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भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने पहली बार ICC T20 वर्ल्ड कप के फाइनल में जगह बनाकर इतिहास रच दिया. लगातार बारिश की वजह से इंग्लैंड के खिलाफ सेमीफाइनल मैच नहीं हो सका और ग्रुप-ए में प्वाइंट्स के हिसाब ने नंबर 1 होने की बदौलत टीम इंडिया सीधे फाइनल में पहुंच गई.
हालांकि भारतीय टीम सेमीफाइनल जरूर खेलना चाहती रही होगी. टूर्नामेंट में अब तक टीम इंडिया अपने चार मैच जीत चुकी है, लेकिन स्टार बल्लेबाज स्मृति मंधाना और हरमनप्रीत कौर अब तक कुछ खास कमाल नहीं दिखा सकी हैं. फाइनल के अहम मैच में बिना खेले पहुंचने का मतलब है कि 29 फरवरी (जब लीग मैच में श्रीलंका से सामना हुआ) से लेकर अब तक टीम इंडिया ने किसी विरोधी का सामना नहीं किया.
टूर्नामेंट की अहमियत के दबाव को नई नवेली शेफाली वर्मा ने जिस तरह से डील किया है वो काबिल-ए-तारीफ है. हाल ही में 16 साल पूरी करने वाली रोहतक की इस लड़की में ICC के प्लेटफॉर्म पर अपने पहले मैच में जबरदस्त आत्मविश्वास देखने को मिला.
शेफाली के 161 के स्ट्राइक रेट, (टूर्नामेंट में 100 रन से ज्यादा बनाने वाले किसी भी बल्लेबाज से बेहतर) से ये तय हो गया कि मंधाना इस टूर्नामेंट में औसत-से-खराब प्रदर्शन होने के बावजूद बच निकली.
तीन मैचों में सिर्फ 38 रन बनाकर, बायीं हाथ की ये बल्लेबाज, अपने सबसे आक्रामक साथी की परछाईं भी नहीं छू सकी हैं. सबसे ज्यादा 17 रन और 12.66 के औसत से साफ है वो गेंदबाजों को समझने में नाकाम रहीं और गैर-जिम्मेदारी भरे शॉट्स लगाती हुई उनकी शिकार बनतीं गईं.
आम तौर पर इस वक्त की सबसे शानदार बल्लेबाजों में से एक मानी जाने वाली मंधाना का प्रदर्शन ICC T20 वर्ल्ड कप में फीका रहा है. अब तक ICC T20 वर्ल्ड कप के 16 मैच खेल चुकी मंधाना (पहला T20 विश्व कप 2014 में खेला था) ने सिर्फ 287 रन बनाए हैं जिसमें सिर्फ एक अर्धशतक है और औसत 19 से थोड़ा ज्यादा रहा है. जबकि अपने पूरे करियर में उन्होंने 25.44 की औसत से 12 अर्धशतक बनाए हैं.
हालांकि उनके खराब फॉर्म पर अभी लोगों की नजर नहीं पड़ी है, क्योंकि मंधाना का विकेट गिरने के बाद जेमिमा रॉड्रिग्ज, तानिया भाटिया और वेदा कृष्णमूर्ति जैसी खिलाड़ियों ने पारी संभाल ली. मौजूदा चैंपियन ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मैच में ओपनर मंधाना सबसे पहले आउट हो गईं, इसके बाद वर्मा का विकेट गिरा, लेकिन रॉड्रिग्ज और दीप्ति शर्मा ने फिर किला संभाल लिया और भारतीय टीम को 3 विकेट पर 47 रनों से 4 विकेट पर 100 रनों तक ले गईं, जिसके बाद भारत के लिए 132 रन का बड़ा स्कोर खड़ा करना मुमकिन हो पाया.
हालांकि इसके बाद मंधाना ने बांग्लादेश के खिलाफ भारत का अगला मैच नहीं खेला, और टीम ने 113 रनों में 6 विकेट खो दिए, जबकि 2 विकेट पर 78 रन थे. लेकिन कृष्णामूर्ति (11 बॉल पर 20 रन), पहली बार खेल रही ऋचा घोष (14 गेंद पर 14 रन) और रॉड्रिग्ज (37 गेंद पर 34 रन) के बेहतरीन योगदान से भारत ने 140 का आंकड़ा पार लिया.
न्यूजीलैंड के खिलाफ, मंधाना ने उस वक्त अपना विकेट खो दिया जब भारत का स्कोर 17/1 था, लेकिन टीम आखिरकार 8 विकेट पर 133 बनाने में कामयाब रही, जिसमें वर्मा ने 34 गेंदों पर 46 रन और राधा यादव ने 9 गेंदों पर 14 रन बनाए, वो भी तब जब वो नौवें नंबर पर बैटिंग कर रही थीं. श्रीलंका के खिलाफ भारत के आखिरी मैच में मंधाना ने फॉर्म में वापसी की कुछ झलक तो दिखाई लेकिन फिर 12 गेंद में सिर्फ 17 बनाकर उदेशिका प्रबोधानी का शिकार बन गई. एक बार फिर वर्मा ने रॉड्रिग्ज और दीप्ति के साथ मिलकर टीम को आगे बढ़ाया.
पिछले साल, T20 में, हरमनप्रीत ने 10 पारी में सिर्फ 152 रन बनाए थे, जिसमें एक भी अर्धशतक उनके नाम नहीं था और रन औसत सिर्फ 19 रहा.
सबसे खतरनाक बल्लेबाजों में से एक मानी जाने वाली इस पंजाबी खिलाड़ी ने जनवरी 2019 से अब तक 96.1 के हिसाब से रन बनाए हैं, जो कि 2020 में घटकर 90 रह गया. उनके लगातार खराब प्रदर्शन ने पूर्व भारतीय क्रिकेटर डायना इडुल्जी को यह कहने पर मजबूर कर दिया था कि हो सकता है कप्तान की भूमिका से हरमनप्रीत की बैटिंग पर असर पड़ा हो.
टीम इंडिया ने T20 में इस बार भले रन नहीं बनाया हो, लेकिन विरोधियों पर जोरदार हमले से 135+ का स्कोर भी टक्कर देने के लिए काफी रहा है. पूनम यादव और दीप्ति अपनी आक्रामक गेंदबाजी से हमले की शुरुआत करती रहीं, जिसमें वो गुगली से लेकर हर तरह की गेंद डालती थीं, जबकि अनुभवी तेज गेंदबाज शिखा पांडे ऐसी खिलाड़ी की तरह उभरीं हैं जिन पर निर्भर हुआ जा सकता है.
4 मैंचों में नए और पुराने दोनों तरह की गेंदों से 7 विकेट लेकर, पांडे ने अपने कौशल और काबिलियत से टीम को बुरे हालात से निकाला है, जैसे कि व्हाइट फर्न्स के साथ मैच में हुआ.
वहीं राधा यादव ने सिर्फ दो मैच खेले लेकिन 23 रन देकर 4 विकेट लेने का अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दिखा चुकी है, वहीं राजेश्वरी गायकवाड की परफॉर्मेंस लोगों से छिपी रह गई जबकि उनकी कोशिशें तारीफ के लायक रहीं. उन्होंने सिर्फ 6 की इकॉनमी रेट और 19.20 के औसत से 5 विकेट झटक लिए.
भारतीय टीम की बॉलिंग में सबसे गौर करने वाली बात ये है कि ऑस्ट्रेलिया की विकेट पर जहां उन्हें किसी तरह की मदद नहीं मिली उन्होंने सधी हुई और सटीक गेंदबाजी की है. अरुंधति रेड्डी को छोड़कर किसी भारतीय बॉलर ने ओवर के हिसाब से 6 रन से ज्यादा नहीं दिए, जबकि पांडे-पूनम-दीप्ति की तिकड़ी ने तो पिछले चार मैचों में 6 से भी कम रन दिए.
स्पिनर्स हमेशा अपने लक्ष्य पर रहे, तेज गेंदबाज चुपके से अपना काम करते रहे, फील्डर्स ने गेंद पकड़ने में खुद को झोंक दिया, जबकि बल्लेबाजों ने एक साथ मिलकर स्कोरबोर्ड को चमकाए रखा इसके बावजूद कि टीम के दो बड़े खिलाड़ी पूरी तरह नाकाम रहे. बड़े टूर्नामेंट में टीम भावना ही किसी को चैंपियन बनाती है और इंडियन इव्स अब तक ऐसा कर दिखाने में कामयाब रही है.
(सारा वारिस एक स्वतंत्र पत्रकार हैं जो लगातार क्रिकेट के से जुड़े तमाम मुद्दों पर लिखती रहती हैं.)
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