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कुछ दिनों पहले वसीम जाफर के भतीजे अरमान जाफर ने अंडर-19 टूर्नामेंट में तिहरा शतक लगाया.अब बुधवार को मुम्बई में रन मशीन के रूप में मशहूर उसके 40 साल के चाचा वसीम जाफर ने कमाल कर दिखाया है. जाफर ने घरेलू क्रिकेट में बल्लेबाजी का एक ऐसा मुकाम हासिल किया है जहां अब तक कोई भारतीय नहीं पहुंचा सका है.रणजी ट्रॉफी में 11 हज़ार रन बनाने वाले वे पहले खिलाड़ी बन गये हैं. अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में सचिन तेंदुलकर के रिकॉर्ड ‘सेंचुरी ऑफ सेंचुरीज़’ की तरह इस रिकॉर्ड का भी डंका पीटने की ज़रूरत है.
कई बार वाकई मुझे आश्चर्य होता है कि कहां से वे इतनी ऊर्जा और प्रेरणा लाते हैं. पिछले 40 साल में एक खिलाड़ी से लेकर मुख्य चयनकर्ता तक मैंने कई लोगों को अवसर दिया है और मैंने सैकड़ों खिलाड़ियों के क्रिकेट करियर का आगाज और उनकी रिटायरमेंट देखी है.मुम्बई का यह लड़का भी अलग नहीं था. वसीम जाफर मुम्बई रणजी टीम के मुख्य स्तम्भ थे.
वसीम का नाम सबसे पहले स्कूली क्रिकेट जगत में उभरा था और बाद में उनके अनुशासन और उनकी प्रतिबद्धता ने उन्हें भारतीय टीम में भी जगह दिलायी. मैंने वसीम को एक बच्चे से बड़ा होते हुए देखा है. आप कह सकते हैं कि लौह पुरुष बनते देखा है. उन्हें रनों की जबरदस्त भूख रहा करती थी और 40 की उम्र में पहुंचने के बाद भी उनकी भूख कम नहीं हुई.
वर्ष 2000 में मैंने सोचा कि वसीम जाफर भारतीय क्रिकेट की दूसरी दीवार हो सकते हैं. लेकिन, लोग मानते हैं कि वसीम ने भारत की ओर से खेलते हुए कभी अपनी प्रतिभा के साथ न्याय नहीं किया. बल्कि मैं कहूंगा कि चयनकर्ताओं ने उनके साथ न्याय नहीं किया. उन्हें अतिरिक्त अवसर नहीं दिए गये.
वह उस भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा थे जिसमें सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, वीवीएस लक्ष्मण, वीरेन्द्र सहवाग और सौरव गांगुली जैसे शीर्ष बल्लेबाज थे. ज्यादातर उन्होंने बेंच गर्म रखने का काम ही किया और मैं मानता हूं कि टीम प्रबंधन और चयनकर्ता उनकी प्रतिभा की ओर उदासीन बने रहे.
बहरहाल कई खिलाड़ी जो वसीम से कम प्रतिभावान थे, मगर भारतीय टीम में मिले मौकों का उन्होंने इस्तेमाल किया. यह बात आश्चर्यजनक है. एक समय मैं मुख्य चयनकर्ता बन गया. वसीम का प्राइम समय बीत चुका था. उनके साथ कुछ फिटनेस के मुद्दे भी थे, लेकिन हमारी चयनकर्ताओं की समिति घरेलू क्रिकेट में उनके लगातार अच्छे प्रदर्शन पर नजर रख रही थी.
मैं समझता हूं कि वसीम में दूसरे सचिन तेंदुलकर का उदाहरण छिपा है जो खेलते क्रिकेट हैं, जिनकी सांस क्रिकेट है और जिनका पेय क्रिकेट है. मुझे वाकई पता नहीं कि कहां से वे अपने लिए रनों की भूख लाते हैं. भारतीय क्रिकेट में लोग खिलाड़ियों के फॉर्म और भूख के बजाए उसकी उम्र की चिन्ता ज्यादा करते हैं. मेरा मानना है कि यहीं पर वसीम जाफर को नुकसान हुआ.
वसीम जाफर उन लोगों में से हैं जिन्होंने अपने आलोचकों का जवाब अपने बल्ले से दिया और किसी चयनकर्ता से किसी तरह की मदद के लिए नहीं कहा. भारतीय क्रिकेट में कई बार खिलाड़ी निस्वार्थ होते हैं और इसलिए वे भारतीय चयनकर्ताओं और यहां तक कि टीम प्रबंधन की नजर में भी नहीं आ पाते. लेकिन, जो खिलाड़ी समझदार हैं, बाजार की क्षमता को पहचानते हैं उन्हें भारतीय टीम में अच्छी जगह मिल जाती है.
जाफर ने 2015-16 के रणजी सत्र में विदर्भ की ओर से खेलना शुरू किया और विदर्भ को दिल्ली के खिलाफ रणजी ट्रॉफी जीतने में मदद की.
जैसे-जैसे साल बीतता गया उनकी ताकत भी बढ़ती रही. उन्होंने क्रिकेट खेल के लिए महान सेवाएं दी हैं. यह जानते हुए भी कि वे भारत की ओर से खेलने का मौका हासिल नहीं करने जा रहे हैं उन्होंने खुद को मार्गदर्शक के रूप में उपलब्ध रखा और अपने अनुभवों को विदर्भ की आने वाली टीम के साथ साझा किया. ड्रेसिंग रूम में उनकी मौजूदगी और प्रभाव भी विदर्भ रणजी पक्ष को जीतने में मददगार साबित हुई.
उनका योगदान अविस्मरणीय है. आज उनका कद बाकी भारतीय खिलाड़ियों के साथ बहुत ऊंचा है और मुझे पूरा यकीन है कि वे और भी ऊंचाई को प्राप्त करेंगे और वे यहीं से आगे बढ़ेंगे. आशा की जाए कि उन्हें और अधिक ताकत मिले ताकि असम्भव को भी वे सम्भव कर दिखलाएं.
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