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निसंदेह, श्रीलंका में अगले महीने होने वाली वन-डे और टी20 मैचों के लिए जिस टीम का चयन का हुआ है उसमें शिखर धवन से ज्यादा अनुभवी खिलाड़ी कोई नहीं है. इतना ही नहीं धवन से ज्यादा लोकप्रिय और दिलदार सीनियर भी इस टीम के युवा खिलाड़ियों के लिए एक शानदार रोल मॉडल शायद कोई और भी नहीं हो सकता था. लेकिन, क्या इन कारणों के चलते ही आसानी से धवन को कप्तानी की जिम्मेदारी दे दी गयी? क्या चयनकर्ता दूसरे विकल्पों के बारे में भी सोच सकते थे?
पहले बात धवन की ही कर ली जाय. आखिरी बार किसी लिस्ट ए गेम्स यानि की सीमित ओवर वाले मैचों में धवन ने कप्तानी करीब आठ साल पहले इंग्लैंड इलेवन के खिलाफ जनवरी के पहले हफ्ते में दिल्ली के लिए की थी. वैसे, कुल मिलाकर धवन के पास सिर्फ 7 List A games में कप्तानी करने का सीमित अनुभव है. आलम ये है कि दिल्ली कैपिटल्स जिसके लिए आईपीएल में धवन खेलते थे, उन्होंने भी श्रेयस अय्यर को कप्तानी की जिम्मेदारी थमाई और इस साल जब अय्यर अनफिट हो गये तो एक और युवा खिलाड़ी ऋषभ पंत को तव्वजो दी गई. धवन ने एक सीजन आईपीएल में सनराइजर्स हैदराबाद के लिए कप्तानी जरूर की थी लेकिन बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं कर पाये थे.
35 साल के धवन इस समय अपने अंत्तराष्ट्रीय करियर के बेहद नाजुक दौर से गुजर रहें हैं. टेस्ट टीम से उनका पत्ता साफ हो चुका है और टी20 में भी ओपनर बने रहने को लेकर वो सवालों के घेरे में हैं. आलम ये है कि खुद उनके पूराने साथी और कप्तान कोहली आने वाले वर्ल्ड कप में ओपनर की भूमिका निभाना चाहते हैं. धवन शायद दुनिया के पहले ऐसे खिलाड़ी हैं जो अलग-अलग तीन फॉर्मेट की चुनौती में अजीबोगरीब अंदाज में एक भंवर में फंस गये हैं. वो सबसे बड़े और सबसे छोटे फॉर्मेट में स्वभाविक चयन नहीं है, लेकिन वन-डे क्रिकेट जो कि बीच का फॉर्मेट है उसमें एक चैंपियन खिलाड़ी हैं.
सबसे अहम सवाल ये है कि अगर भारतीय चयनकर्ता भविष्य की योजनाओं को ध्यान में रखते हुए युवा खिलाड़ियों को मौके देते हुए उन्हें परखना चाह रहें हैं तो क्या कप्तानी के लिए भी उनकी सोच वैसी नहीं हो सकती थी? कोहली और रोहित शर्मा के अलावा भविष्य के कप्तान के तौर पर बहुत ज्यादा विकल्प फिलहाल टीम इंडिया के पास नहीं है और ऐसे में अगर हार्दिक पांड्या को ये जिम्मेदारी दी जाती तो क्या ये बेहतर कदम माना जाता, क्योंकि पांड्या तीनों फॉर्मेट में खेलतें हैं और बतौर ऑलराउंडर उन्होंने अंत्तराष्ट्रीय क्रिकेट में हर किसी को अपने खेल से चौंकाया है. ऐसे में पांड्या के पास कप्तानी का भी माद्दा है या नहीं, इसको आसानी से इस दौरे पर परखा जा सकता था.
बहरहाल, ऐसा लगता है कि धवन के चयन में राहुल द्रविड़ जैसे कोच की सहमति ने भी अहम भूमिका निभायी है. एक बात जो धवन के बारे में सबसे अच्छी ये है कि उन्होंने अपने करियर में विपरीत मौकों पर जबरदस्त वापसी की है और आलोचकों को गलत साबित किया है. युवा खिलाड़ियों के लिए कोहली और रोहित की राह पर चलने का उदाहरण देना आसान नहीं होता है लेकिन इस मामले में धवन से युवा खिलाड़ी जल्दी कनेक्ट कर सकते हैं. और शायद यही वजह है कि धवन को ही आखिरकार एक बड़ी जिम्मेदारी दी गयी है और कौन जनता है कि गब्बर एक बार फिर से हमारे जैसे आलोचकों को फिर से गलत साबित कर दें!
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