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शिखर धवन को अंतर्राष्ट्रीय करियर में दस साल पूरे करने में अभी करीब दो साल का वक्त बाकि है. दस साल तक अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट खेलना निश्चित तौर पर किसी भी खिलाड़ी के लिए बड़ी उपलब्धि है. शिखर धवन इस उपलब्धि की तरफ सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. उनके लिए ये उपलब्धि और भी अहम इसलिए है क्योंकि उन्होंने टीम में जगह बनाने के लिए काफी संघर्ष किया है.
भारतीय टीम में सलामी बल्लेबाज के तौर पर जगह बनाना कभी भी आसान नहीं रहा है. शिखर धवन ने ये मुश्किल काम किया है. उन्होंने काफी पसीना बहाया है. यही वजह है कि बीते आठ साल में शिखर धवन बहुत बदले हैं. उनमें परिपक्वता आई है. वो टीम इंडिया के लिए टेस्ट, वनडे और टी-20 तीनों फॉर्मेट में खेल रहे हैं. उन्होंने अपने प्रदर्शन से टीम मैनेजमेंट और कप्तान का भरोसा जीता है. उनकी आक्रामकता अब व्यवहार में नहीं बल्कि उनकी बल्लेबाजी में दिखती है. फील्डिंग में वो जोरदार हैं ही.
कैच पकड़ने के बाद ताव से मूंछों पर हाथ फेरना और जांघों को ठोंकने की उनकी आदत से उन्हें एक ‘एटीट्यूड’ वाला खिलाड़ी बनाया है. वैसे भी उनका ‘निकनेम’ गब्बर है इसलिए उनपर ये अंदाज ‘स्टाइलिश’ लगता है. आयरलैंड और इंग्लैंड के खिलाफ इस लंबे दौरे पर उन्होंने अच्छी शुरुआत की है.
27 जून को आयरलैंड के खिलाफ खेले गए पहले टी-20 मैच में शिखर धवन ने 45 गेंद पर 74 रनों की शानदार पारी खेली. दूसरे मैच में प्रयोग के तौर पर विराट कोहली ने शिखर धवन को प्लेइंग 11 में शामिल नहीं किया. दरअसल, विराट कोहली भारतीय टीम के बल्लेबाजी क्रम को लेकर लगातार प्रयोग की बात कहते रहे हैं. बावजूद इसके ये तय है कि विराट कोहली बड़े मैचों में शिखर धवन को बाहर बिठाने का जोखिम नहीं लेंगे.
आंकड़े बताते हैं कि शिखर धवन लगातार शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं, ये अलग बात है कि उनके प्रदर्शन ने सुर्खियां ज्यादा नहीं बटोरी हैं. इससे कोई ज्यादा फर्क भी नहीं पड़ता. शिखर अपने बल्ले से अपना काम करते रहते हैं. लगे हाथ अगर इंग्लैंड में शिखर धवन के प्रदर्शन की बात करें तो उन्होंने टी-20 और वनडे दोनों फॉर्मेट में अपने करियर औसत से बेहतर रन इंग्लिश पिचों पर बटोरे हैं. इंग्लैंड में खेले गए 5 वनडे मैचों में उन्होंने 46.5 की औसत से 186 रन बनाए हैं. जो एक टी-20 मैच उन्होंने इंग्लैंड में खेला है उसमें उन्होंने 33 रन बनाए थे.
शिखर धवन को अब अगर और ज्यादा मेहनत करनी है तो अपने टेस्ट प्रदर्शन पर. टेस्ट मैचों में वो ज्यादातर तब कामयाब होते हैं जब पिचें बल्लेबाजी के मुफीद हों. जरा सा भी तेज और उछाल भरा विकेट हो तो शिखर धवन को मुश्किल आती है. भारतीय टीम के हालिया दक्षिण अफ्रीका दौरे में यही देखने को मिला था.
जो उनके करियर औसत के आधे से भी कम है. इंग्लैंड के इस दौरे में भारतीय टीम को सबसे ज्यादा मुश्किल टेस्ट सीरीज में ही होगी. पांच टेस्ट मैचों की सीरीज में भारतीय बल्लेबाजों को संयम और काबिलियत दोनों दिखानी होगी. शिखर धवन को अपने कप्तान का भरोसा जीतना होगा.
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