकत भी एक जैसी नहीं हुआ करती हैं. लेकिन, आधुनिक युग के सबसे बड़े क्रिकेट टूर्नामेंट यानी कि आईपीएल में जब सर्वश्रैष्ठ तेज गेंदबाज की बात आती है तो ये बहस सिर्फ 2 नामों पर आकर सिमट जाती है. मुंबई इंडियंस के जसप्रीत बुमराह या फिर राजस्थान रॉयल्स के जोफ्रा आर्चर.
अनफिट होने के चलते आर्चर का शुरुआती कुछ हफ्तों में इस आईपीएल में खेलना मुश्किल दिख रहा है जबकि बुमराह शादी के बाद पहली बार क्रिकेट के मैदान में वापसी आईपीएल के जरिये कर रहे हैं. खैर, आईपीएल में किसी गेंदबाज की काबिलियत को मापने के तीन पैमाने हैं.
पहला ये कि पावरप्ले में वो किस तरह की गेंदबाजी करता है क्योंकि यहां पर हर टीम तेज शुरुआत चाहती है. मिड्ल ओवर्स में जब कप्तान उन्हें रन रोकने या विकेट लेने की जिम्मेदारी देता है तब वो कैसा केल दिखातें हैं और आखिर में डेथ ओवर्स में यानी कि पारी के 16वें से 20वें ओवर तक में क्या ये गेंदबाजों रनों पर अंकुश लगाने में कामयाब हो पाते हैं या नहीं क्योंकि उस दौर में किसी को विकेट की बहुत ज्यादा परवाह नहीं होती है.
क्रिकेट की मशहूर डेटाबेस कंपनी क्रिकविज के आंकड़ों पर यकीन किया जाए जो पिछले 2 सीजन के प्रदर्शन पर आधारित हैं तो पावरप्ले यानी कि पहले 6 ओवर में आर्चर का मुकाबला नहीं है. यहां पर आर्चर का स्ट्राइक रेट बुमराह से बेहतर है और इकॉनोमी रेट की बात करें वो सिर्फ 4.5 रन प्रति ओवर खर्च करतें हैं जबकि बुमराह का इकॉनमी रेट करीब 5.8 रन प्रति ओवर का है. यानी, नई गेंद से बाजी मारने के मामले में आर्चर आगे हैं. वैसे भी, टी20 में एक बात जो हर किसी को पता है कि अगर पावर-प्ले में कोई टीम 3 विकेट झटक लेती है तो 80 फीसदी मैच उनकी झोली में जाते हैं. ऐसे में इस फेज में आगे रहना एक अहम बात है.
इसके बाद टी20 में फेज आता है मिड्ल ओवर्स का जो कि ओवर नंबर 7 से 15 तक चलता है और यहां पर स्पिनर की ही चलती है. राशिद खान इस फेज के बादशाह हैं तो युजवेंद्र चाहल और इमरान ताहिर भी शानदार खेल दिखातें हैं. लेकिन, यहां पर आर्चर का नाम नहीं आता है क्योंकि उनकी टीम उन्हें या तो पावर-प्ले में इस्तेमाल करती है या फिर डेथ ओवर्स में. बहुत कम वो मिडिल ओवर्स में गेंदबाजी के लिए आते हैं. लेकिन, मुंबई इंडियंस के लिए बुमराह हर समय तुरुप का इक्का साबित होते हैं.
अब बात आती है सबसे आखिरी दौर में गेंदबाजी करने की. यहां पर धुरंधर से धुरंधर गेंदबाज को कोई भी युवा खिलाड़ी अपने जिन पर उड़ा देता है. ऐसे में ये सबसे मुश्किल चुनौती गेंदबाजों के लिए मानी जाती है. यहां पर बुमराह का इकॉनोमी रेट 8 से कम(7.8) है जो उन्हें सबसे उम्दा गेंदबाज बनाता है जबकि उनके आगे नहीं टिकते हैं. बुमराह इस फेज में 41 फीसदी डॉट बॉल(जिन गेंदों पर रन नहीं बनते हैं) डालते हैं तो आर्चर के लिए ये आकंड़ा 29 फीसदी का है. बुमराह की गेंदों पर बाउंड्री लगने वाली गेंदें 16 फीसदी होती हैं तो आर्चर के लिए 19. यानी आर्चर की गेंदों पर चौके ज्यादा लगते हैं. इसका मतलब है कि इस फेज में भी बाजी बुमराह के हाथ ही लगती है.
कुल मिलाकर देखा जाए तो बुमराह और आर्चर दोनों का खास ऐक्शन उन्हें बाकि गेंदबाजों के मुकाबले में एक अलग एडवांटेज देता है. ये दोनों शांत होकर अच्छे से अच्छे बल्लेबाजों को छकाने में माहिर हैं. अपनी अपनी राष्ट्रीय टीमों के लिए ये बहुत अहम खिलाड़ी हैं और इन दोनों को शुरुआती दौरे में सिर्फ एक फॉर्मेट वाला गेंदबाज माना गया था. अब
तक के सफर में निश्चित रुप से फिलहाल बुमराह ही आर्चर से बेहतर दिखतें हैं. हां, एक बात आर्चर के समर्थक जरूर कह सकते हैं कि बुमराह को मुंबई इंडियंस के साथ लेने का भी लाभ मिलता है क्योंकि दूसरे छोर पर भी दबाव बनाने के लिए एक अच्छा गेंदबाज हमेशा स्पिनर या तेज गेंदबाज के तौर पर होता है और साथ ही उन्हें रोहित शर्मा जैसे एक सुलझे हुए कप्तान का साथ मिलता है. लेकिन, आर्चर के पास दूसरे छोर पर ना तो कोई धारदार गेंदबाज होता है और ना ही एक नियमित कप्तान. तो ऐसे में क्या ये कहा जा सकता है कि शायद दोनों गेंदबाजों की काबिलियत में कोई फर्क नहीं है?
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